मध्य प्रदेश की चंबल घाटी कई कुख्यात डाकुओं और बाग़ियों का गढ़ रही है. एक समय में शिवपुरी, मुरैना, रीवा, चित्रकूट जैसे इलाकों में इन डकैतों का ख़ौफ़ था. हैरानी की बात ये है कि इनमें से कुछ पढ़े-लिखे भी थे. कोई फ़ौज में था तो किसी ने डॉक्टरी की पढ़ाई की थी. लेकिन इनके जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां आई थीं, जिन्होंने इन्हें डकैत या बागी या डाकू बनने पर मजबूर कर दिया. आज हम आपको कुछ ऐसे ही डकैतों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अहिंसा का रास्ता छोड़, उठा लिए हथियार.

1. मान सिंह

आंकड़े बताते हैं कि 1935 से 1955 के बीच डकैत मान सिंह ने करीब 1,112 डकैतियों को अंजाम दिया था और 182 हत्याएं की थीं. इनमें से 32 पुलिस अधिकारी थे. 1955 में सेना के जवानों से मुठभेड़ में मान सिंह और उसके पुत्र सूबेदार सिंह की गोली लगने से मृत्यु हो गयी.

2. माधो सिंह

माधो सिंह को बीहड़ का रॉबिन हुड बोलना गलत नहीं होगा क्योंकि ये ज़्यादातर अमीरों के यहां डांका डालता था. इस कुख्यात डकैत ने 23 क़त्ल और 500 किडनैपिंग की थीं. 1960 से 1970 के दशक में माधो सिंह का चंबल में आतंक था, लेकिन अंत में उसने और उसके 500 साथियों ने जय प्रकाश नारायण के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.

3. मलखान सिंह

मलखान सिंह को बागी परिस्थितियों ने बनाया. उसके गांव के सरपंच ने मंदिर की ज़मीन हड़प ली थी. जब मलखान सिंह ने इसका विरोध किया तो सरपंच ने उसे गिरफ़्तार करवा दिया और उसके एक दोस्त की हत्या करवा दी. बदला लेने की मंशा से मलखान सिंह ने बंदूक उठा ली और बागी बन गया. उसने बाद में आत्मसमर्पण कर दिया.

4. फूलन देवी

बैंडिट क्वीन, फूलन देवी का नाम देश में सब जानते हैं. अपने साथ हुए बलात्कार का बदला लेने के लिए फूलन 16 साल की उम्र में डाकू बन गयी थी. जिन 22 लोगों ने फूलन के साथ बलात्कार किया था, उन्हें लाइन में खड़ा कर के गोली मार दी गयी थी. 1983 में फूलन ने आत्मसमर्पण कर दिया और जेल से छूटने के बाद राजनीति में आ गयी. मिर्ज़ापुर से 2 बार सांसद रह चुकी फूलन की 2001 में गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी.

5. पान सिंह तोमर

इस बागी की ज़िन्दगी पर तो फ़िल्म भी बन चुकी है. पान सिंह तोमर पहले सेना में सूबेदार थे और सात साल तक लंबी बाधा दौड़ के राष्ट्रीय चैंपियन भी. ज़मीनी विवाद के कारण पान सिंह तोमर ने अपने रिश्तेदार, बाबू सिंह की हत्या कर दी थी. इसके बाद वो बागी बन गया था. बाद में 60 जवानों की पुलिस टीम ने तोमर और उसके 10 साथियों को घेर कर उनकी हत्या कर दी थी.

6. शिव कुमार पटेल उर्फ़ ददुआ

16 मई, 1978 में शिव कुमार पटेल उर्फ़ ददुआ ने अपना पहला क़त्ल किया था. उस समय उसकी उम्र 22 साल थी. उसे एक व्यक्ति पर शक था कि वो पुलिस का मुखबिर है और इसलिए 1986 में ददुआ ने उसकी भी हत्या कर दी थी. इसके अलावा ददुआ पर 9 लोगों की निर्मम हत्या करने का भी आरोप है. 22 जुलाई, 2007 में पुलिस के साथ मुठभेड़ में वो मार गया.

7. निर्भय गुज्जर

इस डकैत का ऐसा रुतबा था कि एक समय पर 40 गांवों में उसकी वैकल्पिक सरकार चलती थी. उसके सर पर 2.5 लाख रुपये का इनाम भी था. निर्भय गुज्जर अपने गिरोह में सुन्दर महिला दस्युओं को भर्ती करने के लिए मशहूर था. इनमें सीमा परिहार, मुन्नी पांडे, पार्वती उर्फ़ चमको, सरला जाटव और नीलम प्रमुख थीं.

8. सीमा परिहार

सीमा परिहार का 13 साल की उम्र में अपहरण हो गया था, जिसे डकैत लाला राम और कुसुम नाइन ने अंजाम दिया था. इसके बाद सीमा बागी बन गयी. सीमा परिहार ने 70 लोगों की हत्या की है और 200 लोगों का अपहरण किया है. 2000 में इसने पुलिस का सामने सरेंडर कर दिया था और राजनीति में आ गयी. सीमा बिग बॉस के घर का भी हिस्सा बन चुकी हैं और उसके जीवन पर एक मूवी भी बनी है.

9. रामबाबू और दयाराम गड़रिया

रामबाबू और दयाराम भाई ने जो बाद में कुख्यात डकैत बन गए. इनके गिरोह को पुलिस T-1 यानि ‘Target One’ के नाम से जानती थी. 1997 और 1998 वर्ष में रघुबीर गड़रिया ने ये गिरोह शुरू किया था. 2006 में एक मुठभेड़ के दौरान दयाराम की मृत्यु हो गयी थी और 2007 में रामबाबू भी मारा गया.

10. मोहर सिंह

2006 में अपहरण के केस में मोहर सिंह को जेल हो गयी थी. 2012 में उसे ज़मानत मिली और पहला काम उसने अपनी पत्नी और बेटी को मारने का किया. उसने उनकी लाश सिंध नदी में फ़ेंक दी थी. डाकू मोहर सिंह पर 550 मुक़दमे चल रहे थे जिसमें से 400 मामले हत्या के हैं. जेल में 8 साल सज़ा काटने के बाद अब मोहर सिंह सामजिक कार्य में में जुटे हुए हैं.

11. अंबिका प्रसाद उर्फ़ ठोकिया

गांव में डॉक्टरी और कम्पाउंडरी करने वाला अंबिका प्रसाद पढ़ा-लिखा इंसान था. लोग उसे डॉक्टर के नाम से संबोधित करते थे. एसटीएफ के साथ मुठभेड़ में वो मारा गया था.

12. पुतली बाई

पुतली बाई को चंबल की पहली महिला डाकू माना जाता है. सुल्ताना डाकू का दिल पुतली बाई पर आ गया था और पुतली बाई घर छोड़ कर सुल्ताना के साथ बीहड़ में रहने लगी. सुल्ताना के मारे जाने पर गिरोह की ज़िम्मेदारी पुतली बाई पर थी. 1950 से 1956 के बीच बीहड़ में उसका ज़बरदस्त आतंक था. 23 जनवरी, 1956 में शिवपुरी के जंगलों में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में हो मारी गयी.

13. सुदेश कुमार पटेल उर्फ़ बलखड़िया

सर के बाल खड़े होने की वजह सुदेश कुमार पटेल को बलखड़िया कहा जाता था. उसकी बहादुरी से खुश हो कर ददुआ ने उसे पॉइंट 375 बोर की राइफ़ल इनाम में दी थी. 85 से अधिक हत्या, अपहरण व लूट के मामले बलखड़िया पर दर्ज हैं. मरते समय इसने कम-से-कम 50 बार कहा होगा कि ‘मेरी लाश पुलिस के हाथ नहीं लगनी चाहिए’.