ये कहानी है एक ऐसे विद्वान और महान यात्री की, जिसने 14वीं सदी में ही कर लिया था विश्व भ्रमण

Shankar

दुनिया अब ग्लोबल गांव बन चुकी है. इंटरनेट के ज़माने में आज सब कुछ बहुत आसान हो गया है. आजकल हर इंसान के पास एन्जॉए करने, छुट्टियां मनाने के लिए टूरिस्ट स्थलों और पसंदीदा जगहों की पूरी लिस्ट होती है. इंटरनेट और ग्लोबलाइज़ेशन का धन्यवाद, जो हमें छुट्टियों से काफ़ी पहले योजना बनाने की मोहलत दे देता है और आइडिया भी. आज आप जहां चाहे, वहां जा सकते हैं. क्योंकि आज हर जानकारी इंटरनेट के ज़रिये गूगल पर उपलब्ध है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब दुनिया ग्लोबल नहीं थी, संचार या परिवहन के आधुनिक साधन नहीं थे और इंटरनेट का ज़माना नहीं था, तब लोग कैसे यात्रा करते थे? कैसे कुछ लोग पूरी दुनिया तक घूम लेते थे?

दरअसल, सदियों पहले सिर्फ़ धार्मिक गतिविधियों के लिए ही यात्रा की अवधारणा हुआ करती थी, लेकिन आज यात्रा की अवधारणा बदल गई है. आज लोग एन्जॉए और फ़न के लिए ट्रैवेल करना चाहते हैं. आज लोग छुट्टियां मनाने के लिए ट्रैवेल करना चाहते हैं. लेकिन उस वक़्त एक ऐसा आदमी था, जो दूर देश का पता लगाने और धरती पर रहने वाले अन्य समाज के अस्तित्व की खोज करने के लिए अपना घर-बार छोड़ लंबे समय के लिए विश्व भ्रमण पर निकल गया था.

जी हां, 14वीं सदी का सबसे बड़ा और रोमांचकारी यात्री इब्न बतूता था. आज भले ही एक से बढ़कर एक विश्व भ्रमण करने वाले हो जाएं, लेकिन इब्न बतूता का नाम प्रमुखता से लिया जाता है.

इब्न बतूता की यात्रा का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने अपने जीवन के पूरे 30 साल अफ्रीका, यूरोप, मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीपों की यात्रा में गुज़ार दिये. कुल 75000 मिल की दूरी तय कर उन्होंने पूरे 44 से अधिक देशों की यात्रा की थी.

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इब्न बतूता महज़ 21 साल के थे, जब वे विश्व भ्रमण के लिए निकले थे.

साल 1304 में अफ्रीका के मोरक्को के तांजियर में काज़ियों (न्यायाधीश) के परिवार में जन्में इब्न बतूता ने इस्लामिक लॉ में अपनी शिक्षा हासिल की थी. जब वे 21 साल के थे, तब वे घर को छोड़ पहली यात्रा के रूप में हज़ जाने वाले कारवां में शामिल हो गये. लेकिन उनके अंदर दुनिया घूमने की ललक ने उन्हें घर वापस नहीं आने दिया और उन्होंने पूरी दुनिया घूमने और दूसरे देशों के बारे में पता लगाने का फ़ैसला किया.

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इब्न बतूता का भारतीय कनेक्शन

भारत सदियों से विदेशियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. वैसे तो समय-समय पर अनेक विदेशी यात्री भारत-भ्रमण के लिए आए, लेकिन उनमें से इब्न बतूता प्रमुख यात्री थे. उनकी भारत यात्रा के दौरान उन्हें डाकुओं ने लूट लिया था.

साल 1332 के अंत में इब्न बतूता अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते होते हुए भारत आए थे. उस वक़्त भारत में मुहम्मद बिन तुगलक का शासन था. तुगलक ने इब्न बतूता का काफ़ी गर्मजोशी से स्वागत किया था. तुगलक ने बतूता को राजधानी दिल्ली का काजी नियुक्त किया. बाद में इब्न को चीन का राजदूत भी नियुक्त किया गया और उसे चीन के बादशाह के पास राजदूत बना कर भेजा. मगर दिल्ली से प्रस्थान करने के कुछ दिन बाद ही गुजरात के रास्ते चीन जाते समय समुद्री डाकुओं ने बतूता पर हमला कर दिया और उन्हें पकड़ लिया. उन डाकुओं के चुंगल से निकलने में उन्हें दो दिन का समय लग लगा.

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लेकिन किसी तरह डाकुओं के चुंगल से निकल कर उन्होंने अपनी जान बचाई और भागकर कालीकट पहुंचे. कालीकट पहुंच कर वे वहां कुछ दिन रुके और फिर उसके बाद वे एक चीनी नौका पर सवार हुए, जो उन्हें उनके गंतव्य तक ले गई.

महान किताब ‘Rihla’ में इब्न बतूता की यात्रा का वर्णन है.

पूरी दुनिया घूमने के बाद बतूता घर लौटे और उन्होंने मोरक्को के सुल्तान Abu Inan Faris को अपनी यात्रा वृतांत सुनाया. यात्रा वृतांत सुनने के बाद सुल्तान ने इसे दस्तावेज में संग्रहित करवाने की आज्ञा दी. सुल्तान के आदेशानुसार उसके सचिव मुहम्मद इब्न जुज़ैय ने उसे लेखबद्ध किया. ऐसा कहा जाता है कि इब्न बतूता का बाकी जीवन अपने देश में ही बीता. Rihla, उनकी एक मात्र ऐसी पुस्तक है, जो उनकी पूरी यात्रा को बताती है. इस किताब में यह भी बताया गया है कि इब्न बतूता ने यात्रा के दौरान कम से कम दस बार शादी की थी. अपनी अलग-अलग पत्नियों से हुई संतानों को वो अफ्रीका, यूरोप और एशिया में छोड़ आए.

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हालांकि, इब्न बतूता के जीवन को लेकर कई तरह के मत हैं, जिन पर आज भी लंबी बहस जारी है. ऐसा माना जाता है कि वे लंबे समय तक अपने घर से दूर रहे. साल 1349 में वे घर वापस आ गये थे. वापसी के कुछ महीने पहले ही प्लेग बीमारी से उनकी मां की मौत हो गई थी और उनके पिता की मौत 15 साल पहले ही हो गई थी.

Feature image source: thelallantop

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