कहते हैं काम छोटा या बड़ा नहीं होता है. कभी-कभी छोटे स्तर से शुरू किया गया काम भी आगे जाकर बड़ा व्यापार बन जाता है. ठीक वैसे ही जैसे हल्दीराम (Haldiram) बन गया. आज भले ही हल्दीराम हम सबके लिये एक बड़ा ब्रांड बन चुका है, लेकिन कभी ये बीकानेर की छोटी सी दुकान हुआ करती थी. एक छोटा दुकानदार मेहनत से अपना काम करता गया और बना दिया हल्दीराम को एक बड़ा ब्रांड.
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कैसे एक छोटी सी दुकान बनी नंबर-1 स्नैक्स कंपनी?
अब पूरे बीकानेर में हल्दीराम भुजिया समेत कई प्रकार नमकीनों की चर्चा होने लगी. इसके बाद ये देखते-देखते हल्दीराम ब्रांड देशभर में मशहूर होने लगा. व्यापार को बढ़ावा देने के लिये दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में हल्दीराम आउट लेट्स खोले जाने लगे. सिर्फ़ बीकानेर और दिल्ली ही नहीं, हल्दीराम ने अमेरिका तक अपनी पहुंच बना ली थी.
जानकारी के मुताबिक, हल्दीराम का पहला मैन्युफै़क्चरिंग प्लांट कोलकाता में शुरू हुआ था. इसके बाद 1970 में एक आउटलेट जयपुर में शुरू किया गया और फिर 1982 में एक आउटलेट दिल्ली में खोला गया. 2003 में हल्दीराम उत्पाद अमेरिका में निर्यात किये जाने लगे थे. इस दौरान हल्दीराम ने ख़ूब पैसा और नाम कमाया. 2015 में अमेरिका ने हल्दीराम के उत्पादों पर ये कह कर रोक लगा कि उत्पादों में कीटनाशक का उपयोग किया जाता है. ये हल्दीराम के लिये बड़ा झटका ज़रूर था, लेकिन इससे उनके ब्रांड पर ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ा.
रिपोर्ट के मुताबिक, 2013-2014 में उत्तर भारत में हल्दीराम का मैन्युफैक्चरिंग रेवेन्यू 2,100 करोड़ रुपये था. अगर वेस्ट और साउथ इंडिया की बात करें, तो हल्दीराम की सालाना सेल 1, 225 करोड़ रुपये थी. 2019 में कंपनी का रेवेन्यू 7, 130 करोड़ रुपये रहा. वर्तमान में उत्तर भारत में इसके 50 से अधिक आउटलेट्स हैं और 100 से अधिक उत्पादों का निर्माण किया जाता है.
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किसने सोचा था बीकानेर की एक छोटी सी दुकान एक दिन दुनियाभऱ में मशहूर हो जायेगी, लेकिन मेहनत और लगन से क्या नहीं संभव है.