इतिहास में दर्ज 12 सबसे अजीबो-ग़रीब फ़ैशन ट्रेंड, इनमें से कई बने मौत का कारण

Nripendra

इतिहास के पन्ने अगर ठीक से खंगाले जाएं, तो युद्धों व अनोखी परंपराओं के अलावा कई विचित्र चीज़े भी नज़र आती हैं. इसमें फ़ैशन ट्रेंड भी शामिल हैं. विश्व इतिहास में कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि लोग उस दौरान कई अजीबो-ग़रीब फ़ैशन अपनाते थे, जिन्हें शायद ही आज कोई अपनाएं. वहीं, जानकर हैरानी होगी कि फ़ैशन के लिए कपड़ों में कई ख़तरनाक चीज़ों का इस्तेमाल भी किया जाता है. आइये, इस ख़ास लेख में हम आपको बताते हैं इतिहास में दर्ज कुछ अनोखे और विचित्र फ़ैशन ट्रेंड, जिनमें से कई आपके होश उड़ा सकते हैं.   

1. Bliauts

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यह एक तरह की लंबी आस्तीन वाली ड्रेस होती है, जिसे 12 शताब्दी के दौरान यूरोपीय पुरुष और महिलाएं पहनते थे. भले इन्हें फ़ैशन के लिए पहना जाता था, लेकिन इन्हें पहनकर चलने-फिरने में परेशानी का सामना करना पड़ता था. ये कॉटन के साथ-साथ रेशम से भी बनाए जाते थे.   

2. Muslin Dresses

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ये मलमल की बनी ड्रेस होती थी. ये दिखने में भले ही आकर्षक लगती थी, लेकिन काफ़ी जोखिम भरी थी. इसका कपड़ा पतला होता था, इसलिए कड़ाके की ठंड में इसे पहनना यानी मौत को दावत देने जैसा था. वहीं, इसे लेकर कुछ ऐसी भी अफ़वाहें उड़ी थीं कि कुछ महिलाएं पानी व परफ़्यूम से मलमल के बने इन कपड़ों को थोड़ा भीगा लेती थीं, ताकि उनका आकर्षक शरीर दिख सके. 

वहीं, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मलमल की पोशाक के कारण पेरिस में 1803 के दौरान ‘इन्फ्लूएंज़ा’ का प्रकोप बढ़ गया था. इसमें कई महिलाओं की मृत्यु हो गई थी. 

3. Corsets

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ये भी एक अजीबो-ग़रीब ड्रेस थी. माना जाता है कि इसे कड़े फ़ैब्रिक से बनाया जाता था. वहीं, बाद में इसमें वेल मछली की हड्डियों, लकड़ी व स्टील का प्रयोग भी किया जाने लगा. माना जाता है कि इससे लगातार पहनने वाले कई शारीरिक समस्याओं का सामना करते थे.   

4. Bombasts

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बॉडी स्टफ़िंग, जिसे बॉम्बैस्ट के नाम से जाना जाता है. 16वीं शताब्दी के दौरान यह फ़ैशन महिलाओं और पुरुषों दोनों के बीच काफ़ी लोकप्रिय था. कपड़े फूले हुए लगें, इसलिए इनके अंदर कॉटन का इस्तेमाल किया जाता था. पुरुष बलवान दिखने के लिए अक्सर ऐसे कपड़ों का इस्तेमाल किया करते थे.  

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5. Chopines  

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ये एक तरह के ख़ास जूते हुआ करते थे. इन्हें लकड़ी, कढ़ाईदार मखमल व चमड़े से तैयार किया जाता था. इनका इस्तेमाल स्टेटस सिंबल के रूप में किया जाता था. वहीं, जिनके जूते ज़्यादा ऊंचे होते थे, उन्हें ज़्यादा अमीर माना जाता था.   

6.Stiff Starched Collars

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ये Detachable Collars होते थे, यानी इन्हें कपड़ों से अलग किया जा सकता था. माना जाता है कि इन्हें इस्तेमाल करना जोखिम भरा होता था, क्योंकि ये कड़े होते थे और इन्हें मोड़ा नहीं जा सकता था. सोते वक्त या नशे की स्थिति में इनसे व्यक्ति का गला घुट सकता था. साथ ही इनके कोने नोकदार हुआ करते थे, जो गले को चोट पहुंचा सकते थे.   

7. Crinoline

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इसे एक कड़ा पेटीकोट कहा जा सकता है, जो स्कर्ट के वॉल्यूम को बढ़ाने का काम करता था, जैसा आप तस्वीर में देख सकते हैं. इनका इस्तेमाल 18वीं शताब्दी के दौरान विक्टोरियन महिलाओं द्वारा किया जाता था. बाद में ‘स्टील केज क्रिनोलिन’ का निर्माण किया गया, जो प्रारंभिक कड़े पेटीकोट की भांति स्कर्ट को ज़्यादा वॉल्यूम देने का काम करता था. ऐसी ड्रेस घातक मानी गईं, क्योंकि इनसे कई महिलाओं की मौत हुई थी. ज़्यादातर मौतें कपड़ों के आग के संपर्क में आने से हुईं.   

8. Breast Flatteners

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इतिहास में फ़ैशन का एक वक़्त ऐसा भी आया, जब महिलाओं ने स्तनों को सपाट दिखाने के लिए Breast Flatteners अंडर गारमेंट्स का इस्तेमाल किया था.

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9. Hobble Skirts  

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ये तंग और लंबे फ्रेंच स्कर्ट थे. इन्हें पहनने वाली महिलाओं को छोटे-छोटे कद़मों के साथ आगे बढ़ना होता था, क्योंकि इन्हें पहनकर बड़े क़दम नहीं लिए जा सकते थे.   

10. Panniers

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ये भी कड़े पेटिकोट हुआ करते थे, जो स्कर्ट का वॉल्यूम बड़ा देते थे. इन्हें व्हेलबोन, लकड़ी व धातु से तैयार किया जाता था. विशेष अवसरों पर अमीर महिलाएं ऐसे Panniers का इस्तेमाल किया करती थीं. वहीं, इन्हें पहनकर दो महिलाएं एकसाथ प्रवेश द्वार से नहीं गुज़र सकती थीं और न ही एक साथ सोफ़े पर बैठ सकती थीं. वहीं, इन्हें पहनकर चलने में भी मुश्किल का सामना करना पड़ता था.   

11. Crakowes  

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ये ख़ास जूते हुआ करते थे, जिनकी नोक काफ़ी ज़्यादा बड़ी और पतली हुआ करती थी. ये जूते 14 वीं शताब्दी के दौरान यूरोप के पुरुषों में काफ़ी लोकप्रिय थे.   

12. Arsenic Dresses  

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विक्टोरिया के दौर में ऐसे बोटल-ग्रीन कपड़े काफ़ी ज़्यादा लोकप्रिय थे. इन कपड़ों में शेड को पाने के लिए बड़ी मात्रा में आर्सेनिक का उपयोग कर कपड़े को रंगा जाता था. वहीं, ऐसे कपड़ों को पहनने वाली महिलाओं को मतली, आंखों का धुंधलापन व स्किन एलर्जी का सामना करना पड़ता था.   

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