मैं एक मां हूं… और रोज़ अपने बच्चे को स्कूल भेजने के बाद मुझे उसकी सुरक्षा की चिंता होती रहती है

Anjaan

बीते दिनों गुरुग्राम और दिल्ली के स्कूलों में 7 और 5 साल के मासूम बच्चों के साथ जो दर्दनाक हादसे हुए हैं, उनके बारे में सोच कर ही रूह कांप जाती है. मन ये सोच कर ही घबरा जाता है कि जिनके बच्चों के साथ ये दरिंदगी होती है, उन पर क्या गुज़रती होगी. देश में बाल यौनशोषण एक गंभीर समस्या बन चुकी है. पिछले दो-एक सालों से स्कूल में बच्चों के साथ हो रही इस तरह की घटनाएं मानो आम हो गई हैं. कभी स्कूल में बच्चे की अकस्मात मौत, तो कभी पिटाई, कभी शिक्षक के साथ अश्लील फ़ोटो, तो कभी स्कूल के कर्मचारी द्वारा यौनशोषण की खबरें, तो अब आये दिन न्यूज़ चैनल्स और अखबारों की सुर्खियां बन रहीं हैं. ये एक बहुत ही बड़ा सवाल है कि ऐसी स्थिति में मां-बाप अपने बच्चो की सुरक्षा को कैसे सुनिश्चित करेंगे?

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मैं भी एक मां हूं… और स्कूलों में आये दिन हो रही यौनशोषण की घटनाओं ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया है… मैं उन मांओं के दर्द को बखूबी समझ सकती हूं. मेरा बच्चा भी स्कूल जाता है और साफ़ सी बात है कि अब मैं अपने बच्चे को स्कूल भेजने से डरने लगी हूं. स्कूल जाने के बाद से जब तक मेरा बच्चा घर नहीं आ जाता, तब तक मुझे उसकी ही चिंता रहती है. कभी-कभी लगता है कि मैं क्यों भेजूं अपने बच्चे को स्कूल? कोई स्कूल चाहे वो प्राइवेट हो, या सरकारी क्या वहां पर मेरा बच्चा सुरक्षित रहेगा?

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हम स्कूल पर भरोसा करते हैं और निश्चिन्त रहते हैं कि वहां हमारा बच्चा एकदम सुरक्षित है. इसीलिए तो हम इन बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों का एडमिशन कराने के लिए क्या-क्या नहीं करते, महंगी से महंगी फ़ीस भरते हैं, ताकि बच्चे का भविष्य उज्वल हो. लेकिन आज की तारीख में इन स्कूलों पर से भरोसा उठ चुका है. रोज़ अपने बच्चे को स्कूल भेजने के बाद मुझे यही लगता रहता है कि मेरा बच्चा सुरक्षित तो होगा न, कहीं उसके साथ कुछ गलत तो नहीं हुआ होगा न, जब तक वो घर नहीं आ जाता मैं इसी उधेड़-बुन में रहती हूं. ऐसे-ऐसे ख़्याल आते हैं कि मैं खुद सहम जाती हूं. लेकिन क्या करूं हूं तो एक मां ही न.

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बच्चा सड़क पर वाहनों से सुरक्षित रहे उसके साथ कोई हादसा न हो इसलिए हम स्कूल की बस या कैब लगवाते हैं, जिसकी फ़ीस भले ही हमारी जेब पर भारी पड़ती हो, फिर भी हम उसे स्कूल स्कूल के वाहन में ही भेजते हैं. लेकिन बस में भी बच्चा सुरक्षित है इसकी क्या गारंटी है?

स्कूल का सपोर्टिंग स्टाफ़ जो बच्चों की देखभाल के लिए होता है, फिर चाहे वो गार्ड हो, चपरासी हो या फिर सफ़ाई कर्मचारी या फिर आया, इस तरह की घटनाओं ने उन सभी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं क्योंकि जब एक चपरासी 5 साल की मासूम के साथ बलात्कार करके उसको धमकी देने की हिम्मत रखता है, तो हम कैसे मान लें कि स्कूल का सिक्योरिटी गार्ड, कोई टीचर या फिर आया, जिनको हमारे द्वारा दी गई फीस से सैलरी दी जाती है, वो बच्चों को कोई हानि नहीं पहुंचाएंगे.

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कहते हैं कि स्कूल को शिक्षा के मंदिर का दर्जा दिया गया है और शिक्षक को भगवान, लेकिन ये भगवान ही जब भक्षक बन जाएं तो आप क्या करेंगे? कुछ दिनों पहले ख़बर आयी थी कि एक शिक्षक ने एक स्टूडेंट के साथ अपनी अश्लील फोटोज़ को बेझिझक सोशल मीडिया पर अपलोड किया था. ये एक सरकारी स्कूल का वाकया था. ऐसे ही न जाने कितने शिक्षक होंगे, जो अपने स्टूडेंट्स को डरा-धमका कर अपनी हवस का शिकार बनाते होंगे और फ़ेल करने की धमकी देकर उनको चुप करा देते होंगे. इतना ही नहीं बच्चे अच्छे नंबर लाएं इसके लिए ट्यूशन क्लासेज़ में भी भेजना ज़रूरी होता है, लेकिन आज ऐसा समय है कि चाहे स्कूल हो या ट्यूशन कहीं भी बच्चे सुरक्षित नहीं हैं.

पेरेंट्स अपने बच्चों को अच्छे और बड़े स्कूल में भेजने के लिए अपनी सेविंग्स, एफ़डी सब कुछ लगा देते हैं, क्योंकि आजकल बिना डोनेशन के बच्चे को अच्छे स्कूल में भेजने का सपना तो पूरा हो नहीं सकता न. मगर जब ये स्कूल के मैनेजमेंट वाले हम पेरेंट्स से इतनी फ़ीस लेते हैं, तो बच्चों की सिक्योरिटी की गारंटी क्यों नहीं लेते? क्यों नहीं किसी को भी जॉब पर रखने से पहले उसका बैकग्राउंड नहीं चेक करवाते? क्या बच्चों की सुरक्षा उनकी जिम्मेदारी नहीं है, या उनको सिर्फ़ अपने पैसों से मतलब है. एक बच्चे की अगर टाइम पर फ़ीस न जमा हो पाए तो, उसको क्लास से बाहर खड़ा करके अपमानित किया जाता है, उसको घर वापस भेज कर उसके पेरेंट्स का अपमान किया जाता है. अगर आप बच्चे को सजा देने की हिम्मत रखते हो, तो अब जो आपके स्कूलों में बच्चों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है, उसकी सज़ा भी तो आपको मिलनी चाहिए न. 

मैं एक मां हूं और मुझे अपने बच्चे को स्कूल भेजते हुए बहुत डर लगता है…

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