Kargil Vijay Diwas: कहानी 21 की उम्र में शहीद हुए एक जवान की, जिनका सपना उनकी मां कर रही हैं साकार

J P Gupta

Kargil Vijay Diwas Captain Sumeet Roy: 24 साल पहले भारत और पाकिस्तान के बीच चौथा युद्ध लड़ा गया था, कारगिल युद्ध. 60 दिनों तक चले इस युद्ध में भारत को विजय हासिल हुई थी. इसका श्रेय भारतीय सेना के जवानों को जाता है. इनमें से कुछ ऐसे भी थे जो भारतमाता की रक्षा करते हुए शहीद हो गए. 

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Kargil Vijay Diwas: उनमें से कुछ ऐस भी थे जिनकी आयु बहुत कम थी. ऐसे ही एक शहीद की कहानी हम आपके लिए लेकर आए हैं. ये बहादुरी से लड़ते हुए 21 साल की उम्र में शहीद हो गए थे. मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 

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कसौली के रहने वाले थे

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हम बात कर रहे हैं कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन सुमित रॉय की. वो कसौली हिमाचल प्रदेश के रहने वाले थे. बचपन से ही उन्होंने ठान लिया था कि वो सेना में भर्ती हो देश सेवा करेंगे. NDA से पास होने के बाद उन्होंने 12 दिसंबर 1998 को Garhwal Rifles को जॉइन कर लिया. वो इसकी 18वीं बटालियन का हिस्सा थे.

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पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कर लिया था पीक पर कब्जा

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अपनी पोस्टिंग के 6 महीने बाद ही वो अदम्य साहस का परिचय दिखाते हुए शहीद हो गए, लेकिन आज भी वो करोड़ों भारतवासियों के दिलों में ज़िंदा हैं. कैप्टन सुमित रॉय की पहली पोस्टिंग कश्मीर में ही हुई थी. युद्ध शुरू होने से पहले वो द्रास में तैनात थे. 28 जून 1999 को सेना को पता चला कि पाकिस्तानी घुसपैठियों ने पीक 4700 पर कब्जा कर लिया. (Kargil War Captain Sumeet Roy)

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उनकी कंपनी को उस पीक पर दोबारा फतह हासिल करने के ऑर्डर दिए गए. कैप्टन सुमित अपने साथियों के साथ उसकी ओर चुपके से चले. चांदनी रात होने के चलते उन्हें हर कदम बड़ी सोच-सझकर रखना था क्योंकि दुश्मन उन्हें ऊपर से आता देख अपनी गोली का शिकार बना सकता था. ऐसे में कैप्टन सुमित अपने साथियों के साथ एक-एक पड़ाव पार करते हुए आगे बढ़े.

अदम्य साहस का दिया परिचय

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जब वो ऊपर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां पर पाकिस्तानी घुसपैठिये मौजूद हैं. वो ‘बद्री विशाल की जय’ बोलकर उनसे भिड़ गए. उन्होंने आमने-सामने के युद्ध में दो घुसपैठियों को मार भगाया. उससे थोड़ी आगे पाकिस्तानियों ने एक बंकर बना रखा था, उसे पर उन्होंने बम फेंक कर बर्बाद कर दिया. इस तरह इंडियन आर्मी, उनकी अगुवाई में पीक पर काबू पाने में कामयाब हुई. 

मां को लिखा था अंतिम पत्र

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दुश्मन भले ही पीठ दिखाकर भाग गया था, लेकिन उसने अपने साथियों के पास पहुंचकर पीक पर गोलाबारी शुरू करवा दी. उसी विस्फोट की चपेट में आकर कैप्टन सुमित रॉय शहीद हो गए. उन्होंने अपनी मां स्वप्ना रॉय को अंतिम पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने ग़रीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई करने और उनका जीवन संवारने की बात कही थी. ये उनका सपना था.

मां ने भी बेटे की अंतिम इच्छा पूरी की. वो शहीद बेटे के नाम पर मिले पेट्रोल पंप से होने वाली इनकम से एक NGO की मदद से ग़रीब बच्चों का जीवन संवारने में लगी हुई हैं.

कैप्टन सुमित रॉय हिमाचल ही नहीं करोड़ों भारतीयों के लिए रोल-मॉडल हैं. 

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