Opinion: लड़के ने प्यार का आख़िरी तोहफ़ा भेजा, ‘बोतल भर ख़ून’. और ये कहीं से भी प्रेम नहीं है

Sanchita Pathak

उसने बियर की बोतल तोड़कर कांच के टुकड़े से अपनी हाथ की नस काटी. फिर एक बियर की बोतल में खून भरा. अपने दोस्त को बोतल देते हुए उसने कहा कि ये ‘आख़िरी तोहफ़ा’ उसकी प्रेमिका तक पहुंचा दे. दोस्त ने उसे अस्पताल पहुंचाया जहां उसने इलाज करवाने से मना कर दिया और अस्पताल में ही दम तोड़ दिया. 

कोई कहानी या स्क्रिप्ट नहीं है, चेन्नई की घटना है.


कुछ दिनों पहले मुंबई में एक 16 साल के लड़के ने 13 साल की लड़की को 8वें माले से फेंक दिया. लड़की की मौत हो गई. लड़के ने ऐसा सिर्फ़ इसलिए किया कि लड़की ने उससे दोस्ती करने से इन्कार कर दिया था. 

अपने आस-पास नज़र डालिए, ऐसी कई घटनाओं का पता चलेगा. कोई अपने आपको ख़त्म कर देता है तो कोई उसे, जिससे प्रेम है या था.    

मुझे ये लिखते हुए दुख हो रहा है कि मेरे कई परिचित लोगों ने भी प्यार में नाक़ाम होकर ख़ुद को चोट पहुंचाने की कोशिश की है. अपनी जान लेने की कोशिशों से लेकर शराबी बन जाने तक… ये सब मैंने अपने आस-पास देखा है.  

वो क्या है जो ख़ुद या दूसरों को चोट पहुंचाने पर मजबूर कर देती है 

जब प्यार में नस काट लेने, पंखे पर झूल जाने वाली घटनाओं से रूबरू होती हूं तो ये सवाल हर बार मन में आता है… आख़िर वो क्या है जो किसी भी शख़्स को दुनिया छोड़ देने के लिए मजबूर कर देता है? क्या रिजेक्शन को बर्दाशत करना इतना मुश्किल है? और अगर ऐसा है तो ये हर परिस्थिति पर ऐप्लाई क्यों नहीं होता?


चुनाव में 1 ही नेता जीतता है बाक़ी को जनता रिजेक्ट कर देती है. कहीं वैकेंसी निकलती है तो दावेदार हज़ारों होते हैं और कुछ की ही हायरिंग होती है. तो ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए? मैं ये अच्छे से समझती हूं कि किसी भी परिस्थिति की दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती. बस यहां ये कहना चाहती हूं कि रिजेक्शन क़ुदरत का ही हिस्सा है. जब तक धरती है तब तक ये भी रहेगी ही.  

Tribune

इस गंभीर समस्या के कारण पर विचार करें तो कई कारण निकल आएंगे, फ़िलहाल कुछ की चर्चा कर रही हूं- 

दोस्त जो बातों-बातों में झाड़ पर चढ़ा देते हैं


‘लड़की की ना में भी हां होती है’
‘देख देख तुझे ही देख रही है’

मेरे हिसाब से ऐसा कहने वाले दोस्त से बड़ा दुश्मन कोई नहीं हो सकता. साफ़ शब्दों में कहें तो ऐसा कहने वाले आपको गड्ढे में ही धकेलते हैं क्योंकि ना का मतलब ना होता है.  

फ़िल्मों ने भी कोई क़सर बाक़ी नहीं रखी  


हमारे यहां बनने वाली फ़िल्मों ने भी कम कसर नहीं छोड़ी है. ‘नस काटने की धमकी देकर लड़की को हां करने पर मजबूर’ करने से लेकर ‘लड़की का अपहरण करके उससे हां करवाने तक’, हमारी फ़िल्मों ने सबकुछ दिखाया है. लड़की मिल भी जाती है तो आम जनता भी इन तरीकों को आज़मा लेती है. हाथ हार लगती है तो या तो लड़की को एसिड झेलनी पड़ती है, या फिर छुरी, या फिर बंदूक. कुछ मामलों में लड़के भी ख़ुद की जान ले लेते हैं.    

Deccan Chronicle

डिप्रेशन से जुड़ी ग़लतफ़हमियां 


भारत दुनिया के सबसे ज़्यादा डिप्रेस्ड देशों में से एक है और यहां का हर छठा व्यक्ति डिप्रेस्ड हैं. डिप्रेशन से जुड़ा ज्ञान तो कम है ही, इससे जुड़ी अज्ञानताएं बहुत ज़्यादा हैं. इस देश में कई लोगों को ये पता तक नहीं होता है कि वो डिप्रेस्ड है. डिप्रेशन का से उबरना संभव है और इसे पूरी तरह खत्म करना भी. 

प्रेम किसी की हत्या या आत्महत्या की वजह बन जाए, ये अपने आप में ही सबसे बड़ी विडंबना है.  

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