डॉक्टर अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम. आसान शब्दों में कहें, तो ए. पी. जे. अब्दुल कलाम. भारत के ग्यारवहें राष्ट्रपति, जिन्हें भारत का सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति माना जाता है. लोकप्रियता के मामले में राजेंद्र प्रसाद और डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन के साथ खड़े होते हैं.

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डॉक्टर कलाम की उपलब्धियां, उनके जीवन का संघर्ष के बार में देश के बच्चे-बच्चे को मालूम है. क्यों उन्हें ‘मिसाईल मैन’ कहा जाता है, कैसे उन्होंने अपनी लिखी किताबों द्वारा सबको प्रोत्साहित किया. ये सभी बातें सार्वजनिक हैं.

ए. पी. जे. अब्दुल कलाम राष्ट्रपति के रूप में कैसे थे?

राष्ट्रपति देश का पहला नागरिक होता है, भारतीय संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति की कुर्सी सबसे ऊपर होती है. बावजूद इसके राष्ट्रपति की शक्तियां बेहद सीमित होती हैं. इन शक्तियों के साथ राजनीति और समाज के ऊपर कोई प्रभाव छोड़ पाना मुश्किल बात है.

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डॉक्टर कलाम ने संविधान के दायरे में रहते हुए अपनी शक्तियों का बख़ूबी इस्तेमाल किया, जिस राष्ट्रपति की कुर्सी के साथ ‘रबर स्टैंप’ का टैग चस्पा हुआ था, कम से कम उनके कार्यकाल के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता.

अब्दुल कलाम ने अपने पूरे कार्यकाल में सबसे ज़्यादा, 50 फांसी के फ़ैसलों को पुनर्विचार के लिए भेजा. पांच साल में उन्होंने सिर्फ़ बच्ची के बलातकार के दोषी धनंजय चैटर्जी की दया याचिका को ख़ारिज किया था. इसके अलावा उन्हें मौत की सज़ा का विरोधी बताया जाता है. पद पर रहने के दौरान भी वो इसकी मुख़ालिफ़त करते थे.

राष्ट्रपति की सहमति के बिना देश में ‘मनी बिल’ के अलावा कोई क़ानून पारित नहीं हो सकता. लेकिन इस सहमति के प्रावधान को भी ऐसा बनाया गया है, कि इसमें एक हद के बाद विरोध करने का रास्ता नहीं बचता. फिर भी बहुत कम ऐसे मामले हुए, जब राष्ट्रपति ने संसद द्वारा पारित बिल पर हस्ताक्षर करने से मना किया हो.

अब्दुल कलाम के कार्यकाल के दौरान ऐसे दो वाक्ये हुए, जब UPA की सरकार ने संसद में Office of Profit Bill को पास कर राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा, जहां उसे क़ानूनी शक़्ल मिलने वाली थी. तब राष्ट्रपति ने बिल का अच्छी तरह अध्ययन करके और विशेषज्ञों से सलाह मशवरा करके वापस संसद में अपनी आपतियों के दर्ज करा कर भेज दिया.

इसके अलावा गुजरात सरकार ने आतकंवाद पर नियंत्रण कसने के लिए Gujarat Control of Organised Crime Bill (GUJCOC), 2003 विधानसभा में पास करके राष्ट्रपति के पास मुहर के लिए भेजा था. तब अब्दुल कलाम ने एक नहीं, बल्की दो बार पुनर्विचार के लिए गुजरात विधानसभा को ये कानून वापस भेजा. इस बिल को लेकर विपक्ष ने भारी विरोध किया था. इसमें कई ऐसी चीज़ें थी, जिनका इस्तेमाल पुलिस या सत्ताधारी पार्टी निजी स्वार्थ के लिए उठा सकती थी.

इन तमाम उपलब्धियों के साथ डॉक्टर कलाम के कार्यकाल के साथ एक दाग भी जुड़ा है. 2005 में बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय काफ़ी विवादित माना जाता है.

ऐ. पी. जे. अब्दुल कलाम ने अपने पांच साल के कार्यकाल में राष्ट्रपति की कुर्सी पर लगे ‘Toothless Tiger’ के टैग को बेहद शालीनता से उखाड़ फेंका था.