‘जातिवादी होने के लिए सवर्ण होना ज़रूरी नहीं है. दलित होकर अगर आप सवर्णों के प्रति नफ़रत फैला रहे हैं, तो भी आप जातिवादी हैं.’
सुनने में आपको अजीब लग सकता है लेकिन ये सच है.
जातिवाद आज भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में भारतीय समाज में मौजूद है. अब ये जातिवाद दो तरह का हो चुका है. पहले तरीके का जातिवाद है, सवर्णों द्वारा दलितों का शोषण किया जाना. इस जातिवाद के बारे में हम सब जानते हैं लेकिन दूसरी तरह के जतिवाद के बारे में ज़्यादा बात नहीं की गयी है. दूसरे तरह का जातिवाद है, दलितों द्वारा सवर्णों के लिए नफ़रत फैलाना.
जब कोई पिछड़ी जाती का व्यक्ति कहता है कि सभी सवर्ण जातिवादी धूर्त होते हैं, तो वो सवर्णों के लिए नफ़रत फैला रहा होता है. आज कई सवर्ण ऐसे हैं, जो बराबरी के हक़ में हैं और किसी की जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करते. ऐसे कई लोग हैं, जो दलित नहीं हैं, लेकिन दलितों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए लड़ रहे हैं. इसके बावजूद सिर्फ़ इसलिए उनसे नफ़रत करना कि वो सवर्ण हैं, एक तरह का जातिवाद ही है.
जातिवाद किसी भी रूप में हो, ये समाज के लिए अभिशाप है, इसमें कोई दोराय नहीं है. दोनों ही तरह का जातिवाद इंसान को इंसान से दूर करता है.
ये नए तरह का जातिवाद भी उतना ही ख़तरनाक है, क्योंकि इसका कारण भी कुंठा ही है. कुंठा किसी के लिए भी हो, ग़लत ही है. इस मानसिकता को ठीक किये बिना सवर्ण और दलित जातिवाद से नहीं जीत सकते. ये खाई और गहरी होती चली जाएगी.
बहुत पहले से भारत इस सामाजिक बुराई से पीड़ित रहा है. पहले सवर्णों द्वारा दलितों का शोषण किया जाता था. अब भी कई जगहों पर ये हो रहा है. नीची जाति वालों को समाज में कई तरह के भेद-भाव झेलने पड़ते थे, लेकिन समय बदला है और इस स्थिति में भी बदलाव आया है.
पिछड़ी जातियों को मौका देने के लिए उन्हें आरक्षण दिया गया. शिक्षा पाकर पिछड़ी जाति के लोग भी आगे बढ़े और आज देश में उच्च पदों पर कार्यरत हैं. देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दलित हैं और आज देश के सबसे बड़े पद पर हैं. ये सच है कि अब भी पिछड़ी जाति से संबंध रखने वाले कई लोग उन्हीं हालातों में जी रहे हैं, लेकिन स्थिति पहले से कहीं बेहतर है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता.
जब हालात बेहतर हुए हैं, तो सवर्णों के प्रति द्वेष को भी मिटाना चाहिए. हम सब को ज़रूरत है कि इंसान को इंसान की तरह देखना शुरू करें.