दिल्ली से ऋषिकेश की उस ट्रिप में स्यापों की बौछार हो गई थी, पर जो हो अनुभव अच्छा था!

Kratika Nigam

मैं हमेशा सोचती हूं कि दोस्तों के साथ बाइक से एक ट्रिप प्लान करूं और निकल जाऊं बहुत दूर मगर ऐसा संभव हो नहीं पा रहा है, पर मेरे एक दोस्त ने ऐसा संभव किया और वो बाइक से निकल गया दिल्ली से ऋषिकेश, वो भी बिना किसी प्लानिंग के. हालांकि, उसकी ये ट्रिप बहुत अच्छी शुरू हुई, मगर उसके बाद जो हुआ उसको मेरे दोस्त ने एक अनुभव की तरह लिया.

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वो और उसका एक दोस्त बिना प्लान किये ही ऋषिकेश के लिए घर से निकल गए. ऋषिकेश की रेंज में आते ही घने कोहरे के बीच वो लोग फ़ोन में जीपीएस के ज़रिए रास्ता ढूंढते-ढूंढते पहुंच रहे थे. मगर कोहरा बहुत घना था तो पता ही नहीं चला कि फ़ोन कब और कहां गिर गया? जब रास्ता समझ नहीं आया, तब उन्होंने जीपीएस में देखने के लिए फ़ोन ढूंढा, पर फ़ोन तो था ही नहीं.

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फिर उनको याद आया कि उन्होंने कुछ देर पहले ही फ़ोन में जीपीएस देखा था, इसलिए वो दोनों थोड़ा पीछे गए और उनको फ़ोन मिल गया. उसके बाद थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि बाइक का टायर पंक्चर हो गया. वो लोग जिस रास्ते पर थे वहां दूर-दूर तक कोई भी पंक्चर बनाने वाला नहीं था, जैसे-जैसे हवा भरकर टायर को चलाया. पर हर थोड़ी देर में ही हवा निकल जा रही थी. इस चक्कर में बाइक का पूरा टायर फट गया.

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अभी एडवेंचर ख़त्म नहीं हुआ था. वो लोग जैसे-तैसे वहां पहुंचे फिर उन्होंने रहने के लिए जगह ढूंढी. दूसरे दिन वापसी भी थी तो ठीक से आराम नहीं कर पाए थे. इसलिए सोचा कि घर जाकर बस सोएंगे, फिर कुछ करेंगे. मगर कहते हैं न जब किस्मत बुरी हो, तो ऊंट पर बैठे इंसान को भी कुत्ता काट लेता है. उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था.

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जैसे-तैसे अपने घर दिल्ली वापस आ गए, फिर मेरे दोस्त के दोस्त ने कहा, ‘भाई मेरा फ़ोन दे’. तब मेरे दोस्त ने कहा तूने मुझे दिया था? उसने बोला हां, रास्ते में मैंने तुझे ही पकड़ा दिया था. इतना कहना और वो समझ गया कि मेरा तो नहीं इसका फ़ोन बलि चढ़ गया. हालांकि, वो लोग तुरंत थोड़ी दूर तक गए भी फ़ोन में कुछ देर तक घंटी भी बज रही थी, लेकिन थोड़ी देर बाद वो भी बंद हो गई.

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उन्हें न तो फ़ोन मिला और न ही वो लोग सो पाए. उसके दोस्त के उस फ़ोन में सारे कॉन्टेक्ट थे, जो बहुत ज़रूरी थे क्योंकि वो पत्रकार है. सारा स्यापा झेलकर वो घर आ चुके थे, लेकिन फ़ोन के जाने का एक अफ़सोस था. वो इसलिए क्योंकि उससे उसके दोस्त का फ़ोन खो गया था. अगर उसका अपना फ़ोन खोता तो उसे अफ़सोस नहीं होता, जैसे वो हर ट्रिप को एक अनुभव की तरह लेता है इसे भी लेता और उसने लिया भी. बस दोस्त का फ़ोन खोने से उसके इस अनुभव में अफ़सोस शब्द में भी जुड़ गया.

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आपके साथ भी अगर ट्रिप के दौरान ऐसे स्यापे हुए हैं तो हमें कमेंट बॉक्स में ज़रुर बताइएगा.

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