ये Open Letter उन लड़कों के नाम, जो लड़कियों पर फब्तियां कसते हैं और दूर जाकर मुस्कुराते हैं

Kratika Nigam

प्रिय लड़कों,

चलती है क्या? 

ओए होए! 
गंदे-गंदे इशारे! 
कुछ नज़रों से ही मार देते हैं!

ये सारी फ़ब्तियां जो तुम लोग हम लड़कियों पर कसते हो, वो सही है? ऐसा क्या तुम्हें परम सुख मिल जाता है कुछ घटिया शब्द बोलकर?

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कभी सोचते हो अगर ये तुम्हें मैं बोलूं? मैं बोलूं कि ओए हैंडसम कहां जा रहा है, सच-सच बताना कैसा लगेगा? मैं बताऊं अच्छा नहीं लगेगा, मुझे भी नहीं लगता है. जब बस में तुम मुझे गंदे इशारे करते हो. जब मेरे ऊपर गिरने की कोशिश करते हो. मेरे आगे या पीछे हाथ मारकर चले जाते हो. तुम्हारी नज़रें जो मेरे चेहरे से होती हुई मेरे सीने पर जाती हैं. जब बस स्टैंड पर तुम मुझे कुछ गंदा सा बोलने के बाद दूर से देख कर मुझ पर हंसते हो. 

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तुम्हारी वो हंसी मुझे तब तक खलती है जब तक वो हंसी मेरे दिमाग़ से नहीं जाती. गुस्सा मुझे इस बात का आता है जिसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मेरे पास खड़े होकर रुककर मुझे फ़ब्तियां कसे, वो मुझपर हंसकर चला जाता है और मैं चुपचाप खड़ी रह जाती हूं. उस वक़्त मुझे तुमपर गुस्सा बहुत आता है. जी चाहता है कि तुम्हारा मुंह तोड़ दूं, लेकिन तुम्हारी कायरता तुम्हें बचा लेती है.

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साल 2016 की नोएडा बस स्टैंड की वो रात, जब मैं ऑफ़िस से वापस घर जाने के लिए बस स्टैंड पर खड़ी थी. उस बस स्टैंड पर लाइट नहीं जल रही थी, बस आने जाने वालों और रोडलाइट की थोड़ी-बहुत रौशनी पड़ रही थी. तभी बाइक पर दो लड़के आए और मुझसे बोले कि चलो…उनका वो ‘चलो’ मुझे इस क़दर डरा गया कि मैं वापस अपने ऑफ़िस भाग गई. वहां से एक स्टाफ़ को लेकर आई और उसने मुझे बस पर बैठाया. जब मैं घर पहुंची तो डरी थी , जबकि मैं कभी नहीं डरती. उस दिन इसलिए डरी थी शायद ऐसा पहली बार हुआ था. क्योंकि मेरे साथ ऐसा पहले नहीं हुआ था.

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फिर मैंने अपने घर पर वो बात बताई और अगले दिन से किसी ने मुझे ऑफ़िस नहीं जाने दिया. इसलिए नहीं कि वो कमज़ोर हैं इसलिए कि वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं. हमलोग उस टाइम वेस्ट दिल्ली में रहते थे और मेरा ऑफ़िस नोएडा था. तो वो डर गए अगर कुछ हुआ तो वो पहुंच नहीं पाएंगे. सच बताऊं उस दिन मैं भी बहुत डर गई थी.

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वो लड़के मुझे डराकर चले गए उस डर ने मुझसे मेरा जॉब छीन लिया. उनके उस कमेंट चलो, चल न! ने मुझे कई रातें नहीं सोने दिया. आज उस बात को काफ़ी समय हो गया है. अब डर नहीं लगता.

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बस जब तुम ऐसे शब्द बोलकर निकल जाते हो न तो गुस्सा बहुत आता है और अंदर से एक आवाज़ आती है ‘रुकता तो बताती.’ अगर तुम्हें लगता है कि तुम सही कर रहे हो तो भागते क्यों हो? वैसे तो तुम लड़के ख़ुद को हमसे बहुत ताक़तवर दिखाते हो, ज़रा सी तुम्हें हार पसंद नहीं आती, फिर ये भागना क्या है?

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ये साबित करता है कि कमज़ोर मैं नहीं तुम हो. मैं उस बस स्टैंड पर ही खड़ी रहती हूं. तुम्हारी तरह भागती नहीं.

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ख़त के आखिर में तुमसे इतना कहूंगी, अगली बार जब पटाखा, माल, चल न और चलती है क्या बोलना तो रुकना ज़रूर, भागना मत.

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