इतिहास गवाह है कि दिल्ली शहर के जंतर-मंतर पर जितने धरना प्रदर्शन हुए हैं, उतने शायद ही किसी और शहर या राज्य में हुए होंगे. इसका मुख्य कारण ये है कि दिल्ली देश की रसजधानी है. देश की सरकार पूरे देश को यहीं से संचालित करती है. अक्सर यहां पर लोग सरकार के सामने अपनी मांगे रखने के लिए धरना प्रदर्शन करते हैं. कभी-कभी ये प्रदर्शन कई दिनों या हफ़्तों तक चलते हैं.
इन धरना प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाले लोग देश की कई समस्याओं के समाधानों के लिए यहां धरना देते हैं और और धरने के रूप में अपनी लड़ाई लड़ते हैं. जंतर-मंतर एक ऐसी जगह है, जहां कई हफ़्तों तक लोग धरना देते हैं और इन दिनों उनके जीवित रहने में मदद करता है, नज़दीक ही स्थित एक प्रतिष्ठित गुरुद्वारा. इस गुरुद्वारे में लोग लंगर खाकर ये प्रदर्शनकारी अपना पेट भरते हैं. इस गुरुद्वारे ‘बंगला साहिब’ के नाम से प्रसिद्ध है. बंगला साहिब, एक धार्मिक स्थल है, जो आठवें सिख गुरु, हरकृष्ण से इसके सम्बन्ध के लिए जाना जाता है और ये हमेशा भूखे और ज़रूरतमंदों के लिए खुला रहता है. हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई किसी भी धर्म के लोगों के साथ यहां कोई भी भेद-भाव नहीं किया जाता है, सबको एक समान समझकर पेट भर खाना खिलाया जाता है.
‘बाबा आमटे से टिकैत तक, सबने यहां लंगर खाया है’
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति (DSGMC) के अध्यक्ष, मंजीत सिंह जीके बताते हैं कि बंगला साहिब और रकाब गंज साहिब दोनों ही गुरुद्वारे सेंट्रल दिल्ली में प्रदर्शनकारियों के लिए जीवन रेखा बन चुके हैं. 1986 में सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आमटे ने देश भर में ‘भारत जोडो’ मार्च का नेतृत्व किया था और उन्होंने और उनके साथ हज़ारों समर्थकों ने अमर जवान ज्योति के पास दो दिनों तक अपना डेरा जमाया था. लेकिन दूसरे ही दिन कई समर्थक भोजन के बाहर निकले थे, तब वो हमारे पास आये थे. उस दिन के बाद भी हम उनके समर्थकों को भोजन खिलाने के लिए तैयार थे.
इसके साथ ही वो बताते हैं, ‘बाबा आम्टे के आने के दो साल बाद भारतीय किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने 5 लाख समर्थकों के साथ दिल्ली का रुख किया. शाम थक हज़ारों किसानों ने दोनों गुरुद्वारों में शरण ली और रात में यहीं सोने के लिए आये. वहीं कुछ किसान गुरुद्वारे के आंगन में भी सोते थे. हम हमेशा ऐसे लोगों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं.’
‘अन्ना आंदोलन’
अगर हाल के दिनों में कभी भी कोई विरोध प्रदर्शन हुआ था, तो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को ही सबसे उपयुक्त और ठहराव वाली जगह बनाया गया है. ऐसा ही एक आंदोलन हुआ था, ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’, जिसका नेतृत्व अन्ना हज़ारे ने किया था. 2011 में ये आंदोलन अप्रैल से लेकर दिसंबर तक लगातार नौ महीने चला था. बंगला साहिब गुरुद्वारे के लिए ये महीने काफी व्यस्त रहे थे. उस समय हर दिन धरना प्रदर्शन हो रहे थे. हर दिन हज़ारों की संख्या में प्रदर्शनकारी यहां आकर खाना खाते थे. साथ ही यहां के लोग तो होते ही थे लंगर खाने के लिए.
सिंह कहते हैं कि ‘मुझे उन सभी बावर्चियों पर बहुत गर्व है, जिन्होंने यहां आने वाले हर व्यक्ति के लिए खाना बनाया और पूरे दिल से उनकी सेवा की. यहां सेवा हर चीज़ से ऊपर है.’
‘जब कांग्रेस नेता अजय माकन मदद मांगने से झिझक रहे थे’
हमारा नियम है कि जब भी कोई राजनीतिक पार्टी कोई रैली आयोजित करती है, तो उसको केवल हमको एक कॉल करनी है और हम उनके कार्यकर्ताओं को मुफ़्त में खाना खिलाएंगे. नीतीश कुमार से मायावती तक, हमने हर नेता के कार्यकर्ताओं के लिए खाना बनाने का काम किया है.
पिछले साल दिल्ली के कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने मुझे फ़ोन करके मदद करने के लिए कहा था. उन्होंने कहा कि 4000 महिला कांग्रेस कार्यकर्ता जंतर-मंतर के पास धरना प्रदर्शन करने जा रहीं हैं और वो उन सभी को खाना खिलवाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि वो केवल मुझ पर भरोसा कर सकते हैं, लेकिन मदद के लिए पूछने में उन्हें संकोच हो रहा था. इसके साथ ही उन्होंने 1984 के दंगों के बारे में भी बात की और अपना दुख भी व्यक्त किया. ये तो हम सब ही जानते हैं कि 84 के दंगों में कांग्रेस की क्या भूमिका रही थी. लेकिन मैंने उनको भरोसा दिलाया कि राजनीतिक संबद्धता गुरुद्वारा के प्रवेश द्वार पर ही ख़तम हो जाती है. यहां किसी के प्रति कोई नफ़रत नहीं रहती है.
‘बांग्ला साहिब गुरुद्वारा, हमारे लिए एक वरदान’
तमिलनाडु के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसानों द्वारा किये गए 40 दिनों के धरना प्रदर्शन के दौरान हमारा गुरूद्वारा एक अनपेक्षित सहयोगी रहा. 63 वर्षीय एस. जयरामन बताते हैं कि ‘विरोध के पहले दस दिनों में हम भुखमरी से मर गए होते, अगर बंगला साहिब में लोगों को खाना न मिला होता. जब सुलभ शौचालयों में भीड़ बढ़ती ही जा रही थी, तब हम 15 मिनट का रास्ता तय करके गुरुद्वारा जाते थे और वहां का शौचालय यूज़ करते थे. जब वहां खाना नहीं था, तब हम लंगर का खाना खाते थे. य गुरुद्वारा हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं था. इसने उस दौरान होम सबको ज़िंदा रखा.’
‘हम एक दिन में 8,000 लोगों को खाना खिलाते हैं’
बंगला साहिब में लंगर का खाना बनाने वाले 40 वर्षीय गुरभजन सिंह को हर दिन 10 घंटे में से उनको एक भी मिनट खाली नहीं मिलता. वो बताते हैं, ‘मैंने अपनी ज़िन्दगी को इस गुरुद्वारे को समर्पित कर दिया है. हम 10-10 घंटे शिफ़्टस में काम करते हैं और एक दिन में यहां की रसोई से 8,000 लोगों को खाना खिलाते हैं. यहां 35 कर्मचारी हैं, लेकिन यहां का ज़्यादातर काम स्वयंसेवकों द्वारा किया जाता है. वो अपनी श्रद्धा से यहां आने वालों की सेवा करते हैं. रविवार को यहां आने वाले स्वयंसेवकों की संख्या 200 तक पहुंच जाती है.
‘किचन से लेकर शौचालय तक सब कुछ है बंगला साहिब में’
मंजीत सिंह जी.के. बताते हैं कि कई प्रदर्शनकारी यहां पर कई दिनों से हैं. हमारे पास बहुत ही कम किराए पर कमरे और छात्रावास भी उपलब्ध हैं, लेकिन अगर कोई एक रात के 100 रुपये देने में समर्थ नहीं होता है, तो हम उसके लिए हॉल में चटाई बिछा देते हैं. इस हॉल में हम एक साथ 10,000 लोगों के आराम से सोने की व्यवस्था कर सकते हैं.
प्रदर्शन के लिए तमिलनाडु से आये किसानों के अनुसार, बंगला साहिब गुरुद्वारा उस वक़्त उनके लिए एक रक्षक की तरह था, जब शौचालयों की कमी हो गई थी, लोग ज़्यादा हो गए थे.
गुरुद्वारे में शौचालय की साफ़-सफ़ाई के प्रभारी लखबीर सिंह कहते हैं, ‘मैं यहां 8 लोगों की एक टीम का नेतृत्व करता हूं. हम 10 घंटे की शिफ्ट में काम करते हैं और मैं पूरे काम का निरीक्षण करता हूं. शौचालयों के अलावा हमारे पास सीढ़ियों से ऊपर जाकर बने नहाने की जगह को साफ़ रखने की भी ज़िम्मेदारी है. ये जगह हर किसी के इस्तेमाल के लिए है.’