रतलाम(Ratlam) मध्य प्रदेश का एक मशहूर ज़िला है, जो राज्य के मालवा इलाके में आता है. इस शहर की स्थापना 200 साल पहले हुई थी, तब इसे रत्नापुरी के नाम से जाना जाता था. रतलाम एक रेलवे जंक्शन भी है जहां पश्चिम भारत से उत्तर भार आने वाली ट्रेन्स रुकती हैं.
रतलाम की एक चीज़ ऐसी भी है जो दुनियाभर में फ़ेमस है, वो है रतलामी सेव. रतलाम के घर-घर में ये सेव हर दिन खाया जाता है. यही नहीं शादी, समारोह और छोटे आयोजनों में भी रतलामी सेव(Ratlami Sev) को जमकर परोसा और खाया जाता है. बेसन, लौंग, काली मिर्च और अन्य मसालों से बनने वाला ये सेव बहुत ही स्पाइसी होता है.
चाय के साथ इसे खाने में बड़ा मज़ा आता है. इसे लौंग सेव और इंदौरी सेव भी कहा जाता है. रतलामी सेव की खोज का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है. आज हम ख़ास आपके लिए इस टेस्टी स्नैक का इतिहास लेकर आए हैं. इसे रतलामी सेव खाते हुए ज़रूर पढ़ियेगा.
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200 साल पुराना है इसका इतिहास
रतलामी सेव का इतिहास 200 साल से भी अधिक पुराना है. इसकी जड़ें जुड़ी हैं आदिवासियों और मुग़लों से. दरअसल, 19वीं सदी में कुछ मुग़ल शाही परिवार के लोग रतलाम आए थे. उन्हें तब सेवैंया खाने की इच्छा हुई. सेवइयां गेहूं से बनती है और उस दौर में रतलाम में गेहूं उगाया नहीं जाता था. ये तो अमीरों का भोजन हुआ करता था, ग़रीब लोग तो चना, बाजरा, जौ आदि की रोटियां खाया करते थे.
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इसे भीलड़ी सेव भी कहते थे
जब उन्हें सेवइयां नहीं मिली तो उन्होंने वहां रहने वाली भील जाति के आदिवासियों से बेसन से सेवइयां बनाने को कहा. इस तरह रतलामी सेव की पहली वैरायटी तैयार हुई. इसे पहले भीलड़ी सेव भी कहा जाता था. समय के साथ इसमें रतलाम के लोगों ने कई एक्सपेरिमेंट किए और इसे मसालों से बनाना शुरू कर दिया. ये सेव नर्म, खस्ता और कुरकुरा होता है, जो इसे दूसरे सेव से अलग बनाता है.
पीएम मोदी को भी पसंद है रतलामी सेव(Ratlami Sev)
तब से ये रतलामी सेव का स्वाद पूरे एमपी में फैल गया. इसके बाद ये धीरे-धीरे पूरे भारत में और विदेशों तक इसकी धूम हो गई. यही नहीं पीएम मोदी और एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान को भी रतलामी सेव ख़ूब पसंद है. 200 साल से अधिक पुरानी इस सेव की अब मार्केट में कई फ़्लेवर उपलब्ध हैं. इनमें लौंग, हींग, लहसुन, काली मिर्च, पाइनएप्पल, टमाटर, पालक, पुदीना, पोहा, मैगी से लेकर चॉकलेट फ्लेवर तक शामिल हैं.
2017 में मिला GI टैग
2017 में रतलामी सेव को GI टैग मिला था. ये एक प्रकार का लेबल होता है, जिसमें किसी फ़ूड/प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है. रतलाम में इस सेव की रोज़ाना 10 से 15 टन की खपत होती है. शहर में इस सेव को बनाने-बेचने वाली छोटी-बड़ी 500 दुकानें हैं. यहां के व्यापारियों का कहना है कि इस सेव की इतनी खपत है कि रोज़ाना की डिमांड पूरी करना कई बार उनके लिए मुश्किल हो जाता है.
रतलामी सेव(Ratlami Sev) से जुड़ा ये इतिहास आपको तो पता चल गया, अब इसे टेस्ट करते-करते अपने दोस्तों से भी शेयर कर दो.