वो दिन भी किसी आम दिन जैसा ही था. रोज़ उठना, दफ़्तर आना, काम में लग जाना. काम के सिलसिले में ही मेरे एडिटर ने मुझे एक ट्वीट दिखाया.
पहली नज़र में कुछ समझ नहीं आया कि इसमें ऐसा क्या हो गया जो एडिटर मुझे ये ट्वीट देखने को कह रहे हैं. इसके बाद उन्होंने मुझे दूसरा ट्वीट दिखाया
अब पूरा मामला धीरे-धीरे समझ आया. और जब समझ आया तो सोचा कि क्यों न ‘इस तरह के विचार’ रखने वालों से सीधे बात की जाए
‘अप्रिय’ शेफ़ाली वैद्द और इस टाइप की सोच रखने वालों,
कैसा चल रहा है सब, ठीक न? मेरा तो वही है रोज़ का उठना, ऑफ़िस जाना और फिर घर वापस आ जाना.
आप बताइए, घर पर सब बढ़िया न? ट्विटर पर सब ठीक न? अरे यार, मेरे ट्वीट्स पर तो कभी ट्रोल नहीं आते, इसी बहाने मेरी भी थोड़ी ‘पब्लिसिटी’ हो जाती!
आपके ट्विटर अकाउंट को मैं फ़ॉलो करती हूं और आपके हर ट्वीट पर मेरे दिमाग़ में सवालों का सैलाब आ जाता है. ग़ौरतलब है कि मैं न तो कभी उन पर रिप्लाई करती हूं और न ही कुछ लिखती हूं, पर जिस विषय को लेकर आपने इस तरह की बातें कही हैं न, वो किसी के भी ‘सामान्य बुद्धि’ वाले व्यक्ति के दिमाग़ पर क़रारी चोट करती है. और इसीलिए मेरे भी दिमाग़ पर भी किया.
पीरियड्स, एक ऐसा शब्द जो मेरी ज़िन्दगी में 11 साल की उम्र से जुड़ा हुआ है. मेरी मां ने भी मुझे पीरियड्स पर उसकी मां द्वारा दी गई जानकारियां और अपने हिसाब से कुछ बातें बताईं. जैसे, पूजा न करना, मंदिर न जाना और डेट याद रखना या लिख कर रख लेना. पर पता है, ये डेट नोट करना मेरे किसी काम का था ही नहीं. क्योंकि शायद ही कभी मेरे पीरियड्स उसी डेट पर आए हों. स्कूल के बैग में मां ने टिफ़िन के साथ पैड भी देना शुरू कर दिया था, ताकी स्कर्ट गंदी न हो.
10वीं में बायोलॉजी टीचर ने Menstrual Cycle बहुत अच्छे से पढ़ाया और उन्होंने ही बताया कि इस Cycle पर किसी का ज़ोर नहीं चलता है. ये शरीर टू शरीर वैरी करता है.
जिस महिला को आज लोग पैड रखने, डेट मार्क करके रखने की हिदायतें दे रहे हैं, शायद उनके शिक्षक ने उन्हें अच्छे से न पढ़ाया हो या फिर उन्होंने भी Diagrams देखकर खी-खी करते हुए क्लास टाइम बिताई हो.
जो चीज़ हमारे कन्ट्रोल में है ही नहीं, उसकी तारीख़ नोट करके रखने का भी क्या फ़ायदा?
उस लड़की के लिए बहुत से लोग कह रहे हैं कि Pad लेकर चलना था, तुझे पब्लिसिटी चाहिए, वगैरह वगैरह. एक बात बताइए, देवियों और सज्जनों क्या पैड रखना सांस लेने जितना ज़रूरी है? या फिर उससे भी ज़्यादा? अरे भाई, इंसान ही तो हैं न? क्या कोई भूल नहीं सकता सफ़र में पैड रखना? और क्या किसी को पीरियड तारीख़ से पहले नहीं आ सकता?
मतलब हद की भी हद, एक महिला होकर पैड को कोन्डम से कंपेयर कर रही है? दोनों सुरक्षा के लिए ही है पर क्या दोनों एक बात है?
शर्म आनी चाहिए आप लोगों को जो एक Natural Process का ऐसा घटिया मज़ाक बना रहे हैं. मुझे तो ये भी समझ नहीं आता कि इस मामले पर पुरुषों की राय इस तरह की क्यों हैं? मैं ऐसा नहीं कह रही हूं कि उनके पास यूट्रस नहीं हैं, तो वो अपना ओपिनियन नहीं दे सकते, पर जिस बारे में समझ कम हो उस बारे में सोचकर तो बोला ही जा सकता है न?
आशा है कि ये बात आपकी भावशून्यता को ज़रा कम करने में मदद करेगा.