Bathinda Case: बठिंडा मिलिट्री स्टेशन पर फ़ायरिंग मामले में पंजाब पुलिस ने सोमवार (17 अप्रैल) को सेना के एक जवान को गिरफ़्तार किया. आरोप है कि उसी ने 4 जवानों की गोली मार कर हत्या कर दी. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि जिन जवानों की हत्या हुई वो उसका यौन शोषण करते थे. उनकी हरकतों से तंगकर उसने हत्या कर दी. हालांकि पंजाब पुलिस और सेना का कहना है कि निजी दुश्मनी की वजह से उसने आरोपियों पर गोली चलाई. फ़िलहाल मामले की जांच की जा रही है. (Homosexuality In Indian Army)
इस बीच लोगों के ज़ेहन में ये सवाल उठ रहा है कि क्या सेना में होमोसेक्शुएलिटी या समलैंगिकता लीगल है या नहीं? आइए जानते हैं- (Is Homosexuality Legal In Indian Army?)
सेना में होमोसेक्शुएलिटी (Homosexuality In Indian Army)
भारत में पहले होमोसेक्शुएलिटी कानूनन अपराध थी. मगर फिर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए धारा 377 को रद कर दिया और समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया. मगर भारतीय सेना में अभी भी होमोसेक्शुएलिटी को अपराध माना जाता है.
जनवरी 2019 में एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि ‘LGBT मामले सेना में स्वीकार्य नहीं हैं.’
इस टिप्पणी पर काफ़ी विवाद भी हुआ था. जिस पर उन्होंने कहा कि ‘जब होमोसेक्शुएलिटी की बात आती है तो भारतीय सेना ना तो आधुनिक है और ना ही उसका पश्चिमीकरण हुआ है, लेकिन रूढ़िवादी ज़रूर है.’
उन्होंने कहा था, आर्मी एक्ट से जुड़ी धाराओं के ज़रिए समलैंगिक यौन अपराधियों से निपटा जाएगा.
पूर्व एडुजेंट जनरल अश्विनी कुमार ने भी समलैंगिकता और व्याभिचार को लेकर कहा था कि फ़ैसले कानूनी रूप से भले ही सही हों, लेकिन नैतिक रूप से ग़लत हो सकते हैं. कुमार ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है, वो ज़़मीन का कानून है लेकिन सेना के बीच इस तरह के कानून कई बार अनुशासन को खत्म कर सकते हैं.’
समलैंगिकता को लेकर सेना में नियम
समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के चार साल से ज़्यादा समय बीत जाने के बाद भी ये भारतीय सेना के तीनों अंगों पर लागू नहीं होता है. सेना अधिनियम, 1950 की धारा 45 के अनुसार, कोई भी अधिकारी ऐसा काम करता है जो अशोभनीय हो और उसके चरित्र को उपेक्षित करता है तो उसे सेवा से वापस बुलाया जा सकता है. (Rules On Gay Sex In Indian Army)
वहीं, धारा 46 (ए) किसी भी व्यक्ति को ‘क्रूर, अशोभनीय या अप्राकृतिक प्रकार’ के अपमानजनक आचरण के लिए दोषी ठहराती है, जिसे कोर्ट-मार्शल द्वारा दोषी ठहराए जाने पर सात साल तक की जेल का सामना करना पड़ेगा.
सेना अधिनियम, 1950 की धारा 63 के अनुसार, ‘अच्छे आदेश और सैन्य अनुशासन के प्रतिकूल मानी जाने वाली कार्रवाइयों से जुड़ी है.’
ये कानूनी प्रावधान हैं जिनका इस्तेमाल सेना में समलैंगिक यौन संबंधों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने के लिए किया जा सकता है.
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