Uttar Pradesh’s Bifan Devi Feeds The Poor: भारत में अन्य समस्याओं के अलावा कुपोषण भी एक बड़ी और गंभीर समस्या है, जिससे एक बड़ी आबादी ग्रसीत है. विश्व बैंक की 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुपोषण अन्य BRICS सदस्य देशों की तुलना में दो से सात गुना अधिक है. वहीं, 2021 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 116 देशों में से 101 वें स्थान पर है. इससे भारत में कुपोषण की स्थिति को साफ़ समझा जा सकता है.
आइये, अब विस्तार से पढ़ते हैं (Uttar Pradesh’s Bifan Devi Feeds The Poor) आर्टिकल
चाची की रसोई
Uttar Pradesh’s Bifan Devi Feeds The Poor: ये अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है कि कुछ व्यक्ति सीमित आय अर्जित करने के बावजूद अपनी इनकम का एक बड़ा हिस्सा समाज सेवा में लगा देते हैं. इसमें उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की बिफन देवी भी शामिल हैं, जो अपने पति कल्लू यादव के साथ आसपास के क़रीब 8 गांवों में ख़ुद जाकर ग़रीबों का पेट भरने का काम कर रहे हैं.
बच्चे भी देते हैं मां-पिताजी का साथ
बिफन देवी अपने परिवार के साथ सोनभद्र (उत्तर प्रदेश) के राजपुर गांव में रहती हैं. दोनों की एक छोटी राशन की दुकान है और जो भी पैसा कमाते हैं उसका एक बड़ा हिस्सा ग़रीबों का पेट भरने में ख़र्च कर देते हैं. इस काम में उनके दो बेटे भी साथ देते हैं. बिफन देवी कहती हैं कि “मुझे ग़रीबो को खाना खिलाकर ख़ुशी मिलती है. मेरी कोशिश है कि कोई भी भूखा न रहे.”
खाना बनाते वक़्त जल गईं थी बिफन देवी
Uttar Pradesh’s Bifan Devi Feeds The Poor: बिफन देवी अपनी दुकान के सामान से ही ग़रीबों के लिए खाना पकाती हैं. जब खाना बन जाती है फिर पति के साथ नज़दीकी 7 से 8 गांवों में खाना ले जाकर वहां के ग़रीबो को खिलाती हैं. क़रीब 100 लोगों को रोज़ाना खाना खिलाने का काम कर रही हैं बिफन देवी. वहीं, एक बार खाना पकाते-पकाते वो जल भी गईं थी, लेकिन उन्होंने ये समाज सेवा का काम नहीं छोड़ा. इस बात पर बिफन देवी कहती हैं कि, “जलने से मेरे घाव में जलन होती थी, लेकिन जैसे ही ग़रीबों को बारे में सोचने लगी जाती थी, तो मेरी ख़ुद की तकलीफ़ कम लगने लगती थी.”
भले एक दिन में तीन वक़्त न ही सही, लेकिन अगर दिन में एक वक़्त का खाना ग़रीबों को दे सकें, तो कोई भूख से नहीं मरेगा
-बिफन देवी
क़रीब 60 हज़ार महीने का ख़र्च
Uttar Pradesh’s Bifan Devi Feeds The Poor: बिफन देवी और उनके पति क़रीब 60 हज़रा रुपए महीने के लोगों की सेवा में ख़र्च कर देते हैं. वो जितना कमाते हैं उससे बस ख़ुद का और ज़रूरतमंदों का पेट भर पाते हैं. बिना सेविंग की चिंता किए वो दिल खोलकर ग़रीबों को पेट भर रहे हैं. वहीं, बचपन से माता-पिता को सेवा करते देख, उनके बच्चे भी इस काम में अपनी भागीदारी देते हैं.