जातिवाद, समाज के लिए वो काला धब्बा है जिसने लोगों को बांट दिया. देश के कई हिस्सों में अगर कोई तथाकथित ‘छोटी जाति’ का व्यक्ति ‘बड़ी जाति’ वाले के घर का पानी पी ले, तो वो अपना गिलास ख़ुद धोकर रखता है. यहां तक कि उनके बराबर बैठता भी नहीं है. ये मनघंड़त नहीं है. ऐसा इस समाज में आज भी होता है. लोग कास्ट की वजह से नकार दिए जाते हैं. समाज की इसी कुरीति को कई बार फिल्मों के ज़रिए बड़े पर्दे पर उतारा गया है, दर्शकों ने इसे सराहा तो ख़ूब मगर कास्ट सिस्टम ख़त्म करने के बारे में किसी ने नहीं सोचा.
1. सुजाता (1959)
50 के दशक में आई फ़िल्म ‘सुजाता’ में सुनील दत्त और नूतन मुख्य भूमिका में थे. इसकी कहानी एक ऐसी दलित लड़की थी, जिसे ब्राह्मण परिवार के द्वारा पाला जाता है और फिर उसे एक ब्राह्मण लड़के से प्यार हो जाता है. मगर समाज उनके प्यार के ख़िलाफ़ होता है उसी को बिमल रॉय ने बाख़ूबी दिखाया है.
2. अंकुर (1974)
फ़िल्म ‘अंकुर’ से श्याम बेनेगल ने अपने निर्देशन करियर की शुरुआत की थी. इस फ़िल्म की कहानी हैदराबाद के दलित कपल पर बेस्ड थी. दलित होने की वजह से उसकी पत्नी को ज़मींदार के बेटा द्वारा अपमानित किया जाता है. इसमें शबाना आज़मी ने दमदार अभिनय किया था. फ़िल्म ने इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल में कई अवॉर्ड जीते थे.
3. सद्गति (1981)
सद्गति एक टेलीफ़िल्म थी, जिसे सत्यजीत रे ने निर्देशित किया था. इसमें भी दलित लड़के को ब्राह्मण लड़की से प्यार हो जाता है और वो उसके पिता से उसका हाथ मांगता है. इसमें स्मिता पाटिल और ओम पुरी मुख्य भूमिका में थे.
4. चमेली की शादी (1986)
बासू चैटर्जी निर्देशित इस फ़िल्म में एक अपर कास्ट के लड़के को लोअर कास्ट की लड़की से प्यार हो जाता है और जब वो अपने परिवार में इस बात को बताता है. उसी संघर्ष को इस फ़िल्म में दिखाया गया है. फ़िल्म में अनिल कपूर, अमज़द ख़ान, अमृता सिंह, पंकज कपूर और ओम प्रकाश मुख्य भूमिका में थे.
5. बैंडिट क्वीन (1994)
बैंडिट क्वीन, निर्देशक शेखर कपूर के करियर का मील का पत्थर साबित हुई थी. इसमें फूलन देवी की ज़िंदगी की कहानी थी. कैसे उसने एक दलित होने की सज़ा पाई. उसे गैंगरेप का शिकार होना पड़ा और अपना बदला लेने के लिए वो डाकू बन गईं. इसमें सीमा बिस्वास ने फूलन देवी का किरदार निभाया था.
6. समर (1999)
श्याम बेनेगल की ये फ़िल्म हर्ष मंदर की ‘Unheard Voices’ पर आधारित थी. इस फ़िल्म की कहानी उस दलित शख़्स थी जो मंदिर में चला जाता है और उसके बाद उसे समाज के ठेकेदारों का अत्याचार सहना पड़ता है. इसमें राजेश्वारी सचदेव, सीमा बिस्वास, दिव्या दत्ता, यशपाल शर्मा और रघुवीर यादव मुख्य भूमिका में थे.
7. खाप (2011)
इस फ़िल्म में ओम पुरी और युविका चौधरी थे. इस फ़िल्म में खाप पंचायत के मुद्दे को दिखाया गया था. इनका एक अलग क़ानून होता है. हाल ही में इस मुद्दे को आमिर ख़ान के शो ‘सत्यमेव जयते’ में भी दिखाया गया था. इसे अजय सिन्हा ने निर्देशित किया था.
8. आरक्षण (2011)
आरक्षण नाम से ही समझ आ गया होगा. इस आरक्षण ने कितनों की जानें ले लीं और कितने ही होनहार छात्र इसकी वजह से नौकरी नहीं ले पाते हैं. प्रकाश झा की फ़िल्म आरक्षण भी इसी मुद्दे पर थी. इसमें अमिताभ बच्चन, दीपिका पादुकोण और सैफ़ अली ख़ान थे.
9. शूद्र- द राइज़िंग (2012)
संजीव जयसवाल निर्देशित इस फ़िल्म में कास्ट सिस्टम का एक अलग ही चेहरा दिखाया गया था. इसकी कहानी हड़प्पा सभ्यता को दर्शाती थी. उसी के माध्यम से जातिवाद के अलग-अलग पहलू दिखाए गए थे.
10. मांझी- द माउंटेनमैन (2015)
मांझी, एक ऐसे व्यक्ति की असल ज़िंदगी की कहानी थी, जो बिहार में रहता ता और उसने अपनी पत्नी के रास्ते में आने वाले पहाड़ों को काटना शुरू किया था. ताकि उससे िमलने जाने के लिए रास्ते छोटे हो जाएं. इसमें मांझी का किरदार नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने निभाया था और उनके साथ राधिका आप्टे थीं.
11. धड़क (2018)
धर्मा प्रोडक्शन की ये फ़िल्म मराठी फ़िल्म सैराट का रीमेक थी. इसमें ईशान खट्टर और जाह्नवी कपूर ने अपना डेब्यू किया था. इस फ़िल्म में कास्ट सिस्टम के क्रूर पहलू को दिखाया गया था.
12. आर्टिकल 15 (2019)
अनुभव सिन्हा निर्देशित इस फ़िल्म में आयुष्मान खुराना ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इस फ़िल्म ने कास्ट सिस्टम को दर्शाते हुए ये बताया था कि आर्टिकल 15 वो आर्टिकल है, जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है.
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