दिल्ली में बैठे हुए यदि हम बिहार के राजनीतिक हालातों पर चर्चा कर पाते हैं, तो इसमें एक बहुत बड़ा योगदान पत्रकारिता का है, जिसकी वजह से देश-दुनिया की ख़बरें हम तक आराम से पहुंच पाती हैं.
पर वक़्त के साथ-साथ पत्रकार और पत्रकारिता दोनों में बदलाव आया, पहले जो पत्रकारिता जन तक जानकारियां पहुंचाने के लिए की जाती थी, अब उसका मूल उद्देश्य ही धन कमाना हो गया. इसका जीता-जगाता उदहारण आप अख़बार से ले कर न्यूज़ चैनलों तक में देख सकते हैं. ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ के मौके पर आज हम आपके लिए कुछ ऐसे ही चैनलों की ख़बरें ले कर आये हैं, जो ख़बरों से ज़्यादा एक कोरी बकवास नज़र आती हैं.
हाल ही में एक बड़ी वेबसाइट ने सोशल मीडिया पर चल रहे वायरल कॉन्टेंट के बाजार का भांडा फोड़ा था. इसमें बताया गया था कि कैसे पत्रकारिता के सिद्धांतों को ताक पर रख कर किसी भी घटना को सनसनी ख़बर बना कर पेश किया जा रहा है. सनसनी ख़बरों के इस खेल में बड़े मीडिया संस्थान भी कूदते हुए दिखाई देते हैं, जो अपने नाम का इस्तेमाल करके दर्शकों के बीच ओछी घटना को भी ख़बर के रूप में पेश कर रहे हैं.
इस दौड़ में मुख्यधारा के वो चैनल भी शामिल हैं, जिनके नाम पर लोग आंख बंद कर के भरोसा करते हैं कि अगर यहां ये ख़बर दिखाई जा रही है, तो वो सच ही होगी.
मीडिया चैनलों पर ये असर सिर्फ़ सोशल मीडिया तक ही नहीं सीमित है, बल्कि राजनैतिक पार्टियों के प्रभाव में आ कर वो इस परम्परा को प्राइम टाइम पर भी दिखाने में नहीं हिचक रहे.
अब सवाल उठता है कि आखिर पिछले 40 सालों में ऐसा क्या हो गया कि जिस मीडिया ने कभी स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी थी आज अचानक इतना भटक गया?
इसकी एक बड़ी वजह मीडिया हाउस का कॉपरेट हाउस में बदलना है, जिसका मुख्य उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसा कमाना है. इन मीडिया हाउस की कमान एडिटर से ज़्यादा MBA ग्रेजुएट और सेठ-लालाओं जैसे लोगों के हाथों में चली गई है. इसके लिए कहीं न कहीं वो दर्शक भी ज़िम्मेदार है, जो ख़बरों से ज़्यादा ये जानने का इच्छुक बन गया है कि सलमान खान का चक्कर अब किस एक्ट्रेस से चल रहा है.