ज़िंदगी के जिस मोड़ पर समझ नहीं आ रहा था क्या करूं और क्या नहीं? उस वक़्त ये खंडहर मेरे साथी बने

Kratika Nigam

हम कितने भी बड़े हो जाएं, कितने भी पैसे कमा कर ऐश-ओ-आराम से रहें. मगर कभी-कभी हम सबका मन करता है कि कहीं ऐसी जगह जाएं जहां शांति मिले. जहां कोई शोर न हो और न ही कोई जानता हो. बस उस जगह चले जाएं और कुछ वक़्त अपने साथ बिताएं. मगर ये जगह हमें पहचान में तभी आती है जब हम दुखी या परेशान होते हैं.

मैं आपको अपनी बात बताती हूं. मैं जब भी कमज़ोर या दुखी महसूस करती हूं तो मैं किसी शॉपिंग मॉल या फ़ाइव स्टार होटल नहीं जाती हूं. मैं ऐतिहासिक जगहों जिनको कुछ लोग खंडहर बोलते हैं. मैं उन्हीं जगहों पर जाना पसंद करती हूं. कुछ समय पहले की बात है मैं न करियर से ख़ुश थी और न ही अपने दोस्तों से. उन दोस्तों ने मुझसे मुंह फेरा था जिन्हें शायद मैं बहुत मानती थी. तबी एक दोस्त ने मुझे जयपुर बुलाया और मैं चली गई. मन से बहुत उदास थी कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्या करूं? 

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एक दिन उसने बोला चलो आज आमेर का क़िला देखने चलते हैं. मैं ख़ुश नहीं थी लेकिन चली गई. वहां गई तो बहुत ही सुकून मिला क्योंकि वो कि़ला बहुत बड़ा है. उसकी बनावट बहुत ही भव्य है. वहां की सबसे ऊंची दीवार पर बैठकर पूरे जयपुर शहर को देख रही थी सब ज़िंदगी की आपाधापी में भाग रहे थे. उनके देखकर एक ख़्याल आया कि मैं इस ज़िंदगी को पाने के लिए उदास रहती हूं, रोती रहती हूं. इसकी वजह से अपनी इस शांत और सुकून वाली ज़िंदगी को नज़रअंदाज़ कर रही हूं. तभी मैंने ख़ुद से वादा किया कि अब करियर के बारे में सोचूंगी लेकिन कभी उदास नहीं रहूंगी क्योंकि भगवान ने जो दिया है वो कम नहीं है. 

उस दिन एक और बात हुई वो ये थी कि मुझे दोस्त के रूप में कोई इंसान नहीं, बल्कि ये क़िले मिल गए, जो मुझे कभी धोखा नहीं देते. आज मैं अपने करियर और दोस्ती दोनों मेें सफ़ल हूं, ख़ुश हूं और मैं दिल्ली में हूं पर जब भी मन करता है यहां के मॉल्स या फ़ाइव स्टार होटल में नहीं, बल्कि खंडहरों में चली जाती हूं और कुछ देर वहां बिताकर ख़ुद को पा कर वापस आ जाती हूं. 

आप भी ढूंढिएगा, ऐसी कोई जगह ज़रूर होगी, जो आपकी दोस्त बन गई होगी या बन सकती होगी. 

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