ईसीजी सुदर्शन! आप में से अधिकतर लोग ये नाम शायद पहली बार सुन रहे होंगे, लेकिन सुदर्शन एक ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) के ‘प्रकाश की गति’ के सिद्धांत को भी ग़लत साबित कर दिखाया था. आइंस्टीन को ग़लत साबित करने वाले प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी एन्नाकल चांडी जॉर्ज सुदर्शन (Ennackal Chandy George Sudarshan) उर्फ़ ईसीजी सुदर्शन को नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) के लिए 9 बार नामांकित किया गया था, लेकिन वो ये प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल नहीं कर सके.
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एन्नाकल चांडी जॉर्ज सुदर्शन (Ennackal Chandy George Sudarshan) का जन्म 16 सितंबर, 1931 को केरल के कोट्टायम में हुआ था. सुदर्शन का पालन-पोषण केरल के एक सीरियाई ईसाई परिवार में हुआ था. उन्होंने कोट्टायम के ‘सीएमएस कॉलेज’ से पढ़ाई की थी. सन 1950 में ‘मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज’ से स्नातक करने के बाद 1952 में ‘मद्रास विश्वविद्यालय’ से ही मास्टर डिग्री भी हासिल की.
ईसीजी सुदर्शन इसके बाद ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में होमी भाभा (Homi Bhabha) वैज्ञानिकों के साथ नौकरी करने लगे. सन 1953 में वो Robert Marshak के अधीन स्नातक छात्र के रूप में काम करने के लिए न्यूयॉर्क स्थित University of Rochester चले गए. सन 1958 में उन्होंने अपनी उन्होंने अपनी पीएच.डी पूरी की. इसके बाद सुदर्शन पोस्टडॉक्टरल फेलो के रूप में जूलियन श्विंगर से जुड़ने के लिए Harvard University चले गए.
एन्नाकल चांडी जॉर्ज सुदर्शन (Ennackal Chandy George Sudarshan) ने 20 दिसंबर, 1954 को ललिता राव से शादी की थी. शादी के बाद उन्होंने ईसाई धर्म छोड़ हिंदू धर्म अपना लिया था. सुदर्शन और ललिता के 3 बेटे सिकंदर, अरविंद (मृतक) और अशोक हैं. सन 1990 में सुदर्शन और ललिता का तलाक हो गया. इसके बाद सुदर्शन ने टेक्सास में भामती गोपालकृष्णन से शादी कर ली थी.
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ईसीजी सुदर्शन (E. C. G. Sudarshan) के नाम से लोकप्रिय भारतीय मूल के इस भौतिक विज्ञानी ने ‘क्वांटम ऑप्टिक्स’ के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया था. सुदर्शन ने क्वांटम ऑप्टिक्स में विशेषज्ञता हासिल की और वेदांत को आधुनिक भौतिकी से जोड़ा था. उन्होंने Unobstructed Light के लिए Quantum Representation भी तैयार किया था जिसे Sudarshan-Glauber P representation के नाम से भी जाना जाता है.
आइंस्टीन के ‘प्रकाश की गति’ के सिद्धांत को ग़लत साबित किया
ईसीजी सुदर्शन विश्व के पहले वैज्ञानिक थे जो टैकियोन कणों (Tachyonic Particle) की थ्योरी सामने लाए थे. ये ऐसे कण हैं जो प्रकाश की गति से भी तेज़ चलते हैं. इस तरह से उन्होंने साबित कर दिया था कि प्रकाश की गति पर अल्बर्ट आइंस्टीन का सिद्धांत ग़लत है. दरअसल, आइंस्टीन ने बताया था कि Infinite Energy की आवश्यकता के कारण कणों (Spaceship) का प्रकाश की गति तक या उससे आगे बढ़ाना असंभव है. लेकिन सुदर्शन और उनके सहयोगियों ने सुझाव दिया कि यदि कण टकराव में प्रकाश से तेज़ गति के साथ शुरू में इनका निर्माण किया गया तो कोई इसके लिए Acceleration or Infinite Energy की आवश्यकता नहीं होगी.
नोबेल पुरस्कार नहीं मिलने का मलाल
ईसीजी सुदर्शन अपनी विज्ञान क्षेत्र में अपनी योग्यता के चलते नोबेल प्राइज के हकदार थे. उन्हें 9 बार Nobel Prize के लिए नामांकित भी किया गया था. लेकिन उन्हें ये प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल नहीं पाया. सुदर्शन को हर मौके नज़रअंदाज़ किया गया. सबसे बड़ा मुद्दा 2005 में सामने आया था जब Sudarshan-Glauber P representation के लिए सुदर्शन को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ़ ग्लॉबर को Nobel Prize दिया गया था. इसके ख़िलाफ़ कई वैज्ञानिकों ने ‘नोबेल कमेटी’ को पत्र लिखकर असंतोष भी जताया था.
ईसीजी सुदर्शन की वैज्ञानिक उपलब्धियां
ईसीजी सुदर्शन को नोबेल पुरस्कार तो नहीं मिला, लेकिन उन्होंने डिराक मेडल (2010), पद्म विभूषण (2007), द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ़ साइंसेज (TWAS) फ़िजिक्स अवार्ड (1985), बोस मेडल (1977), पद्म भूषण (1976) और सीवी रमन अवार्ड (1970) ज़रूर हासिल किये. सुदर्शन, ऑस्टिन के टेक्सास विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग में प्रोफ़ेसर थे. प्रोफ़ेसर के तौर पर उन्होंने यहां 40 वर्ष से भी अधिक समय तक काम किया.
14 मई, 2018 को अमेरिका के टेक्सास में 86 वर्ष की आयु में ईसीजी सुदर्शन (E. C. G. Sudarshan) की मृत्यु हो गयी थी.
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