महारानी गायत्री देवी, वो महिला जिन्होंने निडरता और निर्भीकता के साथ फ़ैशन की नई परिभाषा गढ़ी

Kratika Nigam

Rajmata Gayatri Devi: राजमाता गायत्री देवी का चेहरा सामने आते ही एक सुंदर, ख़ूबसूरत, दृढ़ निश्चयी और मज़बूत इरादों वाली शख़्सियत का चेहरा सामने आता है. इन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी ठाठ और अपने उसूलों पर जी. वो अक्सर महिलाओं के हक़ और उनके सुधार की बातें करती थीं. इनके रॉय शौक़ के भी क़िस्से कम नहीं थी. महारानी गायत्री देवी की लव लाइफ़ भी काफ़ी चर्चित रही थी क्योंकि उन्होंने अपनी मां के ख़िलाफ़ जाकर शादी की थी.

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आइए गायत्री देवी (Rajmata Gayatri Devi) के ज़िंदगी के कुछ ऐसे ही निर्भीक और निडर अनछुए पलोंं पर नज़र डालते हैं:

महारानी गायत्री देवी का जन्म 23 मई को लंदन में हुआ था. इनके पिता कूच बिहार के राजा थे और माता इंद्रा राजे बरोड़ा की मराठा राजकुमारी थीं. इनकी पढ़ाई भी लंदन में हुई थी. गायत्री देवी बचपन से राजशाही अंदाज़ में रहती थी उनके महल में 500 नौकर काम करते थे. इसलिए बड़े होने पर भी उनमें राजशाही अंदाज़ में रहने का शौक़ बढ़ता गया. महारानी गायत्री देवी इतनी सुंदर थीं कि Vogue मैग्ज़ीन ने उन्हें दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत 10 महिलाओं की लिस्ट में शामिल किया था.

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महारानी गायत्री देवी कभी-कभी साड़ियों और खाकी पैंट और शर्ट भी पहनती थीं. इनमें वो काफ़ी ख़ूबसूरत लगती थीं. उसके लिए, उन्होंने एक बार कहा था,

मैं वास्तव में ऐसा नहीं सोचती. स्टाइल मुझे स्वाभाविक रूप से आता है. मेरी मां मेरी आदर्श और आइकन रही हैं, जब मैं छोटी था, मैंने उनके कपड़े देखा करती थी. मां अपने कपड़ों को लेकर बहुत पर्टिकुलर थीं. क्या आप जानते हैं, वो शिफ़ॉन से बनी साड़ी पहनना शुरू करने वाली पहली महिला थीं? लेकिन उन्हें जूतों का शौक़ नहीं, बल्कि जुनून था, उनके पास सैकड़ों जूते थे और फिर भी वो फ़्लोरेंस में Ferragamo से ऑर्डर करती रहती थीं. वो हमेशा कुछ भी ख़रीदने के लिए उसकी सबसे अच्छी जगह जानती थीं और वो दुनिया की हर जगह से ख़रीदारी कर चुकी थीं. मुझे लगता है, मैंने उन्हीं से स्टाइल सीखा है, उन्होंने मुझे स्टाइल के बारे में सब कुछ सिखाया. पुराने ज़माने में लाइफ़ ज़्यादा ग्लैमरस हुआ करती थी, अब काफ़ी कुछ बदल गया है.

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महारानी गायत्री देवी का व्यक्तित्व ऐसा था कि उन्हें जानने वालों से लेकर दूर-दूर तक के लोग उनसे प्रभावित थे. वो जिसतरह की लाइफ़स्टाइल जीती थीं उस दौर में वो काफ़ी विद्रोही, स्वच्छंद और मज़बूत महिला का व्यक्तित्व था. इनकी दादी चिम्नाबाई भी एक निर्भीक महिला थीं तो महारानी गायत्री देवी का ये व्यक्तित्व उन्हें अपनी दादी से विरासत में मिला था. इन्होंने उस ज़िंदगी को जीने से इनकार किया, जो महिलाओं के लिए समाज ने बनाई थी. इसलिए इन्होंने अपनी ज़िंदगी के लिए अपनी शर्तें बनाईं और उन्हीं शर्तों पर ज़िदंगी जी भी.

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बात अगर उनके वैवाहिक जीवन की जाए तो महारानी गायत्री देवी ने कभी अपनी मां जैसी ही ज़िंदगी जीनी चाही, जिन्होंने अरेंज्ड मैरिज को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और अपने प्यार से शादी कर ली. ऐसा ही महारानी गायत्री देवी ने भी किया उन्होंने अपने प्यार के लिए अपने से उम्र में बड़े महाराजा सवाई मान सिंह से शादी की, जिनसे वो 19 साल की उम्र में मिली थी. हालांकि, दोनों की उम्र का फ़ासला बहुत था, लेकिन उनके रिश्तों में कोई फ़ासले नहीं थे.

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जयपुर के महाराजा, जो उस समय 21 वर्ष के थे और महारानी 12 वर्ष की थीं. सर सवाई मान सिंह बहादुर की तब दो पत्नियां भी थीं, लेकिन वो महारानी गायत्री देवी के दीवाने हो गए और गायत्री देवी भी उनके प्यार में पड़ गईं. हालांकि, दोनों के प्यार को हरतरफ़ विरोध झेलना पड़ा, लेकिन फिर भी उन्होंने मई 1940 में शादी कर ली, जिसने काफ़ी हलचल मचाई. दोनों ने बहुत ही ख़ुशहाल ज़िंदगी बिताई थी. गायत्री देवी अपने पति की तीसरी पत्नी थीं.

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उन्होंने एक महाराजा की पत्नी होने के नाते आने वाली समस्याओं और विरोध का बहादुरी से सामना किया और इसे अपने पक्ष में कर लिया. जयपुर के महाराजा की तीसरी पत्नी होना कोई आसान उपलब्धि नहीं थी. हालांकि, उन्होंने एक अडजस्ट और प्रतिबंधित ज़िंदगी जीने लगीं, लेकिन उन्होंने महल की बाकी महिलाओं को उनके सीमित जीवन से आगे बढ़ाया.

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महारानी अन्य रानियों की तरह पर्दों में नहीं रहीं. उन्होंने कहा,

पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मैं देखती हूं कि वो समय सामान्य स्वीकृत जीवन से कहीं बहुत अधिक आगे था. हमारे बड़ों को चकमा देकर छुप-छुप कर मिलने के लिए मीटिंग करना. बीच-बीच में, जय के साथ ड्राइव पर जाना और Bray में चोरी-छिपे डिनर, या बाहर घूमने जाना. एक नाव में नदी पर समय बिताना.

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महारीनी गायत्री देवी ने देश में महिलाओं के बहिष्कार को ख़ारिज कर दिया. इन्होंने महल की सुकून और आराम वाली ज़िंदगी को छोड़कर उस ज़िंदगी को चुना जो मुश्किल भरी थी. युद्ध के दौरान उन्होंने तरह-तरह के युद्ध-कार्य किए. 1943 में, उन्होंने 40 छात्रों और एक अंग्रेज़ी शिक्षक के साथ लड़कियों के लिए गायत्री देवी स्कूल खोला, जिसे भारत के बेहतरीन स्कूलों में से एक के रूप में जाना जाने लगा.

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महारानी गायत्री देवी राजनीति में भी शामिल रहीं. वो इतिहास की पहली महिला थीं, जिन्होंने 2,46,516 में से 1,92,909 मतों से लोकसभा सीट जीती थी. इन्होंने स्वतंत्र पार्टी से इलेक्शन लड़ा, जो राजस्थान राज्य बनने पर कांग्रेस सरकार के विरोध के रूप में बनाई गई थी. इन्होंने अपना पहला चुनाव 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार के ख़िलाफ़ 175,000 मतों के बहुमत से जीता, जिसने उन्हें गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में स्थान दिलाया. उनकी उपलब्धि के बारे में सुनकर, राष्ट्रपति John F. Kennedy ने उन्हें “सबसे आश्चर्यजनक बहुमत वाली महिला” के रूप में इंट्रोड्यूस किया, जिन्होंने इलेक्शन में इस तरह की शानदार जीत हासिल की है.

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जब कांग्रेस पार्टी ने उनके परिवार के विरोध विशेषाधिकारों को समाप्त करने के लिए एक विधेयक पेश किया और उन्हें इंग्लैंड भागना पड़ा तो चीज़ें बदलने लगीं. मुसीबत उन पर तब आई जब एक महीने बाद ही उनके पति महाराजा सवाई मान सिंह की मृत्यु हो गई और वो राजमाता बन गई, जब मान सिंह की पहली पत्नी के बेटे कर्नल भवानी सिंह को महाराजा घोषित किया गया.

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राजमाता गायत्री देवी को 1971 में संसद में अपने तीसरे कार्यकाल के लिए खड़े होने के लिए राजी कर लिया गया, लेकिन संविधान में बदलाव करते हुए उनकी रियासत को मान्यता से बाहर कर दिया गया था. ये बदलाव राजमाता और उनके सौतेले बेटे के लिए एक कठिन समय था. जब जुलाई 1975 में दोनों को गिरफ़्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया. हालांकि उन पर कभी कोई गंभीर आरोप नहीं लगा. 6 महीने जेल में भी गायत्री टूटी नहीं लेकिन उनके शरीर ने जवाब दे दिया तब उन्हें एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, आखिरकार उन्हें पैरोल पर रिहा कर दिया गया, लेकिन वो अपनी ज़िंदगी के उस मोड़ पर जिस दर्द से गुज़रीं वो बयां भी नहीं किया जा सकता है.

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जेल की ज़िंदगी ने उनके जीवन को बदल दिया वो जेल से तो बाहर आ गईं वहां रह रहे कैदियों से बाहर नहीं आ पाईं. महारानी गायत्री देवी ने जेल में ख़राब परिस्थितियों में रह रहे हत्यारों, वेश्याओं, जेबकतरों और अन्य कैदियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. वो राजस्थान में महिलाओं द्वारा प्रचलित पर्दा प्रथा को बंद कराने में सफल रहीं.

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वो एक बेहतरीन घुड़सवार थी और खेल आयोजनों का हिस्सा बनती थीं. इन्हें Polo भी अच्छा खेलना आता था. महारानी गायत्री देवी ने घुड़दौड़ के घोड़ों को पालने शुरू किया. वो अपने स्कूल और जयपुर में होने वाली हर चीज़ में पूरी तरह शामिल रहती थीं. उन्हें यात्रा करना पसंद था. वो गर्मी नाइट्सब्रिज के एक छोटे से फ़्लैट में और सर्दियां जयपुर के लिलिपूल में बिताती थीं, जहां वो शाम को चुनिंदा मेहमानों के साथ Champagne का लुत्फ़ उठाती थीं.

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महारानी गायत्री देवी को शिकार और महंगी कारों को रखने का शौक़ था. पहली बार उन्होंने 12 साल की उम्र में चीते का शिकार किया था. वहीं उनकी कारों में मर्सिडीज बेंज से लेकर रॉल्स रॉयस तक शामिल थीं. यहां तक कि उनके पास एक एयर क्राफ़्ट भी था. महारानी अपनी प्रजा के बीच काफ़ी लोकप्रिय थीं. इन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए एक नहीं कई सारे स्कूलों का निर्माण कराया था.

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1943 में फ़ोटोग्राफ़र Cecil Beaton ने जयपुर में गायत्री की सुंदरता को आख़िरी बार अपने कैमरे में कैद कर लिया.

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आपको बता दें, राजघराने में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने हमेशा दलितों के लिए आवाज़ उठाई और अपने छोटे-छोटे प्रयासों से उनके जीवन को बदला. राजमाता आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं.

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