जानिए क्यों औरंगज़ेब ने बेटी ज़ेबुन्निसा को दी 20 साल की सज़ा और कैसे वो बन गई एक ‘कृष्ण भक्त’

Kratika Nigam

Facts About Princess Zebunissa: औरंगज़ेब एक ऐसा मुग़ल शासक था, जो अपनी काफ़ी चीज़ों के लिए चर्चा का विषय रहा है. अपने शत्रुओं से दुश्मनी हो या अपने बेटे के लिए शब्दकोश बनवाना, उसने अपने शासनकाल के दौरान कई हैरान करने वाले काम किए. इसलिए, औरंगज़ेब के जीवन से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं. इन्हीं में से एक, जो उसकी बेटी राजकुमारी ज़ेबुन्निसा से जुड़ी है. जो इतिहास के पन्नों में ज़्यादातर गुमनामी में ही रही हैं. औरंगज़ेब की बेटी एक बेहतरीन शायरा थी, जो अक्सर अपने पिता से छुपकर महफ़िलों और मुशायरों में जाती थी, क्योंकि उसे डर लगता था.

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आइए जानते हैं कि एक बेहतरीन शायरा होने के बाद भी ज़ेबुन्निसा को छुपकर मुशायरों में क्यों जाना पड़ता था?

Facts About Princess Zebunissa in Hindi: 15 फरवरी 1638 में जन्मीं ज़ेबुन्निसा मुग़ल शासक औरंगज़ेब और बेग़म दिलरस बानो की सबसे बड़ी संतान थीं. वैसे तो इनके बचपन के बारे में ज़्यादा पता नहीं चलता है, लेकिन कहते हैं कि ज़ेबुन्निसा का पढ़ने में काफ़ी मन लगता था, उन्हें दर्शन, भूगोल व इतिहास जैसे विषयों में महारत हासिल थी. इन विषयों को पढ़ने के बाद इनका मन साहित्य में रमने लगा, जिसमें इनके फ़ारसी कवि गुरु हम्मद सईद अशरफ़ मज़ंधारानी थे. बस यही से ज़ेबुन्निसा का मन साहित्य और शेरों-शायरी में लगने लगा. इसके अलावा, कहते हैं कि ज़ेबुन्निसा की मंगनी अपने चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से हो गई थी, लेकिन सुलेमान की कम उम्र में मौत हो जाने के कारण दोनों की शादी नहीं हो सकी.

Facts About Princess Zebunissa in Hindi: पढ़ने की शौक़ीन जेबुन्निसा ने बहुत कम उम्र में ही बड़ी-बड़ी लाइब्रेरियों की किताबों को पढ़ डाला था. जब सारी किताबें ख़त्म हो गईं, तो उनके पढ़ने के लिए बाहर से किताबें मंगवाई जाने लगीं. अपनी बेटी की बुद्धि और सादगी के चलते वो औरंगज़ेब की ख़ास बेटी बन गई थी, जिसके चलते वो उन्हें 4 लाख सोने की अशर्फ़ियां ऊपरी ख़र्च के तौर पर देते थे, जिससे वो ग्रंथों का आम भाषा में अनुवाद करवाती थीं.

जैसे-जैसे वो साहित्य में पारंगत होने लगीं वैसे-वैसे उन्हें मुशायरों में बुलाया जाने लगा, लेकिन कट्टर पिता औरंगज़ेब इसके सख़्त ख़िलाफ़ थे. पिता के ख़िलाफ़त दिखाने के बावजूद ज़ेबुन्निसा महफ़िलों में शिरकत करती थीं. ज़ेबुन्निसा की शायरियां सुनने के लिए औरंगज़ेब की दरबारी कवि भी उन्हें महफ़िलों में बुलाया करते थे. ज़ेबुन्निसा फ़ारसी में कविताएं लिखतीं और अपने असली नाम के जगह मख़फ़ी नाम से कविताएं लिखा करती थीं.

ज़ेबुन्निसा का साहित्य जितना सुंदर था उससे कहीं ज़्यादा वो भी ख़ूबसूरत थीं, वो समकालीन फ़ैशन के अनुसार ही ख़ुद को तैयार करती थीं. ज़ेबुन्निसा मुशायरों में जाने पर सफ़ेद पोशाक और उसके साथ सफ़ेद मोती पहनती थीं. मोती उनका सबसे फ़ेवरेट रत्न था. कहते हैं कि, ज़ेबुन्निसा ने एक ख़ास तरह की कुर्ती पहनती थी, जो तुर्क़स्तान की पोशाक से मिलती-जुलती थी, इसे अन्याया कुर्ती कहते थे.

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ज़ेबुन्निसा के साहित्य के साथ-साथ उनकी प्रेम कहानी भी बहुत प्रचलित रही है. जिनमें महाराजा छत्रसाल की प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. कहते हैं कि एक महफ़िल के दौरान ज़ेबुन्निसा हिंदू बुंदेला महाराज छत्रसाल से मिलीं और उन्हें प्रेम हो गया. मगर महाराजा छत्रसाल से औरंगज़ेब की कट्टर दुश्मनी थी और औरंगज़ेब कभी नहीं चाहता था कि धार्मिक तौर पर उसके परवार का कोई भी सदस्य हिंदू राजा से जुड़े. इसलिए वो अपनी सबसे प्यारी बेटी से नाराज़ हो गया.

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औंरगज़ेब ने अपनी बेटी को बहुत समझाया, जब वो नहीं मानी तो उन्हें दिल्ली के सलीमगढ़ क़िले में नज़रबंद करवा दिया. अपनी उम्रक़ैद की सज़ा के दौरान पिता से नाराज़ ज़ेबुन्निसा श्रीकृष्ण भक्त हो गईं और काफ़ी सारी रचनाएं कृष्ण भक्ति में डूबकर लिखीं. ज़ेबुन्निसा का क़ैद में रहने पर भी साहित्य से मन नहीं हटा उन्होंने 20 सालों में क़रीब 5000 रचनाएं लिख डालीं.

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आपको बता दें कि ज़ेबुन्निसा की ये रचनाएं उनकी मौत के बाद दीवान-ए-मख़्फ़ी के नाम से छपीं, जो आज भी ब्रिटिश लाइब्रेरी और नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ पेरिस में रखी हुई हैं. इनकी मौत मई, साल 1702 हुई थी, इन्हें काबुली गेट के बाहर तीस हज़ारा बाग़ में दफ़नाया गया था.

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