Changes In Adipurush To Improve The Film: प्रभास (Prabhas) की फ़िल्म आदिपुरुष रिलीज़ हो चुकी है. लोग जितनी ख़ुशी और उम्मीद के साथ फ़िल्म देखने गए, उतने ही खौराते और गरियाते बाहर निकले. ख़ैर, लोगों का मूड तो फ़िल्म के टीज़र के साथ ही ख़राब हो चुका था. तब VFX में बदलाव करने को मेकर्स मजबूर हुए. अब रिलीज़ के बाद कहा जा रहा है कि डायलॉग्स में भी बदलाव किया जाएगा. मगर हक़ीक़त तो ये है कि फ़िल्म में बहुत कुछ बदलने की ज़रूरत है.
आइए जानते हैं कि वो क्या-क्या बदलाव हैं, जिन्हें अंजाम देकर ‘आदिपुरुष’ को ठीक-ठाक फ़िल्म बनाया जा सकता है. (Cringe Dialogues Of Adipurush)
Changes In Adipurush To Improve The Film
1. सड़ेले VFX को लंका की तरह जला दो
VFX का लोग ना सिर्फ़ मज़ाक उड़ा रहे, बल्कि डायरेक्टर ओम राउत को गरिया भी रहे. मतलब इतना कूड़ा VFX कोई कैसे कर सकता है. न्यूज़ वाले भी आज कल इससे अच्छा VFX इस्तेमाल कर तूफ़ान ला देते. मगर ओम राउत हैं कि उन्होंने दो मंज़िला रावण बना डाला. सोने की लंंका को कोयले की लंका बना दी. सुग्रीव, जामवंत और पूरी वानर सेना का लुक इतना ख़राब बनाया गया है, जिसकी कोई हद नहीं. पूरी फ़िल्म में वाह की जगह आह ही निकला है.
2. प्रभास का लुक बदलो
भगवान राम का ज़िक्र होता है तो एक सौम्य चेहरा सामने आता है. मगर प्रभास का लुक देख कर रौद्र रूप नज़र आता है. भले ही प्रभास फ़िल्म में चेहरे पर शांति दिखाने की कोशिश करते हैं, मगर वो ऐसा कर नहीं पाते. वजह है कि उनका लुक राम जी का कम, बाहुबली का ज़्यादा था. ऐसा लग रहा था कि बाहुबली रास्ता भटक कर भगवान राम की स्टोरी में दाखिल हो गया हो.
3. मनोज मुंतशिर से डायलॉग नहीं, सॉरी लिखवाओ
मनोज मुंंतशिर (Manoj Muntashir) अगर 14 साल तक सॉरी-सॉरी लिखें तो भी उन्हें जनता माफ़ नहीं करेगी. मतलब इतने गंदे डायलॉग्स कोई कैसे लिख सकता है. ‘कपड़ा तेरे बाप का. तेल तेरे बाप का. आग भी तेरे बाप की और जलेगी भी तेरे बाप की.’ ये डायलॉग अगर सच में हनुमान जी बोलते तो ख़ुद रावण उनसे पूछ बैठता, ‘भ्राताश्री! आपको क्या हो गया है?’ अपन तो कहते हैं कि मनोज मुंतशिर से पेन-कॉपी ही छीन लेना चाहिए. क्योंकि, ये बंदा बहुत घातक साबित हुआ है.
4. इंद्रजीत को टैटू के मायाजाल से बाहर निकालो
फ़िल्म में ऐसा लग रहा कि मायावी इंद्रजीत ख़ुद टैटू आर्टिस्ट्स के मायाजाल में फंंस गया हो. उसको पालिका बाज़ार के किसी टैटू आर्टिस्ट ने डिस्काउंट का ऑफ़र देकर गोद डाला है. बाल ऐसे हैं कि सिटिबाज़ लौंडे भी उसके आगे शरीफ़ नज़र आएं. अगर हक़ीक़त में इंद्रजीत इतना लखैरा लौंडा होता तो लक्ष्मण से पहले रावण ही दौड़ा-दौड़ा कर मारता और लंका से लतिया कर बाहर कर देता.
5. हमारे फ़ेवरेट हनुमान जी वापस दो
एक हमारे दारा सिंह जी हनुमान बने थे और एक देवदत्त गजानन हैं. भइया ये फ़र्क ज़मीन आसामान का नहीं, बल्कि़ आसमान और पाताल का है. एक तो फ़ुटबॉल से भी ज़्यादा गोल बॉडी, उस पर से महा घटिया एक्टिंग. बची-कुची कसर सड़यिल डायलॉग्स ने पूरी कर दी. देवदत्त की कास्टिंग भूल नहीं, पाप की कैटेगरी में आएगी. गंगा मैया भी इस पाप को धो ना पाएंगी.
6. नहीं चाहिए छपरी रावण
रावण कितना ही बुरा रहा हो, मगर वो सैफ़ अली ख़ान की एक्टिंग जितना बुरा तो नहीं हो सकता. और सैफ़ जितना छपरी तो कतई नहींं होगा. मतलब बाल तो देखिए, उस ज़माने में कौन हेयरस्टाइलिस्ट इत्ती कालाकारी से बाल काट रहा था बे? ऊपर से जो रावण तीनों लोक का विजेता माना जाता है, उसे वेल्डिंग करते दिखाया गया. सैफ़ भइया हमारे हथौड़ा लेकर तलवार पीट रहे. अरे तलवार ही काहे पिटवा रहे, हम तो कह रहे कि उससे सिलाई-बुनवाई भी करवा लो. पता तो चले कि रावण भाई सर्वगुण संपन्न थे.
7. डायरेक्टर चेंज करो
फ़िल्म को इतना ख़राब बनाने में जिस शख़्स का सबसे बड़ा योगदान है, वो है डायरेक्टर ओम राउत. इस बंदे ने ही पूरी फ़िल्म की ऐसी-तैसी मचाई है. फ़िल्म के डायलॉग, कास्टिंग, लुक, VFX से लेकर कहानी तक, जो कुछ भी बरबादी हुई है, उसमें ओम राउत का ही सबसे बड़ा हाथ है. अगर लंका की बरबादी के लिए रावण ज़िम्मेदारा था तो आदिपुरुष की बरबादी के लिए ओम राउत.
ये 7 बदलाव करने के बाद भी फ़िल्म ठीक हो जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि, फ़िल्म को सही करने के लिए सबसे बड़ा बदलाव ये रहेगा कि फ़िल्म बने ही ना. जी हां, रामायण को 3 घंटे में नहीं बनाया जा सकता है. कम से कम आपको 30 एपिसोड एक-एक घंटे के बनाने पड़ेंगे. तब जाकर कुछ बेहतर बन सकता है.
आप सोच रहे होंगे कि कृति सैनन और सनी सिंह का ज़िक्र क्यों नहीं किया? मत सोचिए, क्योंकि, फ़िल्म में भी उनके रोल के बारे में कुछ ज़्यादा नहीं सोचा गया था. जिस तरह क्रिकेट में कच्चा नींबू बना कर बच्चों को खिला लिया जाता है, वैसे ही इन दोनों को फ़िल्म में रखा गया है.
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