दिन में टीचर तो रात में कुली, ग़रीब बच्चों को पढ़ाने के लिए दो-दो नौकरियां कर रहे ओडिशा के नागेशु पात्रो 

Vidushi

Odisha Coolie Inspiring Story : आसान नहीं है इस दुनिया में नाम कमाना, इसके लिए कड़ी मेहनत और काफ़ी संघर्ष करना पड़ता है. ये लाइन ओडिशा के गंजाम जिले में रहने वाले 31 वर्षीय नागेशु पात्रो (Nageshu Patro) पर बिल्कुल सटीक बैठती है. ओडिशा के गंजाम जिले के बेरहामपुर रेलवे स्टेशन पर लाल कपड़े पहने, अंगोछा डाले और सिर व कंधे पर यात्रियों का सामान डाले एक शख़्स की आवाज़ सुनाई पड़ती है. ये शख़्स कोई और नहीं बल्कि नागेशु पात्रो हैं. लोग इन्हें मास्टरजी कहकर भी पुकारते हैं.

लोग इन्हें मास्टर जी मज़े में नहीं कहते. नागेश पात्रो असली में एक टीचर हैं. वो दिन में एक प्राइवेट कॉलेज में एक गेस्ट लेक्चरर के रूप में काम करते हैं. साथ ही उन्होंने ग़रीब बच्चों के लिए एक फ्री कोचिंग सर्विस भी शुरू की है, जिसमें वो पढ़ाते हैं और रात को कुली का काम करते हैं.

आइए आपको नागेश पात्रो की इंस्पायरिंग स्टोरी (Odisha Coolie Inspiring Story) के बारे में बताते हैं. 

2011 से कर रहे हैं कुली का काम 

नागेशु रेलवे स्टेशन में 1 या 2 साल से नहीं बल्कि साल 2011 से एक रजिस्टर्ड कुली हैं. साल 2020 में कोविड महामारी का प्रकोप बढ़ने के बाद उनकी ज़िंदगी की पूरी तरह काया पलट गई. कई सारी ट्रेनें चलनी बंद हो गई, जिसकी वजह से उन्होंने अपनी आजीविका खो दी. इसी दौरान उन्होंने खाली बैठने की बजाय दसवीं कक्षा के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. 

jagran

ये भी पढ़ें: प्रेरक है बिहार के कमल किशोर की कहानी, जिस University में थे चपरासी आज हैं वहीं के प्रोफ़ेसर

ग़रीब बच्चों के लिए की कोचिंग केंद्र की स्थापना

बच्चों को पढ़ाने के दौरान उन्होंने कक्षा 8 से 12 के बच्चों के लिए कोचिंग केंद्र की स्थापना की. उनकी कोचिंग में ज़्यादातर ग़रीब बच्चे पढ़ने आते हैं. वो बच्चों को ख़ुद हिंदी और ओडिया में पढ़ाते हैं. बाकी अन्य विषयों के लिए उन्होंने कोचिंग सेंटर में चार टीचर्स रख रखे हैं. इन टीचर्स को वो 2 हज़ार से 3 हज़ार रुपए प्रति माह का भुगतान करते हैं. वो कुली के रूप में काम अपनी जेब भरने के लिए नहीं करते हैं, बल्कि इन शिक्षकों के फ़ीस का भुगतान करने के लिए करते हैं. वो अपनी शिक्षण नौकरियों से प्रति माह लगभग 8000 रुपये कमाते हैं. साथ ही उन्हें हर गेस्ट लेक्चर के 200 रुपए मिलते हैं. 

bhaskar

आर्थिक तंगी के चलते छूटी रेगुलर पढ़ाई 

नागेशु का बचपन काफ़ी ग़रीबी में गुज़रा. वो अपने पिता चौधरी रमा पात्रों और मां कारी के साथ पास के मनोहर गांव में रहते हैं. उनके माता-पिता बकरियां और भेड़ चराते हैं. आर्थिक तंगी होने के चलते उन्हें 2006 में रेगुलर हाई स्कूल छोड़ना पड़ा, क्योंकि उनके माता-पिता उनकी शिक्षा का ख़र्च नहीं उठा सकते थे. इसके बाद उन्हें मजबूरन नौकरी की तलाश में गुजरात के सूरत जाना पड़ा. 

jantaserishta

ये भी पढ़ें: 1 रुपये के सिक्के जमा कर लड़के ने ख़रीदी ‘ड्रीम बाइक’, शोरूम वालों को थमाए 112 बैग

सूरत में पड़ गए थे बीमार

सूरत की कपड़ा मिल में उन्होंने क़रीब 2 साल तक काम किया, लेकिन वो बीमार पड़ गए, जिसके बाद उन्हें घर आना पड़ा. इसके बाद उन्हें हैदराबाद के मॉल में एक सेल्समैन की नौकरी मिली. वहीं, हैदराबाद में ही 2011 में उन्हें कुली का काम मिला. कुली के रूप में काम करते हुए, उन्होंने 2012 में पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से बारहवीं कक्षा की परीक्षा देने का फ़ैसला किया. इसके बाद उन्होंने स्नातक और परास्नातक बेरहामपुर विश्वविद्यालय से किया. उन्होंने अपनी सारी उच्च शिक्षा रात में कुली का काम करके जुटाए गए ख़ुद के पैसे से पूरी की. वो कहते हैं कि उन्होंने पढ़ाना जारी रखा, क्योंकि वो इस पेशे से प्यार करते हैं और चाहते हैं कि ग़रीब छात्र अच्छा करें. 

news18
आपको ये भी पसंद आएगा
जानिए केरल की पहली महिला आदिवासी IAS की प्रेरणादायक कहानी, जोश से भर देगा दिल
पढ़ाई के लिए नहीं की शादी… 25 साल में 23 बार हुए फ़ेल, जानिए 56 वर्षीय राजकरन की Success स्टोरी
कौन है KBC में स्पेशल गेस्ट बने रवि बापटले, HIV बच्चों के लिए मसीहा है ये शख़्स
सरकारी स्कूल से पढ़े…माता-पिता हैं मजदूर, ऐसे किया बौद्धमणि ने गांव से ISRO तक का सफ़र पूरा
सास-ससुर ने दिया साथ और पति-पत्नी ने एक साथ BPSC की परीक्षा की पास, जानिए इनकी प्रेरणादायक Story 
पहचान कौन? लोग लुक्स की वजह से समझते थे वेटर, आज हैं भारतीय क्रिकेट टीम के ऑलराउंडर