दिल्ली-कानपुर की उस रोड ट्रिप में जो मुझे महसूस हुआ था, पता नहीं वो हक़ीक़त था या वहम

Kratika Nigam

जब मैं छोटी थी तो मेरे एक अंकल असकर घर आया करते थे. उनके आने पर हम सब बहुत ख़ुश हो जाते थे क्योंकि वो हमें भूत की कहानियां सुनाते थे. उनकी कहानियों में हाईवे, जंगल और सुनसान जगह ज़रूर होती थीं. अभी कुछ दिन पहले की बात है मैं और मेरी फ़ैमिली कानपुर जा रहे थे. हमने आगरा-लखनऊ एकस्प्रेस-वे वाला रूट पकड़ा. हम लोग अपनी गाड़ी से दोपहर के 1 बजे निकले थे ट्रैफ़िक के चलते हमें काफ़ी देर हो रही थी. 

हाईवे पहुंचते-पहुंचते रात हो चुकी थी. हाईवे पर कुछ जगह तो लाइ्ट्स थीं, लेकिन कुछ जगह एक दम घनघोर अंधेरा. चारों तरफ़ सुनसान और सायं-सांय हो रही थी. तभी मेरी बहन बोल उठी चाचा ने एकबार जो हाईवे की कहानी सुनाई थी, ये नज़ारा भी कुछ वैसा ही है. मेरे तो रौंगटे खड़े हो गए.

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पूरे रास्ते न मैं वॉशरूम गई और न ही शीशा खोलकर बाहर झांकने की हिम्मत की. मुझे मोशन सिकनेस है तो मैं ज़्यादा देर गाड़ी में रह भी नहीं पाती. इसलिए थोड़ी दूर पहुंचकर मैंने गाड़ी रुकवा ली. हम सब गाड़ी से निकल कर थोड़ा खुली हवा में आए. मैं चारों तरफ़ देख रही थी, तो अचानक मेरी नज़र हाईवे किनारे पेड़ों पर गई. मुझे ऐसा लगा कि कोई मुझे देख रहा है. मैंने किसी से कुछ नहीं कहा. बस चुपचाप गाड़ी में बैठ गई.

ये सिलसिला वहीं नहीं ख़त्म हुआ हमने गाड़ी स्टार्ट की और हम निकल गए. गाड़ी आगे आ चुकी थी, लेकिन मैं अपनी सोच के चलते उसी जगह रुक गई थी. मुझे ऐसा लगा कि मेरी गाड़ी का कोई पीछा कर रहा है, लेकिन पूरे रास्ते कोई नहीं दिखा. 

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जब मैंने ये बात घर पर पहुंचकर सबसे शेयर की तो उन्होंने इसे मेरा वहम बताया. बहन बोली हो सकता है तुझे चाचा की उस कहानी के चक्कर में ऐसा लगा हो. मुझे आज भी नहीं पता उस दिन कुछ था या वो सिर्फ़ मेरा वहम था.

अगर आपको भी कभी ऐसा वहम हुआ हो तो हमसे कमेंट बॉक्स में शेयर ज़रूर करिएगा.  

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