नेकी की मिसाल: लखनऊ जंक्शन पर एक 80 वर्षीय कुली फ़्री में ढो रहे हैं ज़रूरतमंद श्रमिकों का सामान

Kratika Nigam

कोरोना काल ने ये बता दिया कि जब भी हमें एक-दूसरे की ज़रूरत होगी तो हम सब एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आएंगे। लॉकडाउन में आए दिन हमें इंसानियत की ऐसी कितनी सूरतें दिख रही हैं. भले ही कुछ दिनों पहले तक लॉकडाउन के कारण गली, सड़क, बाज़ार यहां तक कि रेलवे स्टेशन तक में सन्नाटा पसरा था. ट्रेने बंद होने से सारे कुली भी स्टेशन से चले गए थे. मगर अब ये नज़ारा बदल चुका है. 

3 मई को जब श्रमिक ट्रेन चलीं तो इन श्रमिकों का बोझ उठाने के लिए एक हाथ आगे आया, जिनका नाम मुजीबुल्लाह रहमान है और ये 80 साल के हैं. मुजीबुल्लाह पिछले 5 दशकों से लखनऊ के चार बाग स्टेशन में कुली का काम कर रहे हैं. इनका बिल्ला नम्बर 16 है. मुजीबुल्लाह सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक आने-जाने वाले सभी श्रमिकों का सामान फ़्री में ढोते हैं.

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प्यार से ‘सूफ़ी संत’ कहे जाने वाले मुजीबुल्लाह सिर्फ़ सामान ही नहीं ढोते, बल्कि लोगों को भगवदगीता के श्लोक, क़ुरान की आयतें, कबीर के दोहे भी सुनाते हैं. ये गुलज़ारनगर से रोज़ 6 किलीमीटर पैदल चलकर स्टेशन पहुंचते हैं और लोगों की सेवा में जुट जाते हैं.

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मुजीबुल्लाह ने फ़्री में सेवा करने के बारे में बताया,

मैं ज़रूरतमंदों की ख़िदमत कर रहा हूं. उनका सामान मुफ़्त में ढो कर उनका थोड़ा बोझ कम करने की कोशिश कर रहा हूं. मैं इन्हें खाना और पानी भी उपलब्ध कराता हूं. ये वक़्त मदद का है, जब सब ठीक हो जाएगा पैसे तो मैं तब कमा ही लूंगा. इनसे पैसे क्या लूं, जिन्हें ख़ुद इसकी ज़रूरत है? 
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एक रेलवे कर्मचारी शेर मोहम्मद ने बताया,

मुजीबुल्लाह के लिए स्टेशन उनके दूसरे घर जैसा है. उनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हुए उन्हें रोज़ थर्मल स्कैनर से चेक किया जाता है क्योंकि वो रोज़ कई श्रमिकों के संपर्क में आते हैं. 

आपको बता दें मुजीबुल्लाह हमेशा से ग़रीबों की मदद करते रहे हैं उनका सामान ढोने के लिए वो उनसे पैसे नहीं लेते हैं. आजकल तो वो प्लेटफ़ॉर्म पर ही नमाज़ अदा करते हैं ताकि वो किसी की मदद करने से रह न जाए.

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