अगर फ़िल्में समाज का आईना होती हैं, तो फिर नॉर्थईस्ट इंडिया की छवि इतनी धुंधली क्यों है?

Shubham

‘सिनेमा’ समाज का आईना होता है. ये वही दिखाता है, जो हमारे आस-पास घटित हो रहा होता है. ये न सिर्फ़ हमारा मनोरंजन करता है, बल्कि ये भी बताता है कि समाज के अलग-अलग हिस्सों में लोगों का व्यवहार कैसा है. कहने का मतलब है कि फ़िल्में एक ऐसा ज़रिया है, जिससे हमें दूसरी संस्कृतियों को समझने में मदद मिलती है.

विविधता भरे इस देश के कोने-कोने को जान पाना आसान नहीं है, लेकिन ये सिनेमा ‘थोड़ा बहुत’ ज़रूर बता देता है. बहुत दुख़ की बात है कि इस ‘थोड़े बहुत’ से ‘उत्तर-पूर्वी भारत’ यानि कि ‘नॉर्थईस्ट इंडिया’ अभी कोसों दूर है. आज़ादी के 69 साल बाद भी नॉर्थईस्ट इंडिया, भारत के ज़्यादातर लोगों के लिए दूसरा देश है. 

ऐसे में फ़िल्मों से लोग नॉर्थईस्ट के लोगों के बारे में जान सकते हैं, लेकिन उस स्तर पर कोशिशें नहीं की जा रही हैं. नॉर्थईस्ट इंडियन सिनेमा का इतिहास भी हिंदी और अन्य क्षेत्रीय फ़िल्मों जितना ही पुराना है, फिर भी ये ज़्यादा फ़ेमस नहीं है.

1. आसान नहीं है नॉर्थईस्ट को जानना

ज़रा अपने दिमाग़ पर जोर डालिए और नॉर्थईस्ट के किन्हीं पांच त्योहारों, नेता, अभिनेता, खेल या खिलाड़ी का नाम याद करने की कोशिश कीजिए. मुश्किल से एक या दो नाम याद आ रहे होंगे. या शायद वो भी नहीं. ये समस्या सिर्फ़ आपके साथ नहीं है, बल्कि देश के ज़्यादातर लोगों के साथ है. न तो किसी को स्कूल में नॉर्थईस्ट के बारे में ज़्यादा बताया जाता है और न ही कोई जानने की कोशिश करता है. अगर कोई जानने की कोशिश भी करे, तो किताबों के सिवाय और कोई दूसरा तरीका नहीं है, लेकिन जिसे पढ़ना नहीं आता, वो ऐसे तो कभी भी पूर्वोत्तर के बारे में जान ही नहीं पाएगा. मीडिया में भी इसके नदारद रहने की वजह से देश के बाकी लोगों को उत्तर-पूर्वी भारत के बारे में कम ही पता है.

2. हिंदी फ़िल्मों में नॉर्थईस्ट के लिए ज़्यादा जगह नहीं है

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आम तौर पर भारतीय सिनेमा को लोग केवल हिन्दी सिनेमा या बॉलीवुड के नाम से जानते हैं, जबकि भारतीय सिनेमा हिन्दी, तमिल, मराठी, पंजाबी, असमी, बंगाली समेत कई अन्य भाषाओं में बनने वाली फ़िल्मों का जाल है. खुद बॉलीवुड भी दो हिस्सों में बंटा हुआ है. एक हिस्से में लोगों के मनोरंजन के लिए मसाला फ़िल्में होती हैं, तो दूसरे में वो पैरलल फ़िल्में होती हैं, जिनसे समाज का सीधा जुड़ाव होता है. ऐसे में मसाला मूवीज़ में नॉर्थईस्ट को देखने की मांग करना शायद सही न हो, लेकिन पैरलल फ़िल्मों से तो हम उम्मीद कर ही सकते हैं. अफ़सोस हिंदी पैरलल सिनेमा भी इस उम्मीद पर ख़रा नहीं उतरता है. आपको मुश्किल से ही ऐसी हिंदी फ़िल्में मिलेंगी, जो उत्तर-पूर्वी भारत की पृष्ठभूमि या वहां के किसी मुद्दे पर बनी हों. 

3. नॉर्थईस्ट में बनती हैं बेहतरीन फ़िल्में

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लोग पूर्वोत्तर के बारे में बातें भले न करते हों, लेकिन यहां की कुछ फ़िल्में ऐसी हैं, जिन्होंने न सिर्फ़ भारतीय सिनेमा को बल्कि वैश्विक सिनेमा को भी अपनी बेजोड़ रचनात्मकता दिखाई है. ‘Baandhon’, ‘Laipaklei’, ‘Ko Yad’, ‘Ri-Homeland of Uncertainty’, ‘Sonam’, ‘Imagi Ningthem’, ‘Matamgi Manipur’, ‘Wangmadasu’ नॉर्थईस्ट की ऐसी कुछ लाज़वाब फ़िल्में हैं, जिन्हें कम-से-कम एक बार ज़रूर देखा जाना चाहिए. अगर कभी देश के इस ख़ूबसूरत हिस्से से जुड़ने का मन हो, तो शुरुआत इन फ़िल्मों से करें.

4. नॉर्थईस्ट की फ़िल्में डब करके नहीं दिखाई जाती

ऐसा शायद ही होता हो कि एक इंसान जो उत्तर भारत का हो, वो दक्षिण भारत की संस्कृति जानता या समझता हो. ये बात दस साल पहले तक तो एकदम ठीक थी, लेकिन अभी के लिए पूरी तरह से सही नहीं है. पिछले कुछ सालों में, जब से हिंदी चैनलों पर साउथ इंडियन फ़िल्मों को हिंदी में डब करके दिखाया जा रहा है, तब से हिंदी भाषियों को दक्षिण भारत की संस्कृति समझने में काफ़ी मदद मिल रही है.

वहीं दूसरी ओर, नॉर्थईस्ट की मूवीज़ कभी भी हिंदी चैनलों पर डब करके नहीं दिखाई जाती, जिस कारण भारत के ये दोनों हिस्से एक-दूसरे से अंजान रहते हैं. एक बड़ा कारण ये भी है, जिससे नॉर्थईस्ट को बाकी भारत अलग-थलग देखता है.

5. बैन है यहां हिंदी फ़िल्में और चैनल्स

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एक ओर, जहां उत्तर-पूर्वी भारतीय फ़िल्में देश के हिंदी भाषी राज्यों में बहुत कम (या नहीं के बराबर) दिखाई जाती हैं, तो वहीं दूसरी ओर, हिंदी फ़िल्में और चैनल्स भी पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में नहीं दिखाए जाते. मणिपुर की बात करें, तो साल 2000 से हिंदी फ़िल्मों को यहां बैन किया जा चुका है. मणिपुर के ही एक संगठन ने बॉलीवुड मूवीज़ दिखाने का विरोध किया था. उन्हें लगता था कि ये फ़िल्में उनकी संस्कृति को नुकसान पहुंचा रही हैं. यहां तक कि मणिपुर और देश की शान ‘मैरी कॉम’ पर बनी फ़िल्म भी यहां रिलीज़ नहीं होने दी गई.

6. कोरिया का बढ़ रहा है दबदबा

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शाहरुख़, सलमान भले ही दुनियाभर में कितने ही फ़ेमस क्यों न हो, लेकिन मिज़ोरम के लिए ‘ली मिन्ह हो’ ही उनके शाहरुख़ हैं. ली, कोरियन अभिनेता और गायक हैं, जिनकी युवा फै़न फ़ॉलोइंग बहुत ज़्यादा है. सिर्फ़ ली ही नहीं, कोरिया के कई कलाकार जैसे चा ताई ह्युम, किम ह्यून जूंग, पार्क जी यिओन के नाम नार्थईस्ट के लोगों के दिमाग़ पर छाए रहते हैं. हिंदी फ़िल्में तो पूर्वोत्तर में नहीं पहुंच पा रही, लेकिन कोरिया का दबदबा यहां ज़रूर बढ़ रहा है.

7. नॉर्थईस्ट का अहम योगदान है बॉलीवुड में

बॉलीवुड भले ही हिंदी फ़िल्मों के लिए जाना जाता है, लेकिन इसमें भारत के हर कोने के लोगों का योगदान है. उत्तर-पूर्वी भारत ने भी कई कलाकार बॉलीवुड को दिए हैं. इनमें Danny Denzongpa,S. D. Burman, R. D. Burman, Adil Hussain,  Papon, Zubben Garg, Chang प्रमुख हैं. पिछले कुछ समय से कई कलाकार नॉर्थईस्ट से बॉलीवुड में आए हैं और नाम कमा रहे हैं.

फ़िल्में ही इकलौती वजह नहीं है, जो लोग नॉर्थईस्ट इंडिया को भारत से अलग करके देखते हैं. कई राजनीतिक और सांस्कृतिक कारण भी हैं, लेकिन ये भी सच है कि किसी संस्कृति को जानने का सबसे अच्छा ज़रिया सिनेमा ही है, क्योंकि यही समाज के सभी पहलुओं को लोगों के सामने ठीक से रख पाता है. इसीलिए ज़रूरी है कि फ़िल्मों का आदान-प्रदान एक जगह से दूसरी जगह होता रहे. इस एक कोशिश से अगर लोग एक-दूसरे को जान पाएंगे, तो एक बेहतर राष्ट्र के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं.

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