Interesting Story Behind Papad:- पापड़ कितना स्वादिष्ट होता है और लोग कितना पसंद करते हैं, भला ये कोई बताने वाली बात थोड़ी है. इसका स्वाद फ़ीकी से फ़ीकी डिश को स्पेशल बना देता है. जैसे कहा जाता है कि, “खिचड़ी के 4 यार (घी, पापड़, दही और अचार)”. दाल और मसालों के मिश्रण से बने पापड़ के इतिहास की जड़ें पाकिस्तान से जुड़ी हैं. चलिए इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम पापड़ के इतिहास को जानते हैं.

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चलिए नज़र डालते हैं पापड़ के अनोखें इतिहास पर (Interesting Story Behind Papad)-

सिंधी और पापड़ का अनोख़ा रिश्ता है

वैसे तो पापड़ खाना हम सबको बहुत पसंद है. लेकिन अगर हम सिंधी लोगों की बात करें, तो उनका रिश्ता पापड़ के साथ बहुत ही प्यारा और विचित्र है. अक्सर हमने देखा होगा कि अगर घर पर कोई मेहमान आता है, तो उनका स्वागत पानी के साथ किया जाता है. लेकिन अगर आप किसी सिंधी के घर जा रहे हैं, तो वहां आपका स्वागत पानी और पापड़ पेश करके किया जाता है. सिंधी हिन्दू लोगों के जड़ें सिंध (पाकिस्तान) प्रांत और बलूचिस्तान से है.

साथ ही सिंध (पाकिस्तान) पापड़ बनाने के लिए बहुत ही अच्छी और सही जगह मानी जाती थी. क्योंकि वहां वायु और उच्च तापमान पापड़ बनाने के लिए बहुत ही अच्छा था. जब भारत के विभाजन के बाद अधिकांश सिंधी हिन्दू भारत में आए तब पापड़ भी हमारे देश का हो गया.

वहां पापड़ लोगों का मूल भोजन बन गया था. क्योंकि पापड़ शरीर में पानी की भरपाई और शरीर तरोताज़ा रखने का काम करता था. पापड़ की इतनी ख़पत के चलते वहां लोग पापड़ बनाकर ही पैसे कमाते थे. जिसमें वो (उड़द दाल, जीरा और काली मिर्च) से पापड़ बनाते थे.

विभाजन के बाद जब सिंधी भारत आए, तो उन्हें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. क्योंकि अक्सर लोग उनके सिंध के होने के कारण उनकी बोली और रहन-सहन का मज़ाक बनाते थे. भारत के लोग अक्सर उन्हें “पापड़ खाऊ” के नाम से पुकारते थे. लेकिन यही पापड़ शरणार्थियों के लिए एक मात्र भोजन भी बन था.

उस दौरान बहुत सी महिलाएं अपने बच्चों का पेट भरने के लिए पापड़ और अचार बेचा करती थी. उनके लिए ये फ़ेमस डिश पेट भरने का एक साधन बन चुका था.

उन शरणार्थी कॉलोनी में, सिंधी महिलाएं पापड़ का झोला लेकर और दूसरे कंधे पर अपने बच्चों के लेकर चिलचिलाती धूप में घूमा करती थीं.

विभाजन के दौरान, अधिकांश सिंधी उल्हासनगर और महाराष्ट्र के कल्याण में मिलिट्री बैरक में अपनी ज़िन्दगी दुःख और पीड़ा में काट रहे थे. आज अगर पापड़ हमारी थाली में है, तो उसके पीछे सिंधी लोगों की परिश्रम है. सच में इस स्वादिष्ट पापड़ की भारत आने की कहानी दुखभरी है.