TRP की दौड़ में सबसे आगे भाग रहे टीवी सीरियलों में पिछले दो सालों से ‘भाभी जी घर पर हैं’ का नाम ज़रूर शुमार रहा है. ख़ासा लोकप्रिय ये सीरियल हिंदुस्तान के ज़्यादातर घरों में बड़े चाव से देखा जाता है. कल मेरे घर में भी ये सीरियल चल रहा था. मनोरंजन के लिए ये सीरियल भले ही अच्छा हो, लेकिन इसे देखते हुए एक बात हमेशा से खटकती रही है. वो बात है, विभूति नारायण मिश्रा ‘नल्ला’ है.
सीरियल की कहानी में चार मुख्य किरदार हैं. दो मिडल क्लास परिवार दिखाए गए हैं. एक घर में रहते हैं, अंगूरी और उनके पति मनमोहन तिवारी और दूसरे में, अनीता और उनके पति विभूति नारायण मिश्रा. विभूति नारायण मिश्रा और मनमोहन तिवारी को एक दूसरे की बीवियों में, यानि अपनी भाभियों में कुछ ख़ास दिलचस्पी है. अब बात करते हैं इन किरदारों की.
मनमोहन तिवारी एक ‘सफल’ आदमी हैं, क्योंकि उनका ‘चड्डी-बनियान का खोका’ (विभूति की भाषा में) है. विभूति नारायण मिश्रा एक असफल आदमी हैं, वो घर संभालते हैं, यानि ‘नल्ले’ (शो के किरदारों की भाषा में) हैं. मनमोहन तिवारी की पत्नी, अंगूरी एक सफल महिला है, वो गृहणी है, घर संभालती है. विभूति नारायण मिश्रा की बीवी भी एक सफल महिला है, वो कमाती है, जिससे घर चलता है.
अब यहां एक ही किरदार है, जिसे शो का हर किरदार ‘नल्ला’ या ‘असफल’ कहता रहता है. वो है विभूति नारायण मिश्रा. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि करते तो वो भी वही हैं, जो अंगूरी करती है. दोनों ही घर संभालते हैं, अपने साथी के कमाए हुए पैसों से घर चलाते हैं, तो फिर ऐसा क्यों है कि एक ‘सफल’ है और दूसरा ‘असफल’?
इसके पीछे केवल एक कारण है, विभूति नारायण मिश्रा ‘मर्द’ हैं. वो मर्द हैं, इसलिए वो घर का सारा काम कर के भी ‘नल्ले’ कहलाते हैं. दूसरी तरफ, अंगूरी औरत है, इसलिए घर के काम करना ही उसे सफल बना देता है.
बदलाव धीरे-धीरे ही आता है. धीरे-धीरे हमने ये तो स्वीकार कर लिया है कि एक महिला घर के काम कर के ही नहीं, बल्कि घर से बाहर जाकर काम कर के भी सफल हो सकती है, लेकिन अब भी हमने एक मर्द के लिए सफल होने का पैमाना बाहर जाकर काम करना ही तय कर रखा है. जेंडर रोल्स से औरतों को तो कुछ हद तक आज़ादी मिल गयी है, लेकिन मर्द अब भी इनमें बुरी तरह जकड़े हुए हैं.
शो के किरदार, यहां तक कि खुद विभूति की बीवी अनीता भी उसे ‘नल्ला’ कहती है. जबकि शो में कई बार बताया गया है कि एक गृहणी की तरह विभूति घर के सभी काम करता है, इसमें बीवी के कपड़े धोना, जब वो काम से थक कर आये, तो उसके लिए कॉफ़ी बनाना, खाना बनाना, सब शामिल है. अगर किसी गृहणी से कहा जाये कि वो ‘नल्ली’ हैं, निकम्मी हैं, कोई काम नहीं करती हैं, तो कितना अपमानजनक लगेगा न? लेकिन वही सब काम कर रहे एक आदमी से ऐसी बाते कहा जाना स्वीकार्य है.
विभूति नारायण मिश्रा उतना ही सफल है, जितना घर में काम करने वाली कोई महिला. वो महिला जो कमा के घर नहीं चलती, लेकिन उसके बिना घर चल भी नहीं सकता. वो उतना ही सफल है, जितनी कोई मां होती है, जो घर के सभी काम करती है, ताकि बच्चे चैन से पढ़ाई और पति चैन से काम कर सके. एक मर्द होना उसे नल्ला नहीं बना देता, वो उतना ही सफल है, जितनी जेंडर रोल्स को तोड़ कर, घर से बाहर काम कर के घर चलाने वाली कोई लड़की होती है. फ़र्क बस नज़रिए का है.
अब तर्क ये दिया जायेगा कि कॉमेडी सीरियल है, इसे सीरियसली क्यों लेना. इसका जवाब पहले ही बता दूं, जब सेक्सिस्ट कॉमेडी से, महिलाविरोधी कॉमेडी से हम आहत होते हैं, तो पुरुषविरोधी चीज़ों को हल्के में क्यों लेना? जो कुछ भी टीवी पर, फ़िल्मों में दिखाया जाता है, उसका असर समाज पर होता ही है. क्या पता असल जीवन में भी किसी विभूति नारायण मिश्रा को कोई ‘नल्ला’ कह कर बुलाने लगा हो. उसे भी ये सुन कर उतना ही बुरा लगेगा, जितना किसी गृहणी को लगता. उद्देश्य बस ये समझाना था कि बराबरी का हक़ मर्दों के लिए भी उतना ही ज़रूरी है, जितना कि महिलाओं के लिए. और हां, विभूति नारायण मिश्र ‘नल्ला’ नहीं है.