महादेव की नगरी काशी. आप आस्तिक हों या नास्तिक इस शहर की दिव्यता आप दिल के तारों को छू ही लेगी. यहां की सुबह की चाय से लेकर शाम के ‘नमो पार्वतये पते हर हर महादेव’ तक में कुछ ऐसे एहसास हैं जिन्हें शब्दों में तौलना बेहद मुश्किल है.
फ़ेसबुक पर अंगूठे को कष्ट दे रही थी कि एक दोस्त की शेयर की गई तस्वीर पर नज़र पड़ी.
दोस्त ने कैप्शन में काशी का गुणगान किया था. ख़बर का कोई लिंक नहीं था तो मैं गूगल बाबा की शरण में पहुंची. वहां 2-3 बार सर्च करने के बाद नवभारत टाइम्स के लेख का लिंक मिला.
‘हमारे यहां महिलाएं घुंघट में ही रहती हैं’ वाले समाज में रज्जी देवी के घर की महिलाओं और बहुओं ने पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ने कि ओर एक क़दम बढ़ाया है.
बहुओं द्वारा सास को कंधा देना दुखद और सुखद दोनों है. आमतौर पर हमारे देश में यही प्रचलित है कि सास और बहु में प्रेम नहीं होता. दोनों एक-दूसरे की आंखों की किरकिरी होती हैं. कई विज्ञापन और फ़िल्मों में भी यही दिखाया गया है. वहां रज्जी देवी की बहुओं ने ये काम करके सास-बहु के रिश्ते में नया अध्याय भी लिख दिया.
हम उस देश के वासी हैं जहां दलित की लाश को लटकाकर पुल से नीचे उतारा जाता है क्योंकि ऊंची जाति वालों को दलित की अंतिम यात्रा का रास्ता पंसद नहीं आता. वहां एक गांव की महिलाओं ने भविष्य के प्रति सकारात्मकता की जो मशाल जलाई है उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है. ये तस्वीर कड़ा तमाचा है उन लोगों के मुंह पर भी जिन्होंने महिलाओं पर अजीब-ओ-ग़रीब नियम-क़ानून लगा रखे हैं.