Kargil War Heroes: भारतीय इतिहास ऐसे योद्धाओं की वीर गाथाओं से भरा पड़ा है, जिन्होंने अपने शौर्य और अदम्‍य साहस के देश के दुश्मनों को नेस्त-ओ-नाबूद कर दिया था. इतिहास की किताबों में ‘प्रथम विश्वयुद्ध’ से लेकर ‘कारगिल युद्ध’ तक, देश के हज़ारों जवानों की कई शौर्य गाथाएं मौजूद हैं. भारत में हर साल 26 जुलाई को ‘कारगिल युद्ध’ में शहीद होने वाले सैनिकों के सम्मान में ‘कारगिल विजय दिवस’ मनाया जाता है. कारगिल युद्ध 3 मई से 26 जुलाई 1999 तक चला था. ये दिन ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता का भी प्रतीक है, जो 1999 में कारगिल द्रास क्षेत्र में पाकिस्तानी आक्रमणकारियों द्वारा कब्ज़ा किए गए क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने के लिए शुरू किया गया था.

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कारगिल विजय दिवस
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इसीलिए आज हम आपको ‘कारगिल विजय दिवस’ के मौके पर इस युद्ध के हीरो रहे उन जवानों का ज़िक्र करने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी जानपर खेलकर तिरंगे का मान रखा.

1- कैप्टन विक्रम बत्रा (परमवीर चक्र, मरणोपरांत)

विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर, 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें उनकी शहादत के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था. 6 दिसंबर, 1997 को इंडियन मिलिट्री अकेडमी, देहरादून से पासआउट होने के बाद उन्हें 13वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफ़ल्स में लेफ़्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया था.

कैप्टन विक्रम बत्रा
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कैप्टन विक्रम बत्रा को 5 जून, 1998 को जम्मू और कश्मीर के द्रास जाने का आदेश दिया गया था. कैप्टन विक्रम बत्रा ‘कारगिल युद्ध’ के नायक के रूप में जाना जाता है. उन्हें पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्ज़ा किये पीक 5140 पर फिर से कब्ज़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. कैप्टन बत्रा ने इस मिशन के दौरान ‘ये दिल मांगे मोर!’ का नारा दिया था. इसके बाद वो पीक 4875 पर कब्ज़ा करने के मिशन पर निकले थे. पाक सेना से जंग में उनके एक साथी को गोली लग गई थी, बावजूद इसके उन्होंने सैकड़ों दुश्मनों का भी सफाया कर दिया, लेकिन इस दौरान सीने में गोली लगने की वजह से वो शहीद हो गए.

2- ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव (परमवीर चक्र)

योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के सिकंदराबाद में हुआ था. अगस्त 1999 में नायब सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव को भारत के सर्वोच्च सैन्य परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. वो ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित होने वाले सबसे कम उम्र के सैनिक हैं. 12 जून 1999 को उनकी बटालियन ने ‘तोलोलिंग टॉप‘ पर कब्ज़ा कर लिया और इस प्रक्रिया में 2 अधिकारियों, 2 जूनियर कमीशंड अधिकारियों और 21 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया.

ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव
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कारगिल युद्ध के दौरान वो ‘घातक प्लाटून’ का हिस्सा थे जिसे ‘टाइगर हिल’ पर लगभग 16500 फ़ीट ऊंची चट्टान पर स्थित पाक सेना के 3 रणनीतिक बंकरों पर कब्ज़ा करने का काम सौंपा गया था. यादव जब अपनी बटालियन के साथ रस्सी के सहारे ‘टाइगर हिल’ पर चढ़ रहे थे तभी दुश्मन के बंकर ने रॉकेट फ़ायर शुरू कर दिया और उन्हें कई गोलियां लगीं, लेकिन दर्द बावजूद उन्होंने मिशन जारी रखा. वो रेंगते हुए दुश्मन के पहले बंकर तक पहुंचे और एक ग्रेनेड फेंका, जिसमें लगभग 4 पाकिस्तानी सैनिक मारे गये. इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक तीनों ठिकानों पर कब्ज़ा कर लिया.

3- लेफ़्टिनेंट मनोज कुमार पांडे (परमवीर चक्र, मरणोपरांत)

मनोज कुमार पांडे का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हुआ था. सर्विस सिलेक्शन बोर्ड (SSB) इंटरव्यू के दौरान जब उनसे सवाल किया गया कि वो भारतीय सेना में क्यों शामिल होना चाहते हैं? तो उन्होंने जवाब दिया, ‘मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूं’. हुआ भी ऐसा ही लेफ़्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को कारगिल युद्ध के दौरान उनके अदम्य साहस और नेतृत्व के लिए उन्हें मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था.

लेफ़्टिनेंट मनोज कुमार पांडे
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लेफ़्टिनेंट मनोज कुमार पांडे भारतीय सेना के ‘1/11 गोरखा राइफ़ल्स’ के जवान थे. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. कारगिल युद्ध के दौरान उनकी टीम को पाक सेना को खदेड़ने का काम सौंपा गया था, उन्होंने घुसपैठियों को पीछे धकेलने के लिए कई हमले किए. दुश्मन की भीषण गोलाबारी के बीच गंभीर रूप से घायल मनोज कुमार ने हमला जारी रखा, जिसके परिणामस्वरूप अंततः बटालिक सेक्टर में जौबार टॉप और खालुबार पहाड़ी पर कब्ज़ा भी किया, लेकिन इस जंग में वो शहीद गये.

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4- लेफ़्टिनेंट बलवान सिंह (महावीर चक्र)

बलवान सिंह का जन्म अक्टूबर 1973 में हरियाणा के रोहतक में हुआ था. वो भारतीय सेना की 18 ग्रेनेडियर्स के जवान थे. कारगिल युद्ध के दौरान लेफ़्टिनेंट बलवान सिंह को उनके साहस और बहादुरी के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. लेफ़्टिनेंट बलवान सिंह को कारगिल युद्ध के दौरान ‘घातक प्लाटून’ की कमान मिली थी. 3 जुलाई 1999 को लेफ़्टिनेंट सिंह की प्लाटून को ‘टाइगर हिल’ पर हमला करने का काम सौंपा गया था.

लेफ़्टिनेंट बलवान सिंह
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क़रीब 16500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित ‘टाइगर हिल टॉप’ बर्फ़ से ढका होने के बावजूद वो अपनी टीम के साथ इस बेहद कठिन और अनिश्चित मार्ग पर तोपखाने की गोलाबारी के बीच 12 घंटे से अधिक समय तक चलते रहे. जब उनकी टीम ‘क्लिफ़ असॉल्ट पर्वतारोहण उपकरण’ का इस्तेमाल कर चुपके से ‘टाइगर हिल टॉप’ पर चढ़ रही थी इसी दौरान दुश्मनों ने ऊपर से ताबड़तोड़ गोलाबारी कर दी,जिसमें लेफ़्टिनेंट सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए. घायल होने के बावजूद उन्होंने पीछे हटने से इंकार कर दिया और लड़ाई जारी रखते हुए 4 दुश्मन सैनिकों को मार गिराया. टाइगर हिल पर कब्ज़ा करने में लेफ़्टिनेंट बलवान सिंह की बटालियन ने अहम भूमिका निभाई थी.

5- मेजर राजेश सिंह अधिकारी (महावीर चक्र, मरणोपरांत)

राजेश सिंह अधिकारी का जन्म दिसंबर 1970 में उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ था. भारतीय सेना की ’18 ग्रेनेडियर्स’ के जवान मेजर राजेश सिंह अधिकारी को कारगिल युद्ध के दौरान उनके अदम्य सहस और बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था. 30 मई 1999 को मेजर अधिकारी की टीम को तोलोलिंग पर कब्ज़ा करने का काम उन्हें सौंपा गया था, जहां दुश्मन की मजबूत स्थिति थी. क़रीब 15,000 फ़ीट की ऊंचाई पर दुश्मन की स्थिति ये ख़तरनाक पहाड़ी बर्फ़ से हुई थी.

मेजर राजेश सिंह अधिकारी
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मिशन के दौरान मेजर राजेश सिंह अधिकारी की टीम पर दुश्मनों द्वारा ‘यूनिवर्सल मशीन गन’ से गोलीबारी की गई. इसके बाद मेजर राजेश ने तुरंत रॉकेट लॉन्चर टुकड़ी को दुश्मन की स्थिति पर हमला करने का निर्देश दिया और बिना इंतज़ार किए क़रीबी मुक़ाबले में दुश्मनों सेना के 2 जवानों को मार गिराया. उन्होंने अपनी सूझबूझ से अपनी ‘मशीन गन’ टुकड़ी को चट्टानी क्षेत्र के पीछे स्थिति लेने और दुश्मन से मुकाबला करने का आदेश दिया, लेकिन इस दौरान मेजर अधिकारी दुश्मन की गोलियों से घायल हो गए. घायल होने के बावजूद उन्होंने जगह से हटने को इंकारकर दिया और दुश्मन के दूसरे ठिकाने पर हमला कर प्वाइंट 4590 पर कब्ज़ा कर लिया. लेकिन गंभीर रूप सेघायल होने के बाद उन्होंने दम तोड़ दिया.

6- राइफ़लमैन संजय कुमार (परमवीर चक्र)

संजय कुमार का जन्म मार्च 1976 में हिमाचल प्रदेश बिलासपुर में हुआ था. भारतीय सेना की 13 JAK Rif के जवान राइफ़लमैन संजय कुमार को कारगिल युद्ध के दौरान उनके साहस और बहादुरी के लिए ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था. 4 जुलाई 1999 को उन्हें स्वेच्छा से मुश्कोह घाटी में पॉइंट 4875 के फ़्लैट टॉप क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के लिए हमलावर दस्ते का प्रमुख स्काउट बनने का काम सौंपा गया था.

राइफ़लमैन संजय कुमार
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मिशन के तहत राइफ़लमैन संजय कुमार जब अपने साथियों के साथ हमले के लिए आगे बढे, तो दुश्मन ने उन पर ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी. स्थिति की गंभीरता को समझते हुए उन्होंने अदम्य साहस दिखाते हुए आमने-सामने की लड़ाई में 3 घुसपैठियों को मार गिराया, लेकिन ख़ुद भी गंभीर रूप से घायल हो गए. घायल होने के बावजूद वो दूसरी पहाड़ी पर चढ़ गए, जिसे देख दुश्मन हथियार छोड़ वहां से भागने लगे, इस बीच संजय कुमार ने दुश्मनों के हथियार उठाकर उन्हें ही मार डाला. संजय कुमार के साहस से प्रेरित होकर उनके साथियों ‘फ़्लैट टॉप’ क्षेत्र को दुश्मन के कब्ज़े से छुड़ा लिया.

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7- मेजर विवेक गुप्ता (महावीर चक्र, मरणोपरांत)

भारतीय सेना की ‘2 राजपूताना राइफल्स’ के जवान मेजर विवेक गुप्ता देहरादून के रहने वाले थे. मेजर गुप्ता को ‘कारगिल युद्ध’ के दौरान उनके अदम्य साहस और बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था. 13 जून 1999 को जब 2 राजपूताना राइफल्स ने द्रास सेक्टर में टोलोलिंग टॉप पर हमला किया तब वो ‘चार्ली कंपनी’ की कमान संभाल रहे थे. इस दौरान मेजर विवेक गुप्ता के नेतृत्व में भारी तोपखाने और आग के बावजूद टुकड़ी दुश्मन के क़रीब पहुंचने में सक्षम रही.

मेजर विवेक गुप्ता
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मेजर विवेक गुप्ता की टीम ने इसके जवाब में दुश्मन के ठिकाने पर रॉकेट लांचर दाग दिया। इससे पहले कि हैरान दुश्मन संभल पाता, उन्होंने दुश्मन की स्थिति पर धावा बोल दिया. उस वक्त उन्हें दो गोलियां लगी थीं, बावजूद इसके वो पोजिशन की ओर बढ़ते रहे. जगह पर पहुंचने के बाद वह दुश्मन से आमने-सामने की लड़ाई में उलझे रहे और ख़ुद के घायल होने के बावजूद 3 दुश्मन सैनिकों को मारने में कामयाब रहे. मेजर गुप्ता से प्रेरणा लेते हुए कंपनी के बाकी सदस्यों ने दुश्मन की स्थिति पर हमला किया और उन पर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन लड़ाई के अंत में गंभीर रूप से घायल होने से उन्होंने दम तोड़ दिया.

8- कैप्टन एन केंगुरुसे (महावीर चक्र, मरणोपरांत)

एन केंगुरुसे का जन्म जुलाई 1974 में नागालैंड के कोहिमा में हुआ था. भारतीय सेना की ‘एएससी, 2 राज आरआईएफ’ के जवान कैप्टन एन केंगुरुसे को ‘कारगिल युद्ध’ के दौरान उनके अदम्य साहस और बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था. 28 जून 1999 की रात ‘ऑपरेशन विजय’ के दौरान द्रास सेक्टर में एरिया ब्लैक रॉक पर हमले के दौरान वो प्लाटून कमांडर थे.

कैप्टन एन केंगुरुसे
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कैप्टन केंगुरुसे ने एक चट्टान पर अच्छी तरह से स्थित दुश्मन मशीन गन की स्थिति पर हमला करने के साहसी कमांडो मिशन की ज़िम्मेदारी ली, जो बटालियन के मुख्य उद्देश्य में भारी हस्तक्षेप कर रहा था. जैसे ही कमांडो की टीम चट्टान पर चढ़ी, तीव्र मोर्टार और स्वचालित गोलीबारी शुरू हो गई, जिससे अधिक नुकसान हुआ. इस दौरान कैप्टन केंगुरुसे के पेट में छर्रे लगे और बहुत खून बह रहा था, लेकिन उन्होंने अपन टीम से हमला जारी रखने के लिए कहा. इस दौरान उनकी टीम रॉकेट लॉन्चर चट्टान की दीवार पर चढ़ गई और दुश्मन के ठिकानों पर गोलीबारी कर दी. इस दौरान कैप्टन केंगुरुसे ने दुश्मन की स्थिति की कमान संभाली और घायल होने से पहले आमने-सामने की लड़ाई में 2 पाक सैनिकों को अपनी राइफल से और 2 को अपने कमांडो चाकू से मार गिराया और ख़ुद भी शहीद हो गए.

कारगिल युद्ध में इनके अलावा भी सैकड़ों जवानों से अपनी बहादुरी का परिचय दिया था और तिरंगा फहराया था. भारतीय सेना के जवानों के इस बलिदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता.