2 से 3 मिनट का ही था वो वाक़या, पर आज भी याद आता है तो सुकून मिलता है

Kratika Nigam

कभी किसी की मदद करने पर मन को बहुत शांति मिलती है और जब वो मदद किसी बुज़ुर्ग की करो तो वाकई अच्छा लगता है. हाल ही में मैंने कानपुर रेलवे स्टेशन पर ये नज़ारा देखा. दरअसल, हुआ ये कि एक अकंल-आंटी स्टेशन की सीढ़ियों पर अपना सामान चढ़ा रहे थे. उनकी उम्र 60 से तो ऊपर थी ही, लेकिन उन्होंने किसी से भी मदद नहीं मांगी.

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मेरी ट्रेन थी तो मैं उसका वेट कर रही थी. अगर सीढ़ी पर होती तो शायद मैं ही उनकी मदद कर देती थी. मगर दो लड़के थे उसी सीढ़ी पर जो अंकल आंटी के साथ ही चढ़ रहे थे. उन्होंने अंकल-आंटी से पूछा नहीं, मदद के लिए. बस उनका सामान उठा लिया क्योंकि वो लोग पूछते तो शायद वो लोग मना कर देते. इसलिए बिना पूछे ही उनका सामान सीढ़ी से चढ़ा दिया. 

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मैं ये सब देख रही थी. जब अंकल-आंटी और वो लड़के ऊपर पहुंच गए तो अंकल-आंटी ने उन्हें बहुत प्यार किया और आशीर्वाद दिया. फिर वो लोग भी चले गए.

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ये वाक्या कुछ 2 से तीन मिनट का ही था, लेकिन मुझे ये देखकर इतना सुकून मिला कि वो लोग आराम से पूरी सीढ़ी चढ़ गए. तो फिर उन लड़कों ने तो उनकी मदद की थी. अंकल-आंटी उम्र के जिस पड़ाव पर थे मेरे मम्मी-पापा भी उसी उम्र के हैं. अगर वो भी ऐसी किसी स्थिति में होते और उनकी कोई मदद करता तो मुझे कितना अच्छा लगता.

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इसलिए आगे से कभी किसी भी बुज़ुर्ग को मदद की ज़रूरत हो न तो कर दीजिएगा. आपके द्वारा की गई हेल्प से आपको तो सुकून मिलता ही है साथ ही औरों को भी अच्छा लगता है.

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