हम सभी रात को घोड़े-गधे बेच कर सोते हैं. कुछ तो ऐसे होते हैं कि कान के नीचे से ट्रेन गुज़र जाए तो भी करवट बदल कर पसरे रहते हैं. कहने का मतलब है कि आसपास क्या हो रहा है, हमें कुछ भी सुनाई नहीं देता. सवाल ये है कि ऐसा क्यों है? क्या सोते वक़्त हमारे कान बंद हो जाते हैं? (Why We Can Not Hear Sounds While Sleeping)
आज हम आपको इसी सवाल का जवाब देंगे-
सोते वक़्त क्यों नहीं सुनाई देती आवाज़?
ऐसा नहीं है कि सोते वक़्त हमारे कान बंद हो जाते हैं. वो तो वैसे ही काम करते हैं, जैसे दिन-भर काम कर रहे थे. यानि साउंड हमारे कानों से होकर दिमाग़ में जाता है. फिर सारा खेल दिमाग़ में ही होता है.
दिमाग़ की कार्यप्रणाली ही ऐसी होती है, जो देखने-सुनने सहित सभी तरह की संवेदनाओं को नियंत्रित करती है. गहरी नींद में हमारा दिमाग़ डिसाइड कर लेते हैं कि आसपास की होने वाली आवाज़ों, गतिविधियों और गंधों को नज़रअंदाज करना है, जिन्हें जागते समय बिना किसी प्रयास के ही पहचान लेते हैं और नज़रअंदाज नहीं कर पाते हैं.
Why We Can Not Hear Sounds While Sleeping
हमारा दिमाग़ बिल्कुल फ़िल्टर की तरह काम करता है. यानि आवाज़ें हमारे कान से होकर दिमाग़ तक पहुंचती है, फिर दिमाग सूचनाओं के संकेत छानने का काम करता है और तय करता है कि क्या हमें उस साउंड पर रिएक्ट करना है या फिर सोते रहना है. यही वजह है कि हमारी नींद बनी रहती है और शरीर आराम कर लेता है. साथ ही, सोते वक़्त हमें आसपास क्या चल रहा है, उसे याद भी नहीं रखना पड़ता.
फिर हम तेज़ आवाज़ से चौंक कर क्यों उठते हैं?
अब सवाल ये है कि कभी-कभी कोई तेज़ आवाज़ सुन कर हम चौंक कर उठ क्यों जाते हैं? जैसा कि बताया दिमाग़ फ़िल्टर की तरह काम करता है. यानि वो तय करता है किस आवाज़ को इग्नोर करना है और किस पर रिएक्ट करना है.
वजह है हमारे शरीर का सुरक्षा तंत्र, जो नींद में भी एक्टिव रहता है. इसमें छोटी-मोटी आवाज़ों को तो दिमाग़ इग्नोर कर देता है, लेकिन आसपास बहुत तेज आवाज होती है उससे हमारी नींद टूट जाती है. और हम चौंक कर उठा जाते हैं. साथ ही संवेदनशील आवाज़ें सुनकर भी हमारी नींद खुल जाती है.
मसलन, दरवाज़े की घंटी या फ़ोन का साउंड. या फिर किसी के रोने-चिल्लाने की आवाज़. ऐसी सभी आवाज़ें जो हमें किसी ख़तरे या चेतावनी का संकेत देती हैं, उन्हें सुनकर हमारा दिमाग हमें जागने पर मजबूर कर देता है. इससे हम फैसला ले पाते हैं कि हमें अपनी सुरक्षा के लिए कुछ कदम उठाने हैं या नहीं. इसके पीछे वजह मानव का विकास रहा है. पहले जब जंगलों और गुफ़ाओं में इंसान रहता था तो वो पूरी तरह लापरवाह होकर नहीं सो सकता था. हमारी इस आदत ने हमारे भीतर एक सुरक्षा तंत्र तैयार कर दिया.
हालांकि, सभी में आवाज़ों के प्रति संवेदनशीलता का स्तर अलग-अलग होता है. यही वजह है कि कुछ लोगों की नींद आसानी से नहीं खुलती.
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