मज़दूरों के घर लौटने की जद्दोजहद की ये 6 ख़बरें, चीख-चीखकर हमसे पूछ रही हैं, ‘इंसानियत कहां है?’

Sanchita Pathak

मज़दूर हैं इसलिए मारे जा रहे हैं,

अमीर होते तो ट्रैवल हिस्ट्री छिपाने पर भी छोड़ दिए जाते

आज से देश में लॉकडाउन 4 शुरू हो गया है. देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा, लॉकडाउन में पैदल चलकर घर जाने को मजबूर है. ट्रेन, बसें, आर्थिक मदद के बावजूद रोज़ ही सड़क दुर्घटनाओं की ख़बरें आ रही हैं. जहां एक तरफ़ हम बाहर जाने के लिए तड़प रहे हैं वहीं देश के लाखों लोग, घर पहुंचने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. 

श्रमिक ट्रेनों में रेजिस्ट्रेशन के लिए गाज़ियाबाद के राम लीला मैदान पर उमड़ी हज़ारों की भीड़ 

सोमवार को गाज़ियाबाद के रामलीला मैदान में लोगों के मन में मौत का डर नहीं, आंखों में घर जाने की उम्मीद दिखी. हज़ारों मज़दूर, उत्तर प्रदेश तक चलाई जाने वाली 3 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के लिए रेजिस्ट्रेशन करवाने के लिए पहुंचे थे. गाज़ियाबाद प्रशासन ने मज़दूरों को मैदान में पहुंचने को कहा था, जहां स्क्रीनिंग और रेजिस्ट्रेशन होना था. 

बच्चों को कंधे पर टांगकर घर पहुंचने की कोशिश में एक मज़दूर 

Hindustan Times

अपने 4 और 2.5 साल के बच्चों को कंधे पर श्रवण कुमार की तरह टांगकर, रुपाया टुड़ू, ओडिशा के जाजपुर से 120 किलोमीटर चलकर, मयूरभंज पहुंचे. रुपाया ने बताया कि जिस ईंट भट्टी में वे काम करते थे वो बंद हो गई, जिसके बाद उन्होंने घर जाने का निर्णय लिया. टुड़ू 7 दिनों तक चलने के बाद घर पहुंचे. 

औरैया हादसे में मरे बेटे के शव को लाने के लिए ख़र्च किए 19000 

Indian Express

कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के औरैया ज़िले में सड़क दुर्घटना में 26 मज़दूर मारे गये थे और कई घायल हो गये थे. मारे गये मज़दूरों में से था 21 वर्षीय नीतीश. झारखंड के पलामू ज़िले का रहना वाले नीतीश के शव को लाने के लिए उसके पिता, सुदामा को 19,000 ख़र्च करने पड़े. 

दिव्यांग दोस्त के साथ 5 दिनों तक चलता रहा एक शख़्स 

News D

नागपुर के अनिरुद्ध और मुज़फ़्फरनगर के गयूर, जोधपुर के एक क्वारिंटीन सेंटर में मिले. दोनों में कोविड19 के लक्षण नहीं थे लेकिन उन्हें आईसोलेशन में रहना पड़ा. 8 मई को जब वे आइसोलेशन से निकले तो उन्हें एक बस ने भरतपुर छोड़ा. गयूर अपनी ट्राइसाइकिल पर थोड़ी दूर ही चले थे कि अनिरुद्ध को पता चल गया कि उन्हें तकलीफ़ हो रही है. इसके बाद अनिरुद्ध ने अपने दोस्त के साथ मुज़्फ़्फ़रनगर तक चलने का फ़ैसला किया. 12 मई को दोनों मुज़्फ़्फ़रनगर पहुंचे. 

बीवी बच्चों को 3 दिन तक पानी पिलाकर, ठेले पर 1200 किलोमीटर तय किए 

News18

पंजाब से मध्य प्रदेश के छतरपुर तक ठेले पर चिलचिलाती धूप में 1200 किलोमीटर का सफ़र तय करके लखनलाल और उसका परिवार अपने घर पहुंचा. इस शख़्स ने 1 हफ़्ते तक ठेला चलाया. इस परिवार को 1-2 जगह खाने को मिला पर इसके अलावा उनका काम पानी से ही चल रहा था. लखनलाल को उसके मकान मालिक ने निकाल दिया. उसे टोल फ़्री नंबर पर फ़ोन करने पर भी कोई मदद नहीं मिली. 

रिक्शे से शुरू किया, दिल्ली से घर तक का सफ़र

India Today

पैसे और खाने के अभाव में बिहार के तीन दोस्तों ने दिल्ली से बिहार के खगड़िया स्थित अपने घर की यात्रा रिक्शे पर शुरू की. रिपोर्ट्स के अनुसार, ये तीनों 5 दिनों में दिल्ली से लखनऊ पहूंचे. ट्रक और बस वाले इनसे 5000 रुपये मांग रहे थे जिसके बाद उन्हें रिक्शे से सफ़र करने का निर्णय लेना पड़ा.

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