ज़रा नीरज घ्यावन की फ़िल्म मसान का Opening Scene याद करते हैं…
बनारस की रहने वाली ऋचा चड्ढा अपने बॉयफ्रेंड से मिलने एक होटल में जाती है. दोनों इतने दिनों के इंतज़ार को दूर करना चाहते हैं लेकिन तब तक होटल में पुलिस की रेड पड़ जाती है. दोनों इस ‘स्थिति’ में होते हैं कि पुलिस को उनका Character Certificate बनाते देर नहीं लगती. लड़का डर के मारे उसी समय आत्महत्या कर लेता है और लड़की… वो सड़क पर पड़ी वो चीज़ बन जाती है, जिसे कोई कभी भी आकर लात मार जाता है.
एक लड़का आत्महत्या कर लेता है, एक लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद हो जाती है, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वो दोनों ‘Sex करते हुए पकड़े जाते’ हैं.
भारतीयों के दिमाग़ में होता है Sex
किसी ने कभी ये बात भारतीयों के लिए कही थी और ये कहने में मुझे ज़रा भी शर्म नहीं कि Sex को लेकर हम भारतीयों की असहजता इस हद तक है कि हम इसे दिमाग़ में रखते हैं. हमारे पर्दानशीं समाज में स्कूल में बच्चों का रेप कर सकता है, परिवार में कोई अपना ही लड़की को Molest कर सकता है, Office में बॉस अपनी हवस का शिकार बना सकता है, लेकिन अगर ग़लती से दो Consenting Adults ने (आपसी सहमति) से Sex कर लिया, तो उससे बड़ा जुर्म कुछ नहीं हो सकता.
असंस्कारी SEX
भारत में शायद भगवान और भूत से भी इतना नहीं डरा जाता है, जितना बड़ा फ़ोबिया इस शब्द से है. इससे बड़ी विडंबना ये है कि Sex को लेकर इतनी Social Censorship उस देश में है, जो कुछ सालों में जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़ने वाला है.
शादी के बाद का Open परिवार
अजंता-एलोरा की गुफ़ाओं को छोड़ दीजिये, कामसूत्र के तर्क को भूल जाईये. एक पल के लिए उन सभी पुरानी बातों को भुला देते हैं, जो कहीं-कहीं हमारे पूर्वजों के Sexually Advanced और खुले विचार के होने की याद दिलाती हैं. मैं इस तर्क को एक बार भी इस्तेमाल नहीं करूंगी, लेकिन कोई मुझे ये बता सकता है कि जब हम Sex का S भी नहीं बोलते, तो शादी के बाद परिवार के लोग इतनी सहजता से बहुओं से इस बारे में बात कैसे कर लेती हैं?
मेरी बात अगर अजीब लग रही है, तो ज़रा इन डायलॉग्स पर गौर फ़रमाएं:
‘लगता है तुम लोग कोशिश नहीं कर रहे, तभी हम दादा-दादी नहीं बन पा रहे’
‘जल्दी से हमें एक पोता/ नाती दे दो’
‘इतनी गोलियां (Contraceptive Pills) खानी सही नहीं’
‘(बेटे को) तुझमें दम है कि नहीं’
‘(लड़की को) शादी के बाद भी मोटी नहीं हुई’
ये बातें न ही काल्पनिक हैं और न ही मैंने इन्हें लिखा है. ये वो सभी बातें हैं, जो एक शादीशुदा व्यक्ति अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवार वालों से रोज़ सुनता है. इसलिए समाज का ये तर्क तो कहीं नहीं ठहरता कि हम Sex से जुड़ी बातें नहीं करते.
चलिए परिवार में होने वाले इस ‘हंसी-मज़ाक’ को भी दरकिनार कर दीजिये.
भारत के एक राज्य में नवरात्रि के दौरान होने वाले Sexual Encounters इतने ज़्यादा थे कि वहां जब एक Condom Brand ने Safe Sex के लिए Ad छपवाए, तो बवाल मच गया. इस राज्य के लोग पहले तो ये मानने को तैयार नहीं थे कि नवरात्रि में उनकी Sexual Activity बढ़ जाती है. उल्टा उन्होंने इस ब्रैंड के ख़िलाफ़ Safe Sex प्रमोट करने के लिए गुस्सा और निकाल दिया.
जब Sex करते हो, तो ये Accept करने में किस बात का डर है?
इस हिचक की शुरुआत होती है घरों से, जहां कोई इंटिमेट सीन आते ही चैनल Change कर दिया जाता है, जैसे ये सब काल्पनिक हो. यहां मैं ये बिलकुल नहीं कह रही कि छोटे बच्चों को बिना Parents Discretion के कुछ भी देखने दिया जाए.
लेकिन जितनी सतर्कता हम टीवी पर कोई Ad या सीन आ जाने पर बरतते हैं, क्या उतनी ही Cheap गानों के Lyrics के समय भी होता है? किसी मां-बाप को अजीब नहीं लगता जब उनका बच्चा आराम से ‘गन्दी बात’, ‘DJ वाले बाबू मेरा गाना बजा दो’ जैसे गानों पर नाचता-गाता है?
हमारे समाज को ये मंज़ूर है कि उसके बच्चे घटिया गानों पर नाचे. हमें दिक्कत नहीं जब हमारे समाज के पाक-साफ़ गली-मोहल्लों के किनारों पर Adult फ़िल्में लगती हैं. लोग झाड़ियों में, Parks में जा कर Make Out कर लें, हमें Problem नहीं. हमें प्रॉब्लम तब होती है जब वो इसके लिए एक रूम बुक करते हैं. हमें आपत्ति Sex के ऊपर बात करने से होती है. हमें बाकी सब संस्कारी लगता है, लेकिन ये असंस्कारी है.
आपको एक इंसान की बातों में तर्क न दिखे, Science भी ग़लत है क्या?
कोई छींकता है, डकार मारता है, भूख लगने पर खाना खाता है तो क्या आप उसे छी, गंदा, असंस्कारी कह देते हैं? नहीं न? फिर Sex की बात करने पर किसी को ऐसा क्यों कहा जाता है? इन सभी की तरह ये भी एक बॉडी Function है. इसके बारे में बात न कर के, इसे लेकर सहज न हो कर हम इसे और बड़ा बना रहे हैं. या यूं कहूं बड़ा बना चुके हैं.
हमने ऐसे लोगों की फ़ौज खड़ी कर दी है, जो Sex को लेकर ऐसी-ऐसी भ्रांतियों में जकड़े हैं, कि या तो किसी का Rape कर डालते हैं या अपनी वैवाहिक ज़िन्दगी ख़राब कर डालते हैं.
हम आपस में इसे लेकर बात करते नहीं, ऐसे में जानकारी का इनका एकमात्र ज़रिया Porn होता है. क्या मुझे ये बाताने की ज़रूरत है कि यहां मिलने वाली जानकारी कितनी सही और सुरक्षित होती है?
इस आर्टिकल को पढ़ कर आप छी-छी, थू-थू भी कर सकते हैं और सालों पुराने एक Taboo को तोड़ने की शुरुआत भी. फ़ैसला आपको करना है!