इस गोल रोटी ने बड़ा रायता फैलाया है, कहीं गोलियां चल रही हैं तो किसी को फ़ीलिंग अच्छी आती है

Kratika Nigam

बचपन में किसी कविता को सीरियस लिया हो या नहीं, लेकिन ‘मम्मी की रोटी गोल-गोल’ को हम सब कुछ ज़्यादा ही सीरियस ले गए. तभी तो ‘गोल रोटी न बना पाना’ हमारे देश में परमाणु बम से भी बड़ा मुद्दा है. इस गोल रोटी के चक्कर में गोलियां तक चल जाती हैं. अगर यक़ीन न आए तो मेरी सहकर्मी संचिता पाठक का ‘गोल रोटी‘ पर लेख पढ़ लीजिए. 

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इस लेख में आपको पता चलेगा कि कहीं भाई ने तो कहीं बाप ने सिर्फ़ ‘गोल रोटी’ न बना पाने की वजह से बहन और बेटी की गोली मारकर हत्या कर दी. जब से ये पढ़ा है मेरा तो दिल बैठा जा रहा है. क्योंकि मुझे तो गोल रोटी क्या, रोटी भी नहीं बनानी आती? ख़ैर, मेरी छोड़िए मैं तो देख लूंगी क्या करना है? 

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मगर इस गोल रोटी ने मेरी दोस्त को इतना डरा दिया है कि वो रोज़ 20 रोटी बना देती है, एक गोल रोटी के चक्कर में. क्योंकि उसके पति को प्लेट में गोल रोटी देखकर फ़ीलिंग अच्छी आती है. और न हो तो वो गुस्सा हो जाता है. ये बात वो मुझे बता रही थी तो मैंने उसको ये सारी ख़बरें बता दीं कि गोल रोटी बनाने की वजह से कहीं गोली मारकर तो कहीं बांस से पीट कर मार दिया गया. 

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भाई वो तो इतना घबरा गई कि उसने अपनी रोटी 20 से 40 कर दी हैं. अब संक्षेप में थोड़ा मेरी दोस्त के बारे में जान लीजिए. ये मेरी कॉलेज की दोस्त है और दिल्ली में मेरी पड़ोसी. इसने कभी एक गिलास पानी भी नहीं उठाकर पिया है. लेकिन गोल रोटी का ये ख़ौफ़ इससे रोज़ 40 रोटी बनवाता है. तब भी 41वीं उतनी गोल नहीं बनती कि इसके पति को फ़ीलिंग अच्छी आए. 

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वैसे इसके पति से अबकी बार मिलूंगी तो पूछूंगी कि क्या रोटी को सीधे ही निगल लेते हो? अगर ऐसा भी करते हो तो वो अंदर जाकर तो टूट ही जाती होगी. जब टूट जाती है तो कैसी फ़ीलिंग आती है? क्योंकि तुम्हारी फ़ीलिंग के चक्कर में ये अपना सारी दिन इन रोटियों में लगा देती है और तुम्हें उसकी इस मेहनत के पीछे की फ़ीलिंग नहीं दिखती है.

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ये ‘गोल रोटी’ का भूसा घर की बुज़ुर्ग महिलाएं ही पुरूषों और लड़कों में भरती हैं. जबकि उन्हें समझाना चाहिए कि खानी तो तोड़ कर ही फिर क्यों शोर मचा रहते हो गोल रोटी नहीं है? लेकिन कैसे समझा दें, उनका लल्ला गोल रोटी नहीं खाएगा तो गोल कैसे होगा? 

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इन लोगों की गोल रोटी के चक्कर में लड़कियां रोटी बेल-बेल कर पतली हो जा रही हैं और उन लोगों के नाटक नहीं ख़त्म हो रहे हैं. मेरी दोस्त को गोल रोटी के सपने आते रहते हैं. भइया खानी तोड़कर ही तो चुपचाप जैसी बने खा लो. 

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