Rabri Gram: बनारस से बंगाल पहुंची रबड़ी का कमाल, ‘रबड़ी ग्राम’ के लोगों को बना रही है मालामाल

Nikita Panwar

Rabri Making Village ‘Rabri Gram’ Unique Story: मिठाइयों से पेट तो भर जाता है, लेकिन दिल नहीं भरता है. वैसे तो हर एक मिठाई की अपनी ख़ासियत है. लेकिन भाई! दूध को खौला-खौला कर उसमें बादाम और किशमिश मिलाकर बनाई जाने वाली ‘रबड़ी’ की तो बात ही अलग है. लेकिन जितनी मीठी रबड़ी लगती है. उतनी ही यूनिक इसके पीछे की कहानी भी है. बंगाल के हुगली जिले में ‘रबड़ी ग्राम’ से प्रसिद्ध इस गांव में घुसते ही आपको रबड़ी की सौंधी-सी खुशबू आनी शुरू हो जाएगी. इस रबड़ी ने देखिए कैसे लोगों को मालामाल बना दिया. जिसकी आगे की कहानी हम इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे.

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चलिए जानतें हैं मीठी से रबड़ी की यूनिक कहानी-

रबड़ी का इतिहास काफ़ी प्राचीन और यूनिक है. क्योंकि रबड़ी दूसरी मिठाइयों के साथ घुल-मिल जाती है. इमरती और रबड़ी, शाही टुकड़े में भी रबड़ी का ही इस्तेमाल होता है. वैसे तो रबड़ी ने बहुत लंबा सफ़र तय किया है.

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लेकिन ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले श्री कृष्णा की नगरी मथुरा से रबड़ी का इतिहास शुरू हुआ था. बाद में रबड़ी मथुरा से शिव शंकर की नगरी ‘वाराणसी’ जा पहुंची. जहां इसके स्वाद में कई तरह के बदलाव किये गए और दूध को पकाकर मलाई और रबड़ी दोनों बनाई जाने लगी.

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वाराणसी के बाद, रबड़ी की पॉपुलैरिटी काफ़ी बढ़ गई और ये लखनऊ, मुंबई, गुजरात जैसी कई और जगहों पर पॉपुलर होने लगी.

Moha mushkil

इस तरह से ये रबड़ी जा पहुंची बंगाल. जहां इसे बनाने का प्राचीन तरीका आज तक कायम है. जी हां, हुगली जिले ‘रबड़ी ग्राम’ नाम से प्रसिद्ध इस गांव का नाम ही रबड़ी ग्राम पर पड़ चुका है. इस जगह का नाम रबड़ी ग्राम इसीलिए रखा गया, क्योंकि वहां के अधिकतर लोगों की रोज़ी-रोटी चलती है रबड़ी के बिजनेस से.

मौलिक रूप से इस गांव का नाम चंडीतला अनिया गांव था. क्योंकि यहां के लोगों का घर चलता है रबड़ी बिज़नेस से इसीलिए इस गांव का नाम बदल दिया गया. साथ ही इस गांव में घुसते ही आपको रबड़ी की सौंधी सी खुशबू आएगी.

Moha mushkil

इस गांव के हर घर में आपको रबड़ी की छोटी सी फैक्ट्री देखने को मिलेगी. जिससे उनका रोज़गार चलता है. साथ ही इस गांव में 100 से ज़्यादा घर हैं. जहां लोग कई सालों से यही बिज़नेस कर रहे हैं. इस गांव में रबड़ी 300-400 रुपये किलो मिलती है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो रबड़ी के कारण इस गांव के लोगों को रोजगार मिला है. यहां के अधिकतर लोगों का जीवन व्यापन करने का यही साधन है.

साथ ही पहले रबड़ी को काफ़ी ट्रेडिशनल तरीके से लकड़ियों और चूल्हे पर बनाते थे. लेकिन बीतते समय से साथ-साथ रबड़ी गैस पर बनाई जाने लगी. मगर खाने वाले कहते हैं कि रबड़ी के स्वाद में अभी भी वही मिठापन है.

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कई रिपोर्ट्स के अनुसार, कहा जाता है कि रबड़ी वाराणसी से सीधे बंगाल आई. जिसका इतिहास 1400 AD के चंडीमंगला में देखने को मिलेगा.

अब पता चला कि रबड़ी इतनी मीठी क्यों लगती है.

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