घर में काम करने वालों के लिए अलग बर्तन क्यों, आज भी ये 100 साल पुरानी सोच सही है क्या?

Maahi

भारत में आज भी भेदभाव और छुआछूत सबसे बड़ी बीमारी बनी हुई है. सदियों से चली आ रही इस सामाजिक बीमारी से हमें आज तक छुटकारा नहीं मिल पाया है. समाज के निचले तबके के लोगों को आज भी हर मोड़ पर किसी न किसी तरह भेदभाव से गुजरना पड़ता है. आज भी देश के कई ग्रामीण इलाक़ों में छुआछूत किसी महामारी से कम नहीं है. देश आज भी जाति और धर्म की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है. दुनिया आज चांद पर पहुंच चुकी हैं, लेकिन देश में आज भी छुआछूत और भेदभाव जैसी सामाजिक बीमारियां पसरी पड़ी हैं.

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21वीं सदी में भी लोग अगर इस तरह की सोच रखेंगे तो आने वाले दौर में समाज में बैलेंस बनाएं रखना बेहद मुश्किल हो जायेगा. अमीर और ग़रीब के बीच की खाई और बढ़ जाएगी. देश में आज भी अधिकतर लोग इसी मानसिकता के साथ जी रहे हैं, जो बेहद गंभीर परिणाम वाली है. महानगरों से लेकर छोटे क़स्बों में आज भी इंसान-इंसान में फ़र्क किया जाता है. समाज का ये चेहरा बेहद संवेदनशील है. ये हमें न केवल अमीर और ग़रीब के बीच का फ़ासला दिखाता है, बल्कि इंसानियत का कड़वा सच भी दिखाता है.

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छुआछूत और भेदभाव जैसी सामाजिक बीमारियां

देश के ‘एलीट क्लास’ ने हमेशा ही ‘लोअर क्लास’ को इस बात का एहसास कराया है कि हम अमीर हैं और तुम ग़रीब. समय के साथ अमीरी और ग़रीबी का ये फ़ासला कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. यही कारण है कि आज भी हमारे घरों में काम करने के लिए आने वाले माली, पेंटर, इलेक्ट्रिशियन, सफ़ाईकर्मी आदि को अगर बैठने के लिए कहा जाये तो वो सोफ़े के बजाय झट से फ़र्श पर बैठ जाते हैं. दरअसल, इन्हें हर बार इस बात का एहसास करवाया गया है कि वो इसी के क़ाबिल हैं, लेकिन इंसानियत इसे इजाज़त नहीं देती. आज लोगों को इस मानसिकता से बाहर आने की ज़रूरत है तभी समाज में बराबरी की बात की जा सकती है.

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ये बात भी सच है कि देश में सब लोग इस तरह की सोच वाले नहीं हैं. हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो छुआछूत और भेदभाव वाली मानसिकता से कोसों दूर हैं. भारत में ‘प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम’ होता है वाली कहावत बेहद मशहूर है. ये कहावत सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इस महिला के लिए सटीक बैठती है, जो इन दिनों अपनी सोच की वजह से लोगों के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं.

दरअसल, इस महिला ने एक सीरीज़ में कई ट्वीट किए हैं. इनमें उन्होंने बताया कि ‘उनके घर पर एक ‘फ़र्नीचर रिपेयर वाला’ आया था. इसके बाद उन्होंने उसे न केवल पानी पिलाया, बल्कि उसी ग्लास में पानी को पीने दिया जिसमें वो ख़ुद पीती थीं. लेकिन महिला को उस वक़्त अजीब लगा जब ‘फ़र्नीचर रिपेयर वाला’ गिलास में दिए पानी को बिना मुंह लगाए पीने लगा. जब पानी गिरने लगा तो उसने महिला से पूछा कि क्या वो मुंह लगाकर पी सकता है?

ये बात सुनकर महिला को बेहद दुःख हुआ. इसके बाद उन्होंने ‘फ़र्नीचर रिपेयर वाले’ को साथ में ले जाने के लिए पानी की एक बोतल ऑफ़र की. लेकिन उसने महिला के सामने पानी भरने के लिए अपनी बोतल आगे कर दी. ये देख महिला को और भी आश्चर्य हुआ. क्योंकि आज भी अधिकतर लोग इन्हें न तो अपनी पर्सनल बोतल से पानी पीने देते हैं न हीं अपना कोई पर्सनल सामान छूने देते हैं. यही कारण है कि उन्हें ये सब सहने की आदत पड़ चुकी है.

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