स्कूल के दिनों से ही एक लाइन तोते की तरह रटी हुई है कि ‘भारत एक सम्प्रभुता संपन्न देश है, जहां विभिन्न धर्मों और समुदाय के लोग मिल-जुल कर रहते हैं.’ समुदाय वाली इस लाइन में वो लोग भी शामिल हैं, जिनकी अलग-अलग पसंद होने के बावजूद सब एक-दूसरे की पसंद-नापसंद की भी इज़्ज़त करते हैं, पर हिंदुस्तान के राजनीति की तरह ही ये लाइनें भी अब अपना मतलब बदलने लगी हैं.
अब जैसे उन लोगों को ही ले लीजिये, जो क्या ऑफ़िस और क्या घर हर जगह ही क्रिकेट और क्रिकेट प्लेयर्स का गुणगान करने में लगे रहते हैं. भइया ठीक है शाहरुख़ खान ने एक फ़िल्म में कहा है कि ‘किसी भी चीज़ को इतनी शिद्दत से चाहो कि पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलाने की कोशिश करने लगे’, पर मेरे भाई ऐसी भी क्या शिद्दत, जो दूसरे के ऊपर ही बोझ बनने लगे. दोस्त मैं मनाता हूं कि हिंदुस्तान में क्रिकेट एक धर्म की तरह है, पर हर कोई उसी धर्म को माने ये कहां का इंसाफ़ है? मुझे क्रिकेट से कोई बैर नहीं, पर दोस्तों के बीच ‘क्रिकेट-क्रिकेट और क्रिकेट’ इतनी बार सुन लिया है कि अब इस शब्द से ही खीझ होने लगी है.
क्रिकेट प्रेमियों के मुताबिक, हिंदुस्तान में मैच का मतलब क्रिकेट और क्रिकेट का मलतब ही मैच है. अब कोई क्रिकेट को न चाहने वाले इस तरह के माहौल में रहेगा, तो उसका खीझना लाज़मी भी है. अगर आप क्रिकेट को छोड़ कर कुछ और देखना चाहते हैं, तो यार-दोस्त कहते हैं कि ‘कैसा बंदा है इसे क्रिकेट ही पसंद नहीं.’ हां भाई सच में मुझे क्रिकेट बिलकुल भी पसंद नहीं. कई बार तो ऐसा लगता है जैसे ज़बरदस्ती क्रिकेट का एक भार सा थोप दिया गया है.
मैं इस बात को मनाता हूं क्रिकेट हिंदुस्तान में धर्म की तरह है, पर ज़रूरी नहीं कि सब एक ही धर्म को माने. अब जैसे मुझे रेसलिंग पसंद है.
- आप मुझसे रिंग के बारे में बात कीजिये.
- आप बात कीजिये कि योगेश्वर दत्त का कौन-सा दांव सबसे ताक़तवर है.
- सुशील के किस दांव के सामने बड़े-बड़े पहलवानों की एक नहीं चलती.
- पर नहीं आपको तो बस क्रिकेट के ही गुण गाने हैं. अरे भइया मान लिया हिंदुस्तान ने क्रिकेट को सचिन तेंदुलकर दिया है, जिन्हें सारी दुनिया में गॉड ऑफ़ क्रिकेट कहा जाता है, पर भाई ये क्यों भूल जाते हो कि रेसलिंग की वजह से ही पिछले ओलंपिक में हिन्दुस्तान की नाक बची थी.
घंटों टेलीविज़न के आगे बैठे रहो और आखिर में इंडिया हार जाती है.
भाई मैं समझ सकता हूं कि उस समय कैसा महसूस होता होगा, जब मैच देखने के लिए ऑफ़िस और कॉलेज में बहाना बना कर छुट्टी लेते हो. सारे दिन मैच देखने के बाद पता चलता है कि लो आज फिर इंडिया हार गई. अब आप ये कहेंगे कि क्रिकेट में लास्ट बॉल तक रोमांच होता है और कभी भी, कुछ भी नया देखने को मिला सकता है. तो भाई ऐसा तो दूसरे स्पोर्ट्स के साथ भी है पहलवानी को छोड़ भी दें, तो हॉकी और फ़ुटबॉल में लास्ट मिनट में क्या देखने को मिल कोई नहीं जानता. चलो मान लिया कि वहां भी आखिर में यदि मैच हार जाते हैं, पर कम से कम इतना सुकून तो है ही कि ज़्यादा से ज़्यादा 2 घंटे ही ख़राब गए.
एक ही चीज़ को 10 साल तक याद रखना.
आप किसी भी क्रिकेट प्रेमी को देख लीजिये हर बार उनकी ही कहानी होती है. भाई वो ओवर याद है, जब युवराज ने 6 छक्के मारे थे. भाई सेहवाग का वो शॉट याद है, जो लॉन्ग ऑफ़ के ऊपर से गया था. ऐसे लोगों की कहानी एक पुरानी बात से शुरू होती है और वापिस किसी पुरानी बात पर ही जा कर ख़त्म हो जाती है.
हां हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही है, पर एक ही चीज़ का रोना हम सालों तक नहीं रोते, क्योंकि हमारे लिए हर नया दिन नए की तरह होता है, जहां हम ये उम्मीद करते हैं कि इस बार भी हमें कुछ नया देखने को मिलेगा.