इससे पहले कि मैं या आप प्रियंका रेड्डी के लिए एक बहादुर नाम सोच कर सड़कों पर मोमबत्तियां जलाते हुए आएं, मैं आपका ध्यान दूसरी घटनाक्रम की तरफ़ भी डालना चाहती हूं.
प्रियंका रेड्डी के साथ हुई घिनोनी हरक़त हमारे टीवी स्क्रीन, सोशल मीडिया और अखबरों का हिस्सा बन गई हैं. मगर आए दिन उन घटनाओं का क्या जिनकी हमको और आपको भनक भी नहीं लगती.
26 नवंबर: रांची में 25 साल की लॉ स्टूडेंट के साथ 12 लोगों ने शाम के 5:30 बजे सामूहिक बलात्कार किया. उन्होंने बन्दूक की नोक पर ये सब किया और वो भी एक बेहद ही हाई सिक्योरिटी ज़ोन में.
26 नवंबर: 20 साल की एक लड़की का उसके ही पहचान के एक व्यक्ति ने रेप कर उसकी हत्या कर दी.
28 नवंबर: 32 वर्षीय की विधवा महिला के साथ तमिलनाडू में 5 पुरुषों ने मिलकर सामूहिक बलात्कार किया.
28 नवंबर: वडोदरा में दो लोगों ने एक लड़की का रेप किया.
29 नवंबर: पंजाब के चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पर एक 11 साल की बच्ची को एक ऑटो-रिक्शा वाले ने किडनैप कर उसका बलात्कार किया.
ये सभी घटनाएं उस ही हफ़्ते की हैं, जिस हफ़्ते में हैदराबाद की 26 वर्षीय डॉक्टर प्रियंका रेड्डी का रेप कर हत्या कर दी गई थी.
सोचिये जहां हम एक को न्याय दिलाने में लगे हैं, मन में ये सोचें है कि बस अब की बार तो आर या पार, वहीं हर पल, हर गली, हर शहर, हर राज्य में किसी न किसी लड़की के साथ बलात्कार हो रहा होता है.
अभी हाल ही में मेरे ऑफ़िस के सहकर्मीं को बेटा हुआ है. बच्चे के बारे में ऐसे ही बातचीत करने पर उन्होंने कहा, ‘लड़का है डर नहीं रहेगा.’
आप समझ रहें हैं कि ये डर कैसे लोगों के अंदर समा चुका है. और जिनके लड़कियां पैदा हो रही हैं वो एक डर के साथ अपनी बच्चियों को बड़ा कर रहे हैं.
हर बलात्कार के बाद ही क्यों गुस्सा आता है?
देश में हर वक़्त न जाने कितनी रेप की घटनाएं होती हैं. जिन में मात्र कुछ ही हम तक पहुंचती हैं. जहां एक तरफ़ निर्भया जैसे दिल दहला देने वाले केस के बाद कुछ बदलाव लाने की उम्मीद कर रहा था, वही रिपोर्ट्स के अनुसार, निर्भया केस के बाद भारत में रेप, छेड़छाड़ और योन उत्पीड़न के मामलों में 40% तक बढ़ावा हुआ है.
सबसे हालिया राष्ट्रीय अपराध आंकड़ों के अनुसार, 2017 में भारत में लगभग 33,000 बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज़ की गई थीं.
और इन सभी घटनाओं में से एक इतनी भयावह होती है जिसपर लोगों के अंदर शांत पड़ा ज्वालामुखी फट जाता है.
मैं पूछती हूं कि वो एक घटना ही क्यों? उतने बीच में हम सब के अंदर का गुस्सा कहां चला जाता है? क्यों जरूरी है कि कोई लड़की ‘निर्भया’ बने? शायद ज्योति भी ‘निर्भया’ नहीं थी. वो तो हमने बना दिया.
मुझे भी लगता है डर
मैं पढ़ी लिखी हूं, चीज़ें जानती हूं और समझती हूं. फ़िर भी मैं रात को अकेले कैब नहीं ले सकती. तमाम हेल्पलाइन नंबर और सेफ्टी फ़ीचर्स के बावज़ूद नहीं ले सकती.
आलम तो ये है कि मुझे 10 बजे के बाद से ही कैब लेने में डर लगता है. शायद किसी लड़के के लिए ये बड़ी बात नहीं होगी. अगर वो उस कैब में सो जाएगा तो उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण चिंता का विषय होगा उसके रुपये की चोरी. मगर मेरे लिए !!!
जब मैंने प्रियंका के बारे में पढ़ा था तो मन मैं सबसे पहले आया कि ये मैं भी हो सकती थी. मेरी ख़ुशनसीबी है कि मैं ज़िंदा और सही सलामत हूं. उसको पता था कि शायद अंजान व्यक्ति से मदद लेना उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन सकती है. मगर कर भी क्या सकती थी उसने सोचा होगा कि ‘हर लड़का रेपिस्ट नहीं होता.’ बहुत थोड़ी सी ही सही मन में इंसानियत का छोटा सा दिया तो होगा ही.
पर वो गलत थी. और यकीन मानों ये भारत में रहने वाली हर लड़की की कहानी है.
हर दिन कोई न कोई ऐसा पल ज़रूर आता है जब मैं भी प्रियंका की जगह खड़ी होती हूं.
रात को कैब लेते वक़्त अपने घरवालों से उसका नंबर शेयर करना. हमेशा ये सोचना कि साथ का कोई जाए तो उसके साथ ही निकलूं. अगर रात को बाहर हूं तो अपने दोस्तों को पल-पल बताते रहना कि मैं ठीक हूं. घर पहुंच कर बताना कि मैं सुरक्षित घर पहुंच गई हूं. अगर पीछे कोई आदमी चल रहा है और उससे पहले वो मुझे अपने लिए कोई ख़तरा लगे तो तुरंत इधर-उधर फ़ोन करना. घर से निकलने से पहले अपने ब्रेस्ट को दुपट्टे या स्कार्फ़ से ढकना.
इन सभी पलों में, मैं बेहद डर जाती हूं. आने वाले समय में भी ये डर शायद ऐसे ही मेरे साथ हमेशा रहेगा जब भी कोई लड़का मेरी तरफ़ नज़रें उठा कर देखेगा. इस डर को कोई भी पुरुष या लड़का नहीं समझ पाएगा कि कैसा लगता है हर समय एक डर के साथ जीना कि कही मेरा रेप न हो जाए.
और सच कहूं तो मैं थक गईं हूं निर्भया और प्रियंका के बारे में लिख-लिख कर. थक गई हर बार वही बात दोहरा-दोहरा कर कि लड़कों को सिखाओ और पढ़ाओ.
मैं मानती हूं कि हमें अपने समाज के पुरुषों को महिलाओं की शारीरिक बनावट के बारे में समझाने की ज़रूरत है.
हमें पुरुषों को ये बताने की ज़रूरत है कि महिलाएं सिर्फ़ एक मां, बहन और पत्नी नहीं हैं. बल्कि, वे ख़ुद में एक जीती-जागती शख़्सियत हैं. और उन्हें वैसे ही देखे जाने की ज़रूरत है. वो कोई वस्तु नहीं है जिसे आपको हासिल करना है.
ये मेरे अंदर का गुस्सा नहीं, डर है. क्योंकि मुझे भी सच पूछो तो नहीं पता कि इसका क्या हल है?
बस एक बात, डॉक्टर प्रियंका का रेप कर उसे जला दिया गया. वो रात के 9:30 बजे अपने घर वापिस आ रही थी. उन्होंने अपनी बहन से बोला था कि उन्हें डर लग रहा है. हर लड़की को इस देश में डर लगता है. न तो उन्होंने पी रखी थी न ही छोटे कपड़े पहने थे. उन्होंने तो नियमों के अनुसार, हर बात का पालन करा था फिर भी….
मैं तो क्या कोई भी लड़की India’s Daughter नहीं बनना चाहती.