पश्चिम बंगाल का ये मछुआरा हर रोज़ गंगा तट से समेटता है कई क्विंटल प्लास्टिक, ताकि गंगा मैली न हो

Akanksha Tiwari

एक ओर जहां कुछ लोग गंगा तट पर प्लास्टिक और कचरा फैलाने में यक़ीन रखते हैं. वहीं दूसरी ओर एक शख़्स ऐसा भी है, जो कचरा फैलाने के बजाये उसे समटने में यक़ीन रखता है. इस महान और सराहनीय कार्य करने वाले शख़्स का नाम Kalipada Das है.

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48 वर्षीय Kalipada Das पश्विम बंगाल से हैं और अपने दिन की शुरुआत Beldanga के Kalaberia से करते हैं. यूं तो Kalipada फ़िशरमैन थे, पर अब गंगा तट से प्लास्टिक उठाने का काम करते हैं. इसके साथ ही उनके दिन का अंत Behrampore के भागीरथ ब्रिज या उससे भी दूर जा कर होता है. हैरत वाली बात ये है कि इस शख़्स ने कभी ‘नामामि गंगे’ योजना के बारे में भी नहीं सुना. इसके बाद भी वो गंगा सफ़ाई में अपना अहम योगदान दे रहे हैं. 

इसके साथ ही उन्हें फ़िशरमैन से Plastic Lifter बनने में गर्व है. वो हर एक घाट पर नाव चलाते-चलाते वहां पड़ी प्लास्टिक समटते हैं, ताकि गंगा स्वच्छ रहे. मीडिया से बातचीत के दौरान Kalipada ने ये भी कहा कि ‘किसी सरकारी या गैर-सरकारी संस्थान को गंगा में पड़े प्लास्टिक की परवाह नहीं है. मैं हर रोज़ गंगा में पड़े वेस्ट प्लास्टिक को उठाता हूं.’ 

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इसके साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि हर घाट पर उनकी एक दुकान भी है, जहां वो 5 से 6 दिन के भीतर लगभग 2 क्विंटल प्लास्टिक की बोतलें जमा करता हूं. फिर इन्हें रिसाइकलिंग के लिये बेच देता हूं. इसके ज़रिये वो लगभग 2400 से 2500 रुपये कमा लेते हैं. मीडिया से बातचीत के दौरान आगे उन्होंने ये भी कहा कि ‘मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूं. पर मैंने देखा कि पढ़े-लिखे लोग प्लास्टिक बोतल का इस्तेमाल करते हैं और फिर उसे गंगा में फेंक देते हैं.’ 

अगर एक बिना पढ़ा-लिखा शख़्स प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को समझ सकता है, तो हम पढ़-लिख कर भी ये बात क्यों नहीं समझना चाहते? 

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