Success Story Hiren Panchal : कहते हैं कि जहां आवश्यकता होती है, वहां ज़रूर एक आविष्कार जन्म लेता है. क्योंकि किसी चीज़ की ज़रूरत ही हमें उसका हल खोजने की ओर प्रेरित करती है. इसी दौरान तमाम आविष्कारों के आइडियाज़ दिमाग़ में पनपते हैं. हालांकि, इसको वास्तव में अमल में लाना हर किसी के बस की बात नहीं होती. लेकिन गुजरात के हिरेन पांचाल ने ये कर दिखाया है.
हिरेन पांचाल खेती और बागवानी से जुड़े कई टूल्स बना रहे हैं. अब तक वो तक़रीबन 35 तरह के छोटे-छोटे हैंडटूल्स बना चुके हैं, जो बाजार में महंगे टूल्स की तुलना में आदिवासी युवाओं और पिछड़े किसानों के लिए सस्ते हैं. आइए आपको हिरेन और उनके इस आविष्कार के बारे में विस्तार से बताते हैं.
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कभी कॉलेज या स्कूल नहीं गए हिरेन
हिरेन मूल रूप से गुजरात के राजपीपला शहर के रहने वाले हैं. एक मीडिया इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो कभी कॉलेज या स्कूल नहीं गए, बल्कि उनका होम स्कूलिंग में ज़्यादा विश्वास है. वो 16 साल में पुणे के विज्ञान आश्रम गए थे. वहीं से उन्हें डेली ज़िंदगी में उपयोगी चीज़ों का प्रैक्टिकल ज्ञान मिला. पुणे से आने के बाद उन्होंने क़रीब पांच साल गुजरात विद्यापीठ में काम किया. यहीं से उन्हें खेती, बागवानी और हस्तकला जैसे कामों की ट्रेनिंग मिली. यहां उन्हें बच्चों को भी इस तरह की शिक्षा देने का काम करने का मौका मिला.
विद्यापीठ की ओर से वो एक साल स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत जर्मनी भी गए. जर्मनी से लौटकर वो ‘प्रयास’ नाम के NGO के साथ जुड़ गए. इसी दौरान उन्होंने गुजरात के नर्मदा जिले के 72 गांवों में प्राकृतिक खेती के प्रचार-प्रसार का काम किया. वहां उन्होंने देखा कि वहां के छोटे-छोटे खेत के किसानों को काफ़ी दिक्कतें उठानी पड़ती थीं. पर्वतीय इलाके के चलते वहां लोगों के पास छोटी जोत के आकार की ज़मीन थी.
कैसे आया इस आविष्कार का आइडिया?
हिरेन को ख़ुद भी खेती करते समय कई परेशानियों का सामना करना पड़ता था. इन दिक्कतों को दूर करने के लिए उन्होंने अपने इस्तेमाल के लिए टूल्स बनाने शुरू कर दिए. इसमें उन्होंने विज्ञान आश्रम में सीखी गई शिक्षा का सहारा लिया. घास की कटाई से लेकर पथरीली ज़मीन को समतल बनाने समेत कई खेती से जुड़े कामों के लिए उन्होंने टूल्स बनाने शुरू किए. इसकी ख़बर गांव में पता चलने के बाद कई आसपास के लोग उनसे टूल्स मांगने आया करते थे. यहीं से उन्हें लोगों के लिए टूल्स बनाने का आइडिया आया. इसमें उनके परिवार का भी पूरा सपोर्ट रहा.
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ऐसे की अपने स्टार्टअप ‘मिट्टीधन’ की शुरुआत
इन टूल्स को बनाने के लिए उन्होंने क़रीब 4-5 साल पहले गुजरात में एक ‘मिट्टीधन’ नाम के स्टार्टअप की शुरुआत की. उन्होंने इसे बेहद कम पूँजी और स्थानीय कारीगरों की मदद से शुरू किया. धरमपुर जैसे आदिवासी इलाके में काम करने के लिए उनके एक स्थानीय दोस्त ने अपनी जगह मुफ़्त में इस्तेमाल करने के लिए दी है. साल 2019 में उन्होंने स्टार्टअप इंडिया के तहत फंड के लिए एप्लीकेशन डाली. पूँजी एकत्रित होने के बाद उन्होंने अपना काम बढ़ाना शुरू किया. पिछले कई सालों में उन्हें 9000 के क़रीब ऑर्डर्स मिले हैं. साथ ही उन्होंने बच्चों की बागवानी में रूचि बढ़ाने के लिए एक फार्मिंग टूल सेट भी तैयार किया है. इसके भी उन्हें 500 से ज़्यादा ऑर्डर्स मिल चुके हैं.
विदेशों से भी मिल रहे ऑर्डर्स
उन्होंने अपनी पहुंच सोशल मीडिया के ज़रिए बढ़ाई है. इस वजह से उन्हें विदेशों से भी ऑर्डर्स मिलते हैं. उनके टूल्स में बगीचे के लिए कुदाल, बेकार घास काटने वाला स्लेशर, निराई के लिए पुश एंड पुल वीडर आदि शामिल हैं. इनकी अधिकतम क़ीमत केवल 200 रुपए है. फ़िलहाल, उनका स्टार्टअप एक महीने में एक लाख रुपए की कमाई कर रहा है. अभी वो और भी टूल्स बनाने की ओर अग्रसर हैं.