अल्बर्ट आइंस्टीन और रबीन्द्रनाथ टैगोर इतिहास के दो ऐसे बुद्धिजीवी लोग जिनका दिमाग़ चलता नहीं, बल्कि दौड़ता था. आइंस्टीन विज्ञान में माहिर थे, तो रबीन्द्रनाथ टैगोर साहित्य में. दुनिया को लेकर दोनों के अलग-अलग लॉजिक्स और विचार धाराएं थीं. सोचिये कैसा रहा होगा वो पल जब दो बुद्धिमान लोग एक साथ मिले होंगे.
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14 जुलाई 1930 में महान वैज्ञानिक आंइस्टीन के ‘बर्लिन’ स्थित घर में उनकी और रबीन्द्रनाथ टैगोर की मुलाक़ात हुई थी. दोनों की इस बैठक को इतिहास की सबसे बैद्धिक और उत्साही चर्चा के रूप में दर्शाया गया है.
आइये अब जानते हैं कि कैसा था वो लम्हा जब मिले थे दो बुद्धिमान लोग:
बातचीत के दौरान रबीन्द्रनाथ टैगोर ने आइंस्टीन से कहा कि ‘आप दो प्राचीन इकाई, अंतरिक्ष और समय की खोज करने में व्यस्त रहते हैं. वहीं मैं ब्रह्माण्ड की सच्चाई पर भाषण दे रहा हूं.’ टैगोर साहब की इसी बात पर आइंस्टीन ने उनसे पूछा कि ‘क्या आपको दुनिया से अलग दिव्य में यकीन है?’ टैगोर ने वैज्ञानिक की बात का जवाब देते हुए कहा कि ‘इंसान का अनंत व्यक्तित्व ब्रह्मांड को जानता है. ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे इंसान द्वारा कम नहीं किया जा सकता. इससे साबित होता है कि ब्रह्मांड की सत्य मानव सत्य है.’
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गुरुदेव के इस विचार पर आइंस्टीन ने कहा कि ‘आपकी बातें पूरी तरह से मानवीय धारणा है, पर विज्ञान इससे अलग हटकर सोचता है.’ गुरुदेव, आइंस्टीन की बातों को ध्यान से सुनते हैं. इसके बाद कहते हैं कि ‘प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन से मिल कर बनने वाली चीज़ के बीच में एक खाली जगह होती है, जो इसे बांध कर रखती है.’
ठीक इसी तरह ‘मानवीय संबंध व्यक्तियों को एक-दूसरे से जोड़े रखते हैं.’ आइंस्टीन कहते हैं कि ‘मैं मानवीयता को लेकर आपसे सहमत हूं, पर जिसे आप सत्य मनाते हैं, उसे मैं सच नहीं मानता.’ मानव और विज्ञान पर दोनों की बहस आगे भी जारी रही और दोनों ही अपनी-अपनी बात को सही बताते रहे.
दो लोगों की इस महान मुलाक़ात पर ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने एक लेख भी छापा था. लेख पढ़ने के बाद लगता है कि दोनों के दिमाग़ को समझना आम इंसान की समझ के बाहर है. यही वजह कि दोनों को इतिहास के पन्नों में ख़ास जगह मिली हुई है.