नेशनल फ़ुटबॉलर से फ़ूड डिलिवरी करने तक, बेहद संघर्षों से गुज़र रही है इस महिला खिलाड़ी की ज़िंदगी

Abhay Sinha

जिसके पैर कभी फ़ुटबॉल को गोल पोस्ट में पहुंचाते थे, आज उसके हाथ लोगों के एड्रेस पर खाना पहुंचाते हैं. जो कभी देश का झंडा बुलंद करने का हौसला रखती थी, आज हालात उसे बमुश्किल दो वक़्त की रोटी दे पाते हैं. ये सच्ची और दुखद कहानी है फ़ुटबॉलर पोलामी अधिकारी (Poulami Adhikary) की, जिन्होंने कभी इंटरनेशनल लेवल पर भारत का प्रतिनिधित्व किया था. मगर आज फ़ूड डिलिवरी का काम करने को मजबूर हैं. (National Football Player Works as A Food Delivery Agent)

indiatimes

पेशेवर फ़ुटबॉलर से फ़ूड डिलिवरी तक का सफ़र

भारतीय एथलीट खेल के मैदान बेहद संघर्षों के बाद देश का नाम रौशन करते हैं, लेकिन उसके बाद भी उन्हें ज़िंदगी के संघर्ष में मदद नहीं मिलती. बहुत से एथलीट्स की यही कहानी है. कोलकाता के बेहाला इलाके के शिब्रमपुर की रहने वाली पोलामी अधिकारी उन्हीं में से एक हैं.

पोलामी ने एक पेशेवर फुटबॉलर बनने का सपना देखा था. वो अपने परिवार के लिए भारतीय टीम में नियमित रूप से खेलना चाहती थीं. वो एक शानदार डिफेंडर हैं, जिन्होंने भारत के लिए अंडर-16 और अंडर-19 खेला. वो जर्मनी, इंग्लैंड, यूएसए, श्रीलंका, स्कॉटलैंड आदि में भी खेली हैं. वो उन भाग्यशाली लोगों में से एक हैं, जिन्होंने भारतीय टीम की जर्सी में खेलने का सम्मान हासिल किया, लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है.

National Football Player Now Works as A Food Delivery Agent

indiatimes

सात साल पहले उनके घुटने में चोट लगी, जिसके बाद वो कुछ वक़्त खेल नहीं पाईं. चोट से उबर कर वो फिर मैदान में वापसी करना चाहती थीं, लेकिन परिवार के आर्थिक स्थिति के आगे उन्हें अपने जूते उतारने पड़े. मां को तो उन्होंने बचपन में ही खो दिया था. मौसी ने ही उन्हें पाला था और अब उन्हें संभालना पोलामी की ज़िम्मेदारी थी. ऐसे में वो फ़ूड डिलिवरी का काम करने लगीं.

indiatimes

150 रुपये कमाना भी मुश्किल होता है

सोशल मीडिया पर हाल ही में पोलामी अधिकारी का एक वीडियो वायरल हो रहा है. क्लिप में उन्हें Zomato की टी-शर्ट पहने देखा जा सकता है. पोलामी फ़ूड डिलिवरी के साथ अपनी पढ़ाई भी कर रही हैं. वो चारुचंद्र कॉलेज से पढ़ रही हैं.

पोलामी कहती हैं कि फ़ूड डिलिवरी के काम से वो किसी तरह घर ख़र्च चला रही हैं. किसी दिन उनकी कमाई 400 रुपये होती है तो किसी दिन 150 रुपये भी नहीं मिल पाते हैं.

इस वीडियो को अब तक 1 लाख 68 हज़ार से ज़्यादा लोग देख चुके हैं. हर कोई इस नेशनल फ़ुटबॉलर की स्थिति देख कर दंग है. लोग लिख भी रहे कि कैसे ग़रीबी और सरकारी सहायत के अभाव के चलते प्रतिभाशाली एथलीट संघर्ष और बुरे हालात में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं.

वाक़ई, सरकार को सोचना चाहिए कि हमारे देश के प्रतिभाशाली एथलीट्स को कभी दो वक़्त की रोटी के लिए संघर्ष न करना पड़े. तब ही हम खेलों में विश्व स्तर पर बेहदर प्रदर्शन कर सकेंगे.

ये भी पढ़ें: उम्र नहीं जज़्बा मायने रखता है, 66 की उम्र में मैराथन रनर पुष्पा भट्ट जीत चुकी हैं देश के लिए कई मेडल

आपको ये भी पसंद आएगा
नशेड़ी पति ने ससुराल छुड़ाया, तानों ने मायका, दर्दभरी है बेटी को पेट से बांध रिक्शा चला रही मां की कहानी
इस गांव में लड़कियों को नहीं थी पढ़ने की इजाज़त, फिर 5वीं पास कमला बाई ने ऐसे जलाई शिक्षा की लौ 
जानिए कौन हैं बिहार के IAS गोविंद जायसवाल, जिनके संघर्ष पर आ रही है फ़िल्म ‘Ab Dilli Dur Nahin’
सरवन सिंह: वो खिलाड़ी जिसकी Gold जीतने पर भी नहीं बदली ज़िंदगी, 20 साल टैक्सी चलाकर गुज़ारी ज़िंदगी
मिलिए कुकू राम से जो कभी थे अस्थाई सफ़ाई कर्मचारी, अब 53 की उम्र में बने ‘मिस्टर वर्ल्ड 2022’
प्रेरणादायक: 40 साल से जहां करती आ रही थी साफ-सफाई, अब उसी शहर की डिप्टी मेयर बनीं चिंता देवी