भारत की आज़ादी के लिए यूं तो सैकड़ों लड़कों ने जंग लड़ी थी. मगर कुछ सिरफ़िरे देशभक्त ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बग़ैर देश को सर्वोपरि रखा. आज़ादी की जंग के कई नायकों को आज हम उनके शौर्य और साहस के लिए याद करते हैं, लेकिन इन नायकों में कुछ ऐसे भी थे जिनके हमें नाम तक याद नहीं हैं. इतिहासकारों ने भी इनका कहीं कोई ज़िक्र तक नहीं किया. लेकिन देश की आज़ादी में इनका योगदान भी अन्य मशहूर क्रांतिकारियों के बराबर ही है. इन्हीं गुमनाम क्रांतिकारियों में एक यू तिरोत सिंह (U Tirot Sing) भी थे. आप में से अधिकतर लोग ये नाम पहली बार सुन रहे होंगे. लेकिन क्रांतिकारी तिरोत सिंह के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.

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क्रांतिकारी यू तिरोत सिंह (U Tirot Sing) मेघालय के ‘खासी समुदाय’ से ताल्लुक रखते थे. मेघालय के इस वीर योद्धा पर आज पूरे देश को गर्व है. दरअसल, तिरोत सिंह खडसॉफ़्रा सिमशिप (Khadsawphra Syiemship) के राजा थे. लेकिन उन्हें उस पद पर बेहद संवैधानिक रूप से आसित करवाया गया था. उनमें बचपन से ही वीर योद्धाओं वाला जज़्बा था. अंग्रेज़ों की रोज रोज की दखलंदाज़ी से तंग आकर तिरोत सिंह ने बेहद कम उम्र में ही ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ आज़ादी का बिगुल फूंक दिया था.

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दरअसल, 19वीं सदी में जब ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के डेविड स्कॉट के नेतृत्व में अंग्रेज़ों ने तिरोत सिंह के सामने गुवाहाटी को सिलहट से जोड़ने के लिए सड़क निर्माण का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने इसका खुले दिल से स्वागत किया. अपनी प्रजा की भलाई की ख़ातिर राजा तिरोत सिंह इस प्रस्ताव के लिए अंग्रेज़ों से पूरी तरह से सहमत हो गए, लेकिन प्रस्ताव के बहाने अंग्रेज़ों की मंशा कुछ और ही थी.

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आख़िरकार सन 1827 में राजा तिरोत सिंह ने अपने दरबार में डेविड स्कॉट के साथ एक बैठक की. इस बैठक में लंबी चर्चा के बाद गुवाहाटी के क़रीब नोंगख्लो होते हुए ‘सुरमा घाटी’ तक सड़क निर्माण को मंज़ूरी दी गई. क़रीब 18 महीनों तक सड़क कार्य निर्माण का काम सुचारू रूप से चलता रहा, लेकिन एक दिन एक सेवक ने राजा तिरोत सिंह को जानकारी दी कि ब्रिटिश सरकार सड़क निर्माण के साथ-साथ स्थानीय लोगों पर कर लगाने की योजना भी बना रही है और निर्माणकार्य पूरा होते ही वो उन्हें अपने अधीन कर लेगी.

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राजा तिरोत सिंह अंग्रेज़ों की इस काली करतूर से आग बबूला हो उठे और उन्होंने सड़क निर्माण कार्य में लगे सभी लोगों को फ़ौरन ‘नोंगख्लो’ खाली करने फरमान सुना डाला, लेकिन अंग्रेज़ों ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. अंग्रेज़ों की इस हरक़त के बाद तिरोत सिंह ने अपने कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर 4 अप्रैल, 1829 को अंग्रेज़ों पर धावा बोल दिया. अंग्रेज़ किसी तरह अपनी जान बचाकर सिलहट लौट गये.  

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तिरोत सिंह (Tirot Sing) के इस हमले से अंग्रेज़ कहां चुप रहने वाले थे. तिरोत सिंह से बदला लेने के लिए अंग्रेज़ों ने भी अपनी कमर कस ली. युद्ध में तिरोत सिंह के लड़कों के पास पारंपरिक युद्ध के समान जैसे तीर, भाला, तलवार आदि थे, जबकि ब्रिटिश सैनिकों के पास हाईटेक बंदूकें थीं. लेकिन अंग्रेज़ों को ये नहीं मालूम था कि राजा तिरोत सिंह ‘गुरिल्ला युद्ध’ में भी माहिर हैं.

तिरोत सिंह (Tirot Sing) के नेतृत्व में ‘खासी समुदाय’ के लड़ाकों ने हार मानना कभी सीखा ही नहीं था. इसलिए वो अंग्रेज़ों से जा भिड़े. युद्ध में तिरोत सिंह के 10,000 लड़ाकों ने ब्रिटिश साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी. क़रीब 4 साल तक अंग्रेजों से युद्ध चला. लेकिन समय के साथ धीर-धीरे तिरोत सिंह की ताकत क्षीण होती गई. बावजूद इसके वो अंग्रेज़ों के सामने झुकने को तैयार नहीं थे. हालात जब मुश्किल होने लगे तो उन्होंने घायल अवस्था में अपने सैनिकों के साथ गुफाओं में शरण ले ली.

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वो कहते हैं न कि ‘हर अच्छाई के पीछे एक बुराई ज़रूर छिपी होती है’. राजा तिरोत सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उनके किसी अपने ने ही अंग्रेज़ों के साथ मिलकर छल कर दिया और 9 जनवरी, 1833 को अंग्रेज़ों ने अपनी पूरी ताक़त के साथ इन गुफाओं पर बोल दिया. परिणाम स्वरुप निहत्थे राजा तिरोत सिंह ने अपने लड़कों के साथ अंग्रेज़ों के समक्ष सरेंडर कर दिया. इसके बाद अंग्रेज़ों ने उन्हें ढाका जेल बना लिया. अंग्रेज़ों ने जेल में तिरोत सिंह को अपना गुलाम बनाने के लिए उन पर कई जुल्म किए, लेकिन उन्होंने अंग्रेज़ों की गुलामी करने से मर जाना बेहतर समझा.

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आख़िरकार 17 जुलाई, 1835 को भारत मां के इस लाल ने देश की आज़ादी के ख़ातिर अपने प्राण त्याग दिए. आज भी तिरोत सिंह (को भारत के उन शूरवीरों के साथ याद किया जाता है जिन्होंने ब्रिटिशों के ख़िलाफ़ कभी अपना सिर नहीं झुकाया.

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