Ladakhi Woman Who Kept Kargil AIR Station Running During Kargil War: आज से 23 साल पहले लद्धाख की कारगिल पहाड़ियों पर भारत ने पाकिस्तान के संग ऐतिहासिक जंग लड़ी थी. इस लड़ाई की शुरुआत तब हुई जब पाक सैनिकों ने कारगिल की पहाड़ियों पर घुसपैठ की और अपना ठिकाना बनाया. फिर क्या था, जब भारतीय सेना को इसकी जानकारी हुई, तो पाकिस्तानी सैनिकों को वहां से भगाकर भारतीय तिरंगा फहरा दिया.


हालांकि, ये युद्ध इतना आसान नहीं था, इसमें हमने अपने 500 से ज़्यादा जवानों को खोया था. साथ इस इस युद्ध में क़रीब भारतीय 1500 सैनिक घायल हुए थे.

ये तो रही कारगिल युद्ध के विषय में संक्षिप्त जानकारी, अब हम आपको उस लद्दाखी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने कारगिल युद्ध के दौरान लगातार फ़ायरिंग के बीच कारगिल का ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन संभाला था. इनके योगदान को भी कम नहीं आंका जा सकता है, क्योंकि कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी रेडियो भारतीय सैनिकों और इंडियन एयर फ़ोर्स के हेलीकॉप्टरों की मार गिराने की झूठी ख़बरें और अफवाएं फ़ैला रहा था और इन अफ़वाहों को रोकने में ऑल इंडिया रेडियो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

आइये, अब विस्तार से पढ़ते हैं ये आर्टिकल (Ladakhi Woman Who Kept Kargil AIR Station Running During Kargil War). 

जवानों की मदद के लिये ज़रूरी घोषणा 

thebetterindia

Ladakhi Woman Who Kept Kargil AIR Station Running During Kargil War : हम जिस महिला की बात कर रहे हैं उनका नाम शेरिंग अंग्मो शुनु है. शेरिंग ऑल इंडिया रेडियो कारगिल की स्टेशन डायरेक्टर थीं. इन्होंने न सिर्फ़ युद्ध के दौरान रेडियो स्टेशन का प्रसारण जारी रखा, बल्कि जवानों की मदद के लिए ज़रूरी घोषणाएं भी की. दरअसल, कर्नल विनय दत्ता ने शेरिंग को कहा था कि युद्ध में लड़ने वाले जवानों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भर्ती की जा रही है, क्योंकि, पहाड़ों में सड़कें नहीं थी और भारतीय सैनिकों के पास गोला-बारूद, भोजन और अन्य ज़रूरत की चीज़ों को ढोने के लिए कुली या खच्चर नहीं थे.


इसलिए, कर्नल ने कहा कि वो इस काम के लिए लद्दाखी लड़कों को आगे आने की लिए अनुरोध करें. शेरिंग ने हर दिन अपने निर्धारित प्रसारण के बीच ज़रूरी घोषणाएं करती रहीं कि भारतीय सेना हमारे लिए लड़ रही है और उनकी मदद के लिए हमें आगे आना होगा.

बेटे को जवानों की मदद के लिए आगे भेजा 

hindustantimes

शेरिंग अंग्मो शुनु ने न सिर्फ़ रेडिया स्टेशन संभाला बल्कि भारतीय जवानों की मदद के लिए अपने 18 साल के बेटे को वॉलंटियर भी बनाया था. उनके बेटे इस काम के लिए डर रहे थे, लेकिन शेरिंग ने उन्हें मना लिया था. चार दिन के अंदर शेरिंग के बेटे सहित 200 लद्दाखी वॉलंटियर तैयार हो गए थे. इनमें 10 से 35 साल के युवक शामिल थे.

सेना की मदद के लिए इन वॉलंटियर्स को दो पल्टूनों में सेना के ट्रकों से दाहा और हनु के बीच बिआमा नाम के एक छोटे से गांव में पहुंचाया गया था. यहां इन वॉलंटियर्स को कैंप में रखा गया. वहीं, जल्द ही ऐसे वॉलंटियर्स की संख्या 800 हो गई थी.   

जवानों की मदद करते रहे  

theweek

Ladakhi Woman Who Kept Kargil AIR Station Running During Kargil War : इन वॉलंटियर्स ने लगातार दो महीनों तक भारतीय जवानों की मदद की. ज़रूरत के सामानों को वो पैदल ही भारतीय सैनिकों तक पहुंचाते रहे. इन वॉलंटियर्स ने बटालिक-यलदोर-चोरबत ला सेक्टर जैसे संवेदनशिल इलाक़ों में तैनात भारतीय सेना की भी मदद की थी. हालांकि, इनके काम के लिए इन्हें वेतन भी दिया जाता था, लेकिन ये वॉलंटियर्स राष्ट्रप्रेम के लिए काम कर रहे थे. इन वॉलंटियर्स ने देश के लिए शहीद हुए जवानों और घायल सैनिकों को निकालने में भी काफ़ी मदद की. 

भारी गोलाबारी के बीच जारी रखा प्रसारण 

greaterkashmir

बेटर इंडिया से बात करते हुए शेरिंग अंग्मो शुनु बताती हैं कि, “ऑल इंडिया रेडियो कारगिल स्टेशन के पास लगातार गोलाबारी होती थी. जिस वक़्त गोलीबारी होती, हम 15 किमी दूर एक गांव में भागकर चले जाते थे. हमने वहां एक कमरा किराये पर ले लिया था और हम सब कर्मचारी फ़र्श पर ही सो जाया करते थे. वहीं, जब गोलाबारी शांत होती, हम फिर प्रसारण लिए वापस स्टेशन लौट आते थे.” 

शेरिंग आगे कहती हैं कि, “उन दिनों रोज़ाना पाकिस्तान की ओर से क़रीब 300 गोले रोज़ाना कारगिल पर गिरते थे. लेकिन, हमने एक भी दिन प्रसारण बंद नहीं किया. हमें सेना की ओर से आदेश दिया गया था कि रात के समय लाइटें बदं रखें, ताकि इमारत बची रहे.”  

कई कर्मचारी जान बचाकर भाग गए थे  

indiatvnews

Ladakhi Woman Who Kept Kargil AIR Station Running During Kargil War : शेरिंग ने आगे बताया कि स्टेशन परिसर में भी पाकिस्तानी गोले गिरे थे. वहीं, मेरे कई साथी अपनी जान बचाकर वहां से भाग गए थे, लेकिन मैंने प्रसारण बंद नहीं होने दिया. वहीं, कभी-कभी रेडियो स्टेशन की तकनीकी टीम काम करने से मना कर देती, इसलिए कई बार मुझे सेना के टेक्निशियन की मदद लेनी पड़ी.” 

शेरिंग आगे बताती हैं कि दिल्ली से भी मुझे वहां से भागने के लिए कहा गया था, लेकिन मैं वहां डटी रही. मुझे किसी भी हाल में रेडियो स्टेशन चालू रखना था और ये मैंने किया.” 
दोस्तों, कारगिर युद्ध में भारतीय जवानों के योगदान के साथ-साथ शेरिंग जैसे कई लद्दाखी लोगों के योदगान को भी नहीं भुलाया जा सकता है. इनके लिए भी दिल से सैल्यूट तो बनता है. जय हिन्द.