Dr. Dilip Mahalanabis: आजकल जब भी किसी बच्चे या बड़े को लूज मोशन की शिकायत होती है तो डॉक्टर तुरंत उन्हें ORS (Oral Rehydration Solution) का घोल पीने की सलाह देते हैं. कई घरों में तो दस्त की समस्या होने पर लोग ख़ुद ही केमिस्ट से ORS का पैकेट लाकर पी ले लेते हैं. इसे पीने से तुरंत राहत मिलती है.
ऐसा इसलिए कि क्योंकि ORS का घोल शरीर से पानी की कमी नहीं होने देता और मरीज़ तुरंत सही हो जाता है. इसे जीवन रक्षक घोल भी कहा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं इसकी खोज किसने और कब की थी?
ये एक भारतीय डॉक्टर थे जिनके योगदान को पूरी दुनिया में सराहा गया था. चलिए आज जानते हैं इनकी कहानी.
ये भी पढ़ें: जानिए क्या थी वो विश्वसनीय खोज जिसने C.V. Raman को दिलाया था नोबेल पुरस्कार
पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे डॉक्टर
इस महान डॉक्टर का नाम था दिलीप महालनोबिस. वो पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे. उन्होंने कोलकाता और लंदन से मेडिकल की पढ़ाई की थी. महालनोबिस ने शिशु रोग चिकित्सा की ट्रेनिंग ली थी. 1960 के दशक में उन्होंने कोलकाता की Johns Hopkins University International Centre for Medical Research and Training को जॉइन किया.
ये भी पढ़ें: जिस E-Rickshaw में बैठकर आराम से मेट्रो स्टेशन से ऑफ़िस जाते हो, जान लो उसकी खोज किसने की थी
ORS की खोज
यहां डॉक्टर्स के साथ मिलकर उन्होंने ORT (Oral Rehydration Therapy) पर रिसर्च की. शोध के दौरान अपने साथियों के साथ मिलकर एक ऐसा फार्मूला तैयार किया जो कंट्रोल्ड कंडिशन्स में डिहाइड्रेशन को थाम सकता था. इनकी टीम में डॉक्टर डेविड आर. नलिन और रिचर्ड ए. कैश भी शामिल थे. मगर इसका इस्तेमाल इन्होंने आम लोगों पर नहीं किया था. इसी बीच बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम छिड़ गया.
यहां इस्तेमाल हुआ पहली बार ORS
1971 के इस युद्ध में बहुत सारे बांग्लादेशी पश्चिम बंगाल की सीमा पर आ पहुंचे. यहां कई रिफ़्यूजी कैंप चलाए जा रहे थे. इन्हीं में से एक बोन्गांव रिफ़्यूजी कैम्प में हैज़ा (Cholera) फैल गया. कैम्प में Intravenous Fluids की कमी हो गई. इसलिए यहां की मृत्यु दर बढ़ने लगी. फिर डॉ. महालनोबिस ने मरीज़ों को ORS को देना शुरू कर दिया.
उनके इस कदम के सकारात्मक नतीजे आने लगे. उनके रिफ़्यूजी कैम्प की मृत्यु दर घटकर 3% हो गई. हालांकि, उनके इस फ़ॉर्मूले को मंजूरी अभी तक नहीं मिली थी. इस घटना के रिज़ल्ट और फ़ॉर्मूले को देखने के बाद ही ORS को मान्यता मिली. ये 20वीं सदी की सबसे बड़ी खोज मानी जाती है.
मिले कई पुरस्कार
इसके बाद डॉ. महालनोबिस ने WHO के लिए कई देशों में काम किया. उन्होंने यमन, अफ़गानिस्तान और मिस्र में डायरिया को कंट्रोल करने में मदद की. वो Royal Swedish Academy of Sciences के भी मेंबर थे. मेडिकल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी दिए गए. 2002 में Columbia University ने डॉ. महालनोबिस को Pollin Prize से सम्मानित किया.
थाईलैंड की सरकार ने 2006 में उन्हें Prince Mahidol Prize देकर उनका सम्मान किया. रिटायर होने के बाद भी वो कई प्रकार की रिसर्च में हिस्सा लेते रहे. साल 2022 में उनका निधन हो गया था. उनके फेफड़ों में इंफ़ेक्शन हो गया था और कई बढ़ती उम्र की बीमारियों ने भी उन्हें घेर रखा था.
इस दुनिया को छोड़ने से कुछ साल पहले ही वो अपनी पूरी संपत्ति को इंस्टीट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ को दान कर दिया था. उनका पूरा जीवन बच्चों और उनसे जुड़ी बीमारियों को को दूर करने को समर्पित रहा था.