‘ज़िंदगी झंड बा तब्बो घमंड बा’, ‘बाबू’ अद्भुत, जैसे फ़ेमस जुमले सुनते ही सिर्फ़ एक ही स्टार की याद आती है और वो है रवि किशन. भोजपुरी सिनेमा, टीवी इंडिस्ट्री, हिंदी सिनेमा के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं की फ़िल्मों भी में उन्होंंने बतौर एक्टर ख़ूब नाम कमाया है. रवि किशन की गिनती आज फ़िल्म इंडस्ट्री के मंझे हुए कलाकारों में होती है. 

भले ही रवि किशन आज किसी परिचय के मोहताज न हों लेकिन उन्होंने ये मुकाम हासिल करने के लिए काफ़ी संघर्ष किया है.

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रवि किशन को बचपन से ही एक्टिंग करने का शौक़ था. वो बचपन में जौनपुर के अपने गांव की रामलीला में सीता का रोल किया करते थे. इसके लिए उन्हें अपने पिता से कई बार मार भी खानी पड़ी. क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उनका बेटा किसी नाटक कंपनी में काम करें. वहीं दूसरी तरफ उनकी मां रवि के टैलेंट को पहचानती थीं और उन्होंने रवि को ख़ूब सपोर्ट किया.

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17 साल की उम्र में वो फ़िल्मों में करियर बनाने के लिए मुंबई चले आए. यहां उनके पास फ़िल्म स्टूडियो में जाने के लिए बस के किराये के पैसे नहीं हुआ करते थे. वो अकसर पैदल ही काम की तलाश में निकलते थे. काफ़ी संघर्ष करने के बाद उन्हें साल 1992 में आई ‘पितांबर’ से अपने करियर की शुरुआत की. इसके बाद कई फ़िल्में की और भोजपुरी सिनेमा की ओर रुख किया.

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यहां उनकी पहली फ़िल्म थी ‘संइयां हमार’. बाद में आई फ़िल्म ‘तेरे नाम’ के लिए उन्हें बेस्ट स्पोर्टिंग रोल का नेशनल अवॉर्ड मिला था. इसके बाद भोजपुरी फ़िल्म ‘कब होई गवनवा हमार’ को सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार 2005 में मिला. इस तरह काफ़ी संघर्ष के बाद उन्होंने इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई.

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रवि किशन ने बिग बॉस में भी भाग लिया था. वो अब तक 150 से अधिक फ़िल्मों में काम कर चुके हैं. उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनका जन्म एक ग़रीब परिवार में हुआ था. जौनपुर में उन्होंने अपना बचपन एक मिट्टी के कच्चे घर में बिताया था. घर की आर्थिक हालत इतनी ख़राब थी कि वो त्यौहार में अपनी मां के लिए साड़ी तक नहीं ले पाते थे.

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इसके लिए उन्होंने कई महीनों तक अख़बार बेचने का काम किया. इस काम से मिले 75 रुपये से उन्होंने अपनी मां के लिए साड़ी ख़रीदी थी. वो साड़ी देखने के बाद उनकी मां ने रवि को जोर का तमाचा जड़ दिया था. उन्हें लगा कि उनका बेटा चोरी-चकारी करने लगा. लेकिन जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो अपने बेटे को गले से लगाकर खूब रोईं थीं.

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अपने स्ट्रग्लिंग डेज़ को याद करते हुए रवि किशन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआती 10-12 फ़िल्में तो बिना पैसे के ही कर ली थीं, ताकि काम के ज़रिये वो इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना सकें.

कुछ ऐसा संघर्षशील रहा है रवि किशन का जीवन. उनकी कहानी देश के नौजवानों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं.   

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