21वीं सदी में संयुक्त परिवार की मिसाल, मिलिए सोलापुर के ‘दोईजोडे परिवार’ से जिसमें हैं 72 सदस्य

Maahi

Solapur Doijode Family: सोशल मीडिया के इस दौर में आये दिन कुछ न कुछ वायरल होता ही रहता है. इस बीच महाराष्ट्र के सोलापुर का एक परिवार भी इन दिनों सुर्ख़ियों में है. सुर्ख़ियों में रहने के पीछे का कारण है इसका संयुक्त परिवार (Joint Family) होना, जिसमें 10-15 नहीं, बल्कि पूरे 72 लोग हैं. मतलब ये कि इस परिवार के 72 लोग एक ही छत के नीचे हंसी-खुशी से रहते हैं. न्यूक्लियर फ़ैमिली के इस दौर में सोलापुर की दोईजोडे परिवार (Doijode Family) एकता की मिसाल है.

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चलिए जानते हैं आख़िर सोलापुर की दोईजोडे परिवार (Doijode Family) सुर्ख़ियों में क्यों है

सोलापुर की दोईजोडे फ़ैमिली (Doijode Family) इसलिए सुर्ख़ियों में है क्योंकि इसकी 4 पीढ़ियां एक साथ, एक ही घर में रहती हैं. इनका खाना-पीना भी साथ में ही होता है. मतलब ये कि फ़ैमिली के 72 लोगों के लिए एक साथ खाना बनता है. शॉपिंग से लेकर किसी ट्रिप पर जाने तक परिवार के सभी सदस्य जहां भी जाते हैं एक साथ जाते हैं.

BBC Marathi की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, सोलापुर की दोईजोडे फ़ैमिली (Doijode Family) मूल रूप से कर्नाटक से है. लेकिन क़रीब 100 साल पहले ये परिवार सोलापुर आ गया था. पिछले 100 सालों से ये परिवार व्यवसाय कर रहा है. इस फ़ैमली के 40 से 45 लोग अलग-अलग तरह के कारोबार करते हैं. इसलिए इनका कारोबार भी काफ़ी लंबा-चौड़ा है.

प्रतिदिन 3000 से 4000 रुपये का चिकन

दोईजोडे फ़ैमिली (Doijode Family) के खान-पान की बात करें तो ये साल भर का चावल, गेहूं और दाल एक साथ ख़रीद लेता है. इसमें क़रीब 40 से 50 बोरी लगती हैं. इसलिए राशन थोक में ख़रीदता पड़ता है. प्रतिदिन 1000 से 1200 रुपये की सब्ज़ियों और क़रीब 10 लीटर दूध लग की खपत होती है. वहीं नॉनवेज के लिए ‘दोईजोडे परिवार’ को प्रतिदिन 3000 से 4000 रुपये ख़र्च करने पड़ जाते हैं.

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फ़ैमिली के बच्चे नहीं जाते बाहर खेलने

दोईजोडे फ़ैमिली (Doijode Family) में इतने बच्चे हैं कि उन्हें बाहर जाकर दूसरे बच्चों के साथ खेलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. बच्चे आपस में ही एन्जॉय करते रहते हैं. इस परिवार में पैदा हुए और पले-बढ़े लोग तो आसानी से रहते हैं. लेकिन जो महिलाएं इसमें शादी कर आई हैं, उन्हें शुरू में एडजस्ट होने में काफ़ी मुश्किलें होती हैं.

दोईजोडे फ़ैमिली की बहू नैना दोईजोडे कहती हैं कि, जब मैं शादी के बाद इस परिवार का हिस्सा बनीं तो मुझे इस परिवार के संदस्यों की संख्या से डर लगता था. लेकिन मेरी सास, बहन और देवर ने मुझे घर में एडजस्ट करने में काफ़ी मदद की. लेकिन अब सबकुछ सामान्य लगता है.

दोईजोडे फ़ैमिली की अदिति दोईजोडे कहती हैं कि, ‘जब हम बच्चे थे, तो हमें कभी खेलने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता था. हमारे पास परिवार के इतने सारे सदस्य हैं कि हम आपस में ही खेल लेते थे. इसने हमें किसी और के साथ बात करने के लिए काफ़ी हिम्मती बनाया. इतने सारे लोगों को एक साथ रहते हुए देखकर मेरे फ़्रेंड्स काफ़ी ख़ुश होते हैं.

ये कहना ग़लत नहीं होगा कि हम भारतीयों ने 21वीं सदी की शुरुआत में ‘संयुक्त परिवार’ के कॉन्सेप्ट को खो दिया है. लेकिन सोलापुर का दोईजोडे परिवार (Doijode Family) इसकी मिसाल है.

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