कुछ शख्सियतें भले ही दुनिया से चली जाएं, लेकिन उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता. कुछ ऐसे ही थे इरफ़ान ख़ान, जिन्होंने अपनी आर्ट, क्राफ़्ट और एक्टिंग से लोगों के दिलों में ऐसी जगह बनाई, जिसे मिटा पाना नामुमक़िन है. आज वो भले ही इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी मौजूदगी हर उस चीज़ में है जिनका वो कभी हिस्सा रहे थे. ऐसा ही एक अनमोल रिश्ता था उनका अपने घर से.

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मड आइलैंड के इस घर में इरफ़ान ने ज़िंदगी के कई पहलूओं को जिया. इस पुराने घर की तस्वीरें उनके बेटे बाबिल ने अपने इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए कई नोट भी लिखे, जिसमें उन्होंने बहुत सारी यादें ताज़ा कीं.

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This is my father’s old room near the beach before we shifted to the city. This is where he did most of his work. Studying acting now, I think of one of the ideas that he used to implement; that the craft has immense emotional similarities to playing around as a child. At age 9, when you hold that cricket bat inside the walls of your room, you can feel a stadium roar and see a bowler rushing to knock your head off. When I held that nerf gun in my hands, my father’s empty room always echoed in the silence of Madh Island, but in that moment I was John Wick surrounded by bad guys with machine guns, gunshots everywhere, and you can hear them, you know? I was a woman once, after watching chak de India and I’d get excited dribbling around imaginary defenders and then really shoot that solid ball with my hockey stick and I’d break something. Oh I’d always break something, ma would get so pissed. I think you’ve got to find the child in you and keep it alive, no matter how old you get.

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बाबिल ने अपने पिता इरफ़ान ख़ान के कमरे की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, ये मेरे पिता का पुराना कमरा है, जो शहर में शिफ़्ट होने से पहले बीच के पास था. इस कमरे में उन्होंने सबसे ज़्यादा काम किया है.

बाबिल ने लिखा,

मैं एक्टिंग की पढ़ाई कर रहा हूं. एक बात जो वो हमेशा मानते थे वो ये कि क्राफ़्ट की भावनात्मक समानताएं एक बच्चे की तरह होती हैं. नौ साल की उम्र में जब एक बच्चा कमरे के अंदर क्रिकेट बैट पकड़ता है तो उसे लगता है कि स्टेडियम में सब लोग उसके लिए चीख रहे हैं और बॉलर तेज़ी से बॉल लेकर आ रहा है.

बाबिल ने आगे लिखा,

जब मैंने अपने हाथों में नर्फ़ गन पकड़ता था, उस वक़्त मेरे पिता का सन्नाटे से भरा खाली कमरा गूंजता था. उस वक़्त मैं ख़ुद को जॉन विक समझता था जो बुरे लोगों से घिरा हुआ है, बंदूकों के गनशॉट्स को आप हर जगह सुन सकते हैं. 

बाबिल ने बताया,

इसी तरह जब मैंने चक दे इंडिया देखी तो मैं सपने में ख़ुद को महिला की तरह देखता था और अपने आस-पास डिफ़ेंडर्स को देखता था. इसके बाद अपनी हॉकी स्टिक से ज़ोर से गेंद को मार देता था. इस वजह से मैं हमेशा कुछ न कुछ तोड़ देता था, जिससे मां नाराज़ हो जाती थीं. ये सब बातें एक ही बात सिखाती हैं कि भले ही कितने बड़े हो जाएं हमें अपने अंदर के बच्चे को पहचानना चाहिए और उसे हमेशा ज़िंदा रखना चाहिए.

बाबिल द्वारा शेयर की गई इस तस्वीर में पान सिंह तोमर का पोस्टर नज़र आ रहा है. 

अगली तस्वीर में आप फ़िल्म मक़बूल और बिल्लू बारबर की झलक देख सकते हैं. 

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Memories at that house by the beach. Part II.

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इसके अलावा घर की दीवारों पर इरफ़ान ख़ान की पत्नी सुतापा, माता-पिता और भाई बहनों की तस्वीरें भी लगी हुई हैं. 

इरफ़ान ख़ान जितना अपनी एक्टिंग के लिए संजीदा थे उतना ही असल ज़िंदगी में भी थे, वो अपनी मां के बहुत क़रीब थे.

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